बड़ा भाई पिता समान होता है-गीता वाधवानी

साधारण वेशभूषा और असाधारण व्यक्तित्व। बात करते तो मानो मुख से फूल बरसते, सामने वाला मंत्रमुग्ध होकर उनकी बात सुनता ही रह जाता और उसे स्वयं को क्या कहना था यह भूल ही जाता। छोटा हो या बड़ा सबको अपने स्नेह में बांध लेते हमारे बड़े भैया लक्ष्मण।

       हम कुल चार भाई है। जब हम चारों छोटे थे पिताजी हमें अनाथ कर गए। माताजी ने सिलाई बुनाई करके हमें पाला पोसा। थोड़े बड़े होने पर बड़े भैया ने माताजी के साथ-साथ कुछ जिम्मेदारी अपने कंधों पर भी ले ली।

     जिम्मेदारी आने से उनका बचपन कहीं खो गया। उन्होंने हम सबको पिता की तरह बनकर पाला, वे स्वयं कहते है कि आखिर बड़ा भाई भी तो पिता समान ही होता है।

      उन्हें पढ़ाई लिखाई का बहुत शौक था। सुबह हम सब को अपने साथ स्कूल ले जाते और लौटने पर हमें पढ़ने के लिए कहते  और खुद पैसे कमाने के लिए छोटे-मोटे काम करने निकल जाते, रात को घर लौटने पर अपनी पढ़ाई करते।

     कभी किसी के खेत में मजदूरी करते, कभी किसी का सामान ढोते, कभी किसी बच्चे को ट्यूशन पढ़ा देते। बदले में हर कोई कुछ ना कुछ दे देता था।


      जैसे तैसे मेहनत करके भैया ने 12वीं कक्षा पास कर ली और अपनी वकालत की पढ़ाई का खर्चा निकालने और हम तीनों भाइयों को पढ़ाने के लिए, बच्चों को ट्यूशन देने का काम करने लगे। मैं दूसरे नंबर वाला भाई कमल आठवीं में, तीसरे नंबर वाला जतिन पांचवी में और सबसे छोटा चंदर चौथी में पढ़ते थे।

एक दिन ऐसा कुछ हुआ जिसने हम सब को झकझोर कर रख दिया। हम सब ने भैया से पिकनिक पर जाने की जिद की। पास के एक छोटे शहर में सुंदर सी नदी थी वहां भैया हमें पिकनिक के लिए ले गए। भैया ने हमें समझाया-“देखो, यह नदी बहुत गहरी है इसके किनारे पर ही खेलना, बीच धारा में जाने की गलती मत करना।”

      हम तीनो भाई पूरी मस्ती में थे हम कहां कुछ सुनने वाले थे। दोनों छोटे भाइयों को किनारे पर खेलता छोड़कर मैं नदी की बीच धारा में चला गया और वहां जाकर मैं डूबने लगा। हाथ पांव मारते मारते मैं जोर जोर से चिल्लाने लगा। मुझे डूबता हुआ देखकर बड़े भैया मुझे बचाने के लिए नदी में कूद पड़े। दोनों छोटे भाई जोर जोर से रो रहे थे। भैया ने मुझे तो बचा लिया लेकिन अपने दोनों पावों को बचा न सके। पानी में कूदते समय शायद उनके पांव किसी पत्थर से टकराए थे जिसके कारण उनके दोनों पैरों में कोई जान नहीं बची थी। यह सब मेरे कारण हुआ था मैं बहुत शर्मिंदा था।

     इतना होने पर भी बड़े भैया ने हिम्मत नही हारी और अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की। इस हाल में भी बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर हमारी पढ़ाई भी पूरी करवाई। मैं वकील बनना चाहता था। जतिन पुलिस में भर्ती हो गया और चंदर ने पढ़ाई पूरी करके मेडिकल स्टोर खोला। यह हादसा मेरे कारण हुआ था। अब मैं वकील बनकर अपने बड़े भैया को अपने साथ रोज कचहरी ले जाता हूं। वे बहुत प्रसिद्ध और कामयाब वकील बन चुके हैं। हम सबका भविष्य उन्हीं की देन है। गांव में बड़े भैया का बहुत सम्मान है आज भी बड़े भैया गरीबों का केस मुफ्त में लड़ते हैं। ईश्वर ऐसा भाई सबको दे। हम सब बड़े भैया को अपने पिता की तरह आदर देते हैं और देते रहेंगे।

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