और दीप जल उठे –   किरण केशरे

माधव और गुनिया रोटी चटनी की पोटली बांध कर सेठ धरमराज की कोठी पर आज सुबह सुबह ही साज-सज्जा के लिए चले गए थे  !

सेठजी ने कल शाम को ही कड़ा निर्देश दे दिया था की, कल जल्दी कोठी पर आकर सजावट और हार तोरण से पूरी कोठी को सजाना है  ,दीपावली के दिन ही उनका लाड़ला बेटा भी अमेरिका से आ रहा था सो, दोहरी खुशी के साथ दिवाली मनेगी !

शाम होते होते दीप झिलमिलाने लगे , सेठजी की कोठी जगमगा उठी थी। पकवानों की खुशबु हवा में घुल रही थी।

माधव और गुनिया बड़ी आस और लगन से आज कोठी में काम कर रहे थे की, सेठ आज दोहरी खुशी में जरूर कुछ इनाम और मिठाई देंगे, जिससे उनकी दिवाली भी अपने बच्चों के साथ अच्छी मन जाएगी  ।

सेठजी , बेटे के आने की खुशी में शायद भूल गए की , माधव और गुनिया सुबह से उनकी सेवा में लगे हैं। माधव और गुनिया जानते थे की, सेठजी बहुत अच्छे हैं, लेकिन आज उन्हें वो दोनों याद क्यों नही रहे  ! सेठजी के घर दावत जमी थी, बेटे के दोस्त, और रिश्तेदारों के आने से खुशियों भरी चहल पहल मची थी।

शाम ढल रही थी, वो दोनों भी सेठजी से आज्ञा लेकर जाने लगे , मन में उदासी छा गई थी, क्योंकि, वो जानते थे की घर पर मुनिया और छोटू आस लिए बैठे होंगे की, माई- बाबा सेठजी के यहाँ से जरूर पकवान और इनाम लाएंगे,, जिससे उनकी दिवाली भी खूब अच्छी मनेगी  !

पास ही मजदूरों की बस्ती में उनकी झोपड़ी भी थी। दोनों

बड़े भारी मन से घर की और चल दिए थे।

लेकिन यह क्या..?

झोपड़ी दीपों से जगमगा रही थी ,आसपास की झोपड़ियों में भी दिए जल रहे थे, और बच्चे नए कपड़ो में पटाखे फुलझड़ी चला रहे थे। पूरी बस्ती में खुशी का माहौल दिख रहा था  , माधव और गुनिया विस्फारित नेत्रों से खड़े देख ही रहे थे की ,छोटू और मुनिया दौड़ कर पास आ गए, खुशी उनके चेहरे से मानो टपक ही रही थी।

ये सब किसने… कैसे  ?

माधव गुनिया का स्वर आश्चर्य से भरा हुआ था।

बाबा, आज दिन में सेठजी अपने बेटे के साथ बड़ी सी मोटर गाड़ी में आए थे, और पूरी बस्ती में मिठाई, कपड़े,दीए पटाखे सबको देकर गए , छोटू का स्वर खुशी से छलक रहा था!

माधव ओर गुनिया की आँखे भर  आई थी,और दिल से सेठजी के लिए अनगिनत दुआएँ निकल रही थी। वो मन ही मन  सोच रहे थे,क्या भगवान ऐसे भी होते हैं!!

   मौलिक

   किरण केशरे

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