बच्चो और परिवार के पीछे वह खुद को भूल गई – पूजा मिश्रा : hindi stories with moral

hindi stories with moral : यार सुमी तुम समय से तैयार भी नही हो पाई जब मैने कहा था मैं पांच बजे आ जाऊंगा ,
  क्या करू समय ही नहीं मिला
तुम ऐसा क्या कर रही थी अब तक ?
गोलू की वेन वाले ने आज आने को मना कर दिया उसे लेने जाना पड़ा ,शाम के लिए चाचा जी चाची जी का खाना भी तो बना कर रखना था ।
और तुमने ये शकल क्या बना रखी है कुछ तो ढंग से रहना सीखो ऑफिस के लोगों से तुम्हे क्या मिलवाऊंगा ?
अमित एक तो रोज कोई न कोई गांव से इलाज कराने लखनऊ आ जाता है मैं उनकी खातिर करू घर देखू या अपने को कहते मुझे रोना आ गया ।
मेरे डेडीकेशन की कोई वैल्यू नही कितनी आसानी से कह दिया ढंग से रहना सीखो अपना हुलिया संभालो
मैंने अमित के साथ पार्टी में जाने का इरादा ही छोड़ दिया ।
  अमित के बहुत कहने पर भी मैं नही गई आज उनकी बातें मुझे मुझे अंदर तक घायल कर गई ।
जब कोई केवल अपनी सुख सुविधा देखता है वह नही सोचता की दूसरा भी कोई सुख के पल जीना चाहता है
  चाची जी ने कहा बहू तुम नही गई
मेरे सिर में दर्द हो रहा है इसलिए मैं थोड़ा आराम करना चाहती हूं ।
मैं अपने कमरे मैं आकर सोच रही थी सुमी तुम सच मैं क्या हो गई हो कहां खो गई वह मेधावी सुमित्रा मिश्रा
अपने स्कूल में कॉलेज में अपनी एक विशेष पहचान रखने वाली ।
कोई भी साइंस का क्विज कंप्टीशन हो मेरा नाम जरूर होता था क्या हो गए वह मेडल जिनको देखकर पापा कहते मेरा नाम ऊंचा कर रही मेरी बेटी ।
  मेरी बेटी को मैं डाक्टर बनाऊंगा परंतु मैं उस कंप्टीटीशन मैं पीछे रह गई ।
  फिर भी मैंने एम एस सी किया मैं आगे पी एच डी करके  डाक्टर लिखना चाहती थी ।शायद मेरे भाग्य में वह भी नही था उस समय हमारे भाग्य विधाता हमारे पापा और रिश्तेदार बन गए  ।
एम एस सी करते ही फूफाजी ने अपने दूर के भतीजे से मेरा रिश्ता करवा दिया साफ्टवेयर इंजीनियर है बीस लाख का पैकज है ।
उसके पैकेज में हमारे सुख देख रहे थे ये नही सोचा क्या मेरी कोई पहचान नहीं है ,क्या अब तक जो मैंने अपनी पढ़ाई की उसकी कोई वैल्यू नही ?
  मैं पैसा नहीं कमाती हूं शायद इसलिए मेरी कोई अहमियत नही है ।
अरे पहचान का क्या ? मेरा नाम ही बदल गया सुमित्रा नाम ओल्ड फैशन लगा उसे ही छोटा कर सुमी रख दिया ।
अब मैं सुमी भाभी ,सुमी चाची बन गई सुमित्रा खो गई ,
क्यों मैने नाम बदलने दिया  ?मैं सुमित्रा हूं अपने स्कूल की स्कॉलर ।
कभी भी नही सोचा था की मेरा दायरा इतना छोटा हो जायेगा मैं एक अच्छी बहू बनना चाहती थी इसलिए मैंने अपने कैरियर के बारे में सोचा ही नहीं ।
मैं पापा जी मम्मी जी की चेहरे की खुशी देख कर खुश थी
वह जब भी आते हैं मैने कभी उनकी सेवा में कमी नही की  ।क्या वह कुछ नहीं ?
  आज अमित तुम कहते तुमने क्या हुलिया बना रखा है, अरे हुलिया तो मेरा मेरे परिवार ने ही बिगाड़ दिया और मैंने उसे बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया ।
मैं आदर्श बहू,अच्छी पत्नी ,अच्छी मां बनने में लगी रही ,भूल गई मैं खुद के लिए क्या हूं ।
अमित की नजरों में मेरे कामों की कोई अहमियत नहीं ये तो सभी औरतें करती हैं फिर तुम तो हाउस वाइफ हो घर की रानी हो ।
  हां रानी हूं बिना किसी पगार की काम बाली हूं
अब गोलू बड़ा हो गया है मैं नेट का एग्जाम दूंगी अगर जे आर एफ मिल गई तो मैं भी पी एच डी करूंगी ।
  मेरे इस निर्णय को सहज स्वीकार करना मेरे परिवार के लिए मुश्किल होगा ,उनको सबसे पहले अपनी सुख सुविधाएं कम होती नजर आएंगी ।
पर कैसे सुमी गाँव से आने वालों को अवॉइड करोगी अपने परिवार के साथ सब कुछ निभाते हुए कितना मुश्किल है ,अब सुमी सुमित्रा को भूल जाओ ?
कमरे को नोक करके चाची जी आ जाती हैं
  सुमी बहू अब सिर दर्द कैसा है  ?मैं लाओ तेरे सिर में वाम  लगा दूं आराम मिल जायेगा  l और वह मेरे सिर पर अपने स्नेहिल हाथों से मेरा सिर सहला रहीं थी ।
कितनी भागदौड़ करती रहती हो एक पल भी तो आराम नही मिलता जब से आई हूं देखती हूं अमित तो बस ऑफिस जाने आने के अलावा क्या करता है ।
बड़ी भाग्यवान हैं जीजी जो तुम्हारी जैसी बहू पाई है
अरे तुम क्या अमित से कम पढ़ी लिखी हो पर देखो कितना सब को प्यार और सम्मान देती हो । चाची जी के इस प्यार ने फिर मेरे विचारों में हलचल कर दी ।
  इनके प्यार और स्नेह ने मुझे समझा तो है मैं अमित के लिए कुछ हूं ये तो नही पता पर परिवार ने तो प्यार और अपनापन पूरा दिया है ।
चाची जी के प्यार से मैं अपना इरादा नहीं बदलूंगी ।

  नही मैं सुमित्रा मिश्रा अब अपने लिए कुछ करूंगी मैं बच्चे और परिवार के लिए अपने को भूल गई थी ,अमित को अपना बदला हुआ हुलिया दिखाऊंगी ।
    अब सुमित्रा मिश्रा अपनी राह खुद तय करेगी
स्वरचित
पूजा मिश्रा  

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