बेटा जो बुलाए मां को
चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है, स्पीकर पर काफी तेज माता के भजन चल रहे थे ,सोसायटी के सभी लोग मां की पालकी लिए हर्षोल्लाह से गाने भजन गाते हुए जा रहे थे। तभी समिति के सचिव पुनीत जी ने बिट्टू जी को आवाज़ लगाई ।
बिट्टू जी ए बिट्टू जी चलिएगा, माता के दिन चल रहे हैं मां की पालकी में हाथ लगाकर पुण्य के भागीदार बनिए और देखिए मां का भंडारा है मां की सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं। ऐसा अवसर बार-बार नहीं आता ,आप भी चलिए मंदिर के प्रांगण में वहां मां का स्वरूप पहली बार सोसाइटी में विराजमान किया गया है ।आप परिवार सहित मां से मिल आइये।
और हां भाभी जी को भी साथ ले ले लीजिएगा बहती गंगा में हाथ धोकर पुण्य के भागीदार बनिए बिट्टू जी।
इस पर बिट्टू जी ने जेब से रुपए निकलते हुए पुनीत जी को देते हुए कहा,समय मिलते ही जरूर आऊंगा भाई साहब,पर अभी-अभी आपने ही कहा ना की मां की सेवा कर लीजिए, मां की सेवा से बढ़कर कुछ नहीं ,तो मैं आपको बताता हूं इस समय मेरी घर की मां, मेरी अपनी मां को हमारी जरूरत है।
ऐसा कहां लिखा है की देवी मां जब ही प्रसन्न होती है कि जब हम उनसे मिलने मंदिर जाएं, मां तो कहती है कि अपने घर के बुजुर्ग बीमार हों और उन्हें हमारी आवश्यकता हो तो हम उनकी सेवा करें। मां अंबे तो बहुत कृपालु होती है अपनी कृपा अपने बालकों पर निस्वार्थ बरसाती है तो क्यों ना हम बालक
भी अपने मां-बाप की सेवा करें, उन्हें एहसास कराये कि जिस तरह बचपन में जब हमें उनकी जरूरत थी तो उन्होंने कितने ही प्रेम ओर स्नेह से हमारा पालन-पोषण किया,हर परिस्थिति में साथ निभाया तो आज जब उन्हें हमारी आवश्यकता है तो अब हम बच्चे उनके साथ हमेशा हर पल हैं, और ये सिर्फ फर्ज नहीं मां बाप का कर्ज भी है जो हमें उसी प्रेम और स्नेह से अभिसिंचित कर उन तक पहुंचाना चाहिए।
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इस पर समिति के सचिव पुनीत जी की प्रतिक्रिया कुछ आश्चर्यचकित होते हुए थी उन्होंने कहा घर में मां है!
तभी वहां बिट्टू जी की पत्नी सुनिधि वहां आती है और पुनीत जी को समझाती है, कहती है भाई साहब ये सही कह रहे हैं जब इस समय हमारी मां को हर पल हमारी आवश्यकता है तो हम उन्हें छोड़कर कैसे जा सकते हैं।
जब हम अपनी मां का हाथ पकड़ते हैं उनके काम करते हैं तो मां के अंतर्मन से निकली दुआएं स्वयं मां अंबे की कृपा है, प्रसाद है। जब व्यक्ति वृद्धावस्था की तरफ जाता है तो वह खुद एक बालक बन जाता है, कभी कभार उसे आवश्यकता ठीक उसी तरह होती है जिस तरह बचपन में मां अपने बालक को नहलाती है संवारती है, लेकिन उसके सारे काम मुस्कुराते हुए करती है।
आज हमारी मां को चोट लगी है, वो स्वयं अपने कार्य करने में इस समय सक्षम नहीं है। तो आज हमारे पूरे परिवार की अरदास माता के चरणों में है कि वह हमारी मां को जल्द से जल्द स्वस्थ कर उनके साथ ही हमें अपने दर्शन प्रदान करें।
भाई साहब आपने एक भजन तो सुना ही होगा
बेटा जो बुलाए मां को आना चाहिए…
आज इस भजन का एक रुप यह भी है
मां-बाप जब बुलाएं बच्चों को आना चाहिए…
क्योंकि माता-पिता और बच्चों का आपस में वह अटूट बंधन है जो कभी नहीं टूटता,और देखिए भाई साहब आज जब हम अपने बच्चों के सामने अपना जैसा उदाहरण रखते हैं हमारे बच्चे भी वही सीखते है। हमारा तो यही मानना है …
जिस घर से बुजुर्गों की हंसी की आवाज आए तो समझना घर में ईश्वर विराजमान है।
जिस घर में नारी सम्मान पाए तो समझना साक्षात लक्ष्मी विद्यमान है।
जिस घर में अतिथि सत्कार पाए तो समझना साक्षात कुबेर का निवास स्थान है।
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जिस घर में हर कोई सुख-दुख की घड़ी में साथ निभाए तो समझना स्वर्ग उसी घर में दर्शनायार्थ लोकायमान है।
इस पर पुनीत जी कहते हैं कि आप सही कह रही है भाभीजी काश हर स्त्री पुरुष को इतनी समझ, इतना ध्यान रहे, क्योंकि बुढापा तो एक ना एक दिन सभी को आना है ,तो क्यूं इस मिट्टी की काया का गुमान करना। ये चार दिन की जिंदगी अपने अच्छे कर्म और बुजुर्गो के आशीर्वाद संग कटे तो ईश्वर कृपा स्वयं ही मिल जाती है।
इतना कहकर पुनीत जी को शायद अपने स्वर्गीय पिता की याद आ गई जिनकी सेवा वो अपनी पत्नी के जिद्दी और घमंडी स्वभाव के कारण चाहकर भी ना कर सके। उन्होंने अपनी आंखों की कोर को रुमाल से पौछते हुए, बिट्टू जी को गले लगा लिया, और कहां बिट्टू जी आप चिंता ना करिए हम सभी की प्रार्थनाएं आपकी माता जी के साथ हैं, जिसके बच्चे इतने अच्छे और सेवाभावी हो तो माता रानी जरूर और जल्द ही उन्हें स्वस्थ करेंगी।
इस चर्चा के बाद सोसाइटी के सभी लोग बिट्टू जी की मां के अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते और बिट्टू जी और उनकी पत्नी को शुभकामनाएं प्रेषित करते, एकसुर में भजन गाते आगे बढ़ जाते हैं।
शक्ति दे मां शक्ति दे मां।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश