उन्मुक्त आकाश –   किरण केशरे 

  आज सुबह से ही बेला अनमनी सी थी ।कल ही बिटिया राशि का ऑनलाइन बैंक का इंटरवियू था ,जिसमें उसे प्रथम प्रयास में ही सफलता मिल  गई थी।राशि पढ़ने में होशियार थी ,इसी वर्ष MBA में बहुत अच्छे अंको से उत्तीर्ण हुई थी।बेला का मन घबरा रहा था ।अभी तक तो इंदौर में ही थी ,लेकिन अब पता नही कौन से शहर में जाएगी ।

सोचकर ही वह परेशान हो उठी ।आजकल के माहौल को देखते उसकी घबराहट स्वाभाविक भी थी, लेकिन राशि के सपनों को तो जैसे पंख मिल गए ।वह उसकी मम्मी की घबराहट को महसूस कर रही थी ।15 दिनों बाद 3 महीने ट्रेनिंग होगी इंदौर में ,फिर ब्रांच सिलेक्शन मुंबई ,पूना ,दिल्ली।बेला सोच रही थी राशि की पढ़ाई पूरी हो, तो उसके विवाह की तैयारी कर अपने कर्तव्य को पूर्ण करें और राशि अपना सुखी संसार बसाए ।

आज सुबहसे ही राशि मम्मी के आसपास रसोई में हाथ बटा रही थी और अपने मनपसंद खाने की फरमाइश कर बोली मम्मी आज मेरी फेवरेट पास्ता ओर मंचूरियन बनाओ ना, कुछ महीनों बाद तो मुझे आपके हाथ का नसीब नही होगा ।सुनकर बेला की आंखे भर आईं बोली मैं तुझे कहि नही जाने दूँगी।शादी हो जाए फिर तुझे जैसा लगे वो करना ।राशि माँ के पास आई और हाथ पकड़कर सोफे पर बैठा दिया।ओर फिर बड़े ही शांत संयत स्वर में बोली मम्मी आपने मुझे इतना पैसा लगाकर उच्च शिक्षा दिलवाई।क्यों ?

 शादी तो मेरी स्नातक होकर भी हो जाती ।लेकिन मैं जीवन मे उन्नति करू आत्मनिर्भर बनु, यही पापा ओर आप चाहते थे।तो अब ये अवसर मुझे मिला है तो मेरी हिम्मत बनिये ,आपका डर मैं समझती हूं ।लेकिन मैं जीवन ऐसा कोई काम नही करूंगी ,जिससे पापा ओर आप को शर्मिंदगी उठाना पड़े, इतना विश्वास मुझ पर रखिये मम्मी।

क्या आप मुझे आत्मनिर्भर नही देखना चाहती ।राशि की आंखों में आंसू थे।ओर बेला वो तो राशि की बातें सुनकर ,एकटक उसे देखते हुए सोच रही थी कि वो तो अभी तक अपनी बेटी को नन्ही गुड़िया ही समझ रही थी और अपने आँचल में छुपा कर रखना चाहती थी ,वह इतनी समझदार हो गई है कि, अपने हिस्से का *उन्मुक्तआकाश* खुद तलाश रही है ।और अपने सपनों को पंख लगा कर उड़ने की तैयारी कर रही है।    

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