शादी से ही बचेगी घर की इज्जत – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

 सूर्यमणि बाबू के पूर्वज जमींदार थे अंग्रेजी सल्तनत के समय।जमींदारी भले ही चली गई थी। किन्तु सम्पन्नता अभी भी बरकरार थी। वे  काफी धन-दौलत और जमीन-जायदाद के मालिक थे।    उनके परिवार में उनकी पत्नी शिवांगी, एक पुत्री और दो पुत्र थे। उनकी पुत्री अनामिका उम्र में सबसे बड़ी थी, जबकि उसके दोनो भाई छोटे थे। … Read more

एक हाथ से ताली नहीं बजती। – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

  चारों तरफ से निराशा हाथ लगने के बाद शुभा उस इलाके के पंडित से मिली जो लड़के-लड़कियों की शादी करवाने के लिए प्रसिद्ध थे।     बेसहारा विधवा दो-तीन वर्षों से अपनी बेटी की शादी के लिए परेशान थी। वह अपने घर में ही घरेलू उद्यम करके कुछ उपार्जन करती थी, जिससे उसकी परवरिश होती थी।     उसने … Read more

फूटी आंँखों न भाना – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

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 उस दिन वातावरण पर अंधेरा उतरने के बाद शनि के घर में प्रवेश करते ही उसकी धर्मपत्नी रीतिका ने  अपनी आंँखें लाल-पीला करते हुए उसको खरी-खोटी सुनाते हुए कहा कि घर में सबेरे( अंधेरा होने से पहले) आकर वह क्या करेगा?.. दफ्तर  में नई खूबसूरत स्टाफ आई है  और उसकी सुन्दरता के जाल में उसका … Read more

एक फोन काॅल से बदली जिन्दगी। – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

उस कस्बे के खपरैल घर में रहनेवाली नीता विधवा थी।उसके पति की मृत्यु वर्षों पहले बीमारी से हो गई थी। उसकी एक पुत्री रंभा और एक पुत्र अरुण थे। वह अपने घर में सिलाई का काम करके अपना और अपनी संतान की जीविका चलाती थी।.                      … Read more

आंँखों पर चर्बी चढ़ना – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

 लड़के के पिता महेश  और उसके पुत्र प्रबोध को लड़की के अभिभावक द्वारा अपनी लड़की के दिये गए फोटोग्राफ्स पसंद पड़ गये। इसके साथ ही उसके बायोडाटा व  अन्य जानकारियों से भी पिता-पुत्र प्रभावित हुए। उसके परिवार के अन्य सदस्यों ने भी इस रिश्ते को पसंद किया था।  महेश उस शहर का धनी व्यवसायी था। … Read more

मैं बेटी के मोह में सही-गलत का फर्क भूल गई थी। – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

जागृति एक विधवा महिला थी। कुछ वर्ष पहले एक दुर्घटना में उसके पति की मृत्यु हो गई थी। उस समय से उसकी जिन्दगी में सन्नाटा छा गया था। उसकी जिन्दगी मरूभूमि की तरह बंजर हो गई थी। उसके जीने का एक मात्र सहारा उसकी इकलौती संतान उर्वशी ही थी।उसकी वजह से ही उसके जीवन का … Read more

जीवन-संध्या के कुछ पल – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

   सुबह तड़के नित्य कर्मों से निवृत होकर बलदेव लाठी टेकता ओसारे में पड़ी उस खाट की ओर आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ने लगा, जिससे उसका संबंध वर्षों से स्थापित हो गया था।    खाट के पास पहुंँचकर पल-भर के लिए वह रुका, फिर वह खाट पर बैठ गया। खाट पर बैठे-बैठे उसने अपनी लाठी को वहीं दीवार के सहारे … Read more

दोष – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

उसकी सास महीनों से कमला को भला-बुरा कहकर उसे प्रताड़ित कर रही थी जिसको वह सिर झुकाकर वह सुन लेती थी लेकिन जब उसकी सास ने उसके पति की दूसरी शादी की घोषणा की तो कमला की देह में आग लग गई। उसकी आंँखों से क्रोध की चिन्गारियांँ निकलने लगी। उसने विफरते हुए कहा, “मांँजी!.. … Read more

रोटी – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

अपने गांव के पड़ोसी टोले से मांगी गई रोटियाँ कारी के लिए अनमोल थी। अपने दो बच्चों के साथ तीन शाम तक भूख से लड़ने के बाद गिड़गिड़ाने और आरजू-मिन्नत करने के बाद उसे रोटियाँ नसीब हुई थी, उस टोले के सचिन की मांँ की मेहरबानी से।    नौरंगी जब जिन्दा था तो कारी रानी का … Read more

कैसे हैं ये बंधन – मुकुन्द लाल   : Moral stories in hindi

   “छोड़ दे बाबूजी!… हे मांँजी छोड़ाओ हमको!… बचाओ दीदी!… अरे कोई तो समझाओ!… मेरा बापू मजबूर है, कहाँ से देगा रुपया!… तरस खाओ भैया जी!…”    नलिनी विलाप कर रही थी। रो-रोकर अपनी जान की भीख मांग रही थी। अपने ही परिवार के अपने सास-ससुर, जेठ-जेठानी और अपने पति को संबोधित  करके गुहार लगाती रही लेकिन … Read more

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