अरी विमला ! दिन चढ़ आया आज उठना नहीं क्या ? पता नहीं , कैसी बहू पल्ले पड़ी है । लोगों के घर में खाना भी तैयार हो गया । एक हमारा घर है जो अभी तक बासी पड़ा है ।
दादी की आवाज़ पड़ोसियों को भी सुनाई दे गई । सुबह के पाँच बजे थे और घर का कोई भी सदस्य नौ बजे से पहले बाहर नहीं जाता था , बस उन्हें तो विमला चाची को कुछ न कुछ कहना होता है । ये मामला कोई एक आध बार का नहीं बल्कि महीने में दो चार बार तो सुनने को मिल ही जाता था ।
विमला चाची मेरी पक्की सहेली मानसी की माँ थी । वे बहुत ही मिलनसार, सहनशील और गुणों की धनी थी । मेरी दादी के अनुसार ऐसी बहू नसीबों से मिलती है ।
क्या मानसी की दादी के दिमाग़ में कमी है ? जो चौथे- पाँचवें दिन सुबह-सुबह चीखना शुरू कर देती है । इनके घर में कोई कहने वाला नहीं है क्या? मन करता है कि मैं जाकर बोल आऊँ ।
बड़े भइया खीझकर कहते ।
ऐसी गलती मत कर देना । हमें क्या पड़ी है कुछ कहने की ?
पर ग़लत को ग़लत तो कहना चाहिए । दादी ! आपकी तो सहेली है । आप क्यों नहीं समझाती ?
ना बेटा , मैं तो बुढ़ापे में अपनी दुर्गति नहीं करवाती । समझाया तो उसे जाता है जो नासमझ हो । कांता तो बड़ों-बड़ों को समझाने वाली है । उसके पास हर बात का जवाब है। चलो , तुम भी किसका क़िस्सा लेकर बैठ गए ? दिन शुरू हुआ है , भगवान का नाम लो ।
इस प्रकार दादी-पुराण को बंद किया गया ।
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अक्सर मेरी मम्मी दादी से कहती –
आपको याद है अम्मा? जब विमला की शादी हुई तो उनकी सास कितना गुणगान करती थी । हमारी विमल ऐसी है हमारी विमल वैसी है । पूरे मोहल्ले की बहुएँ मन ही मन विमला से चिढ़ने भी लगी थी क्योंकि सारी सासें अपनी बहुओं की तुलना विमला से करके उन्हें किसी न किसी बात पर नीचा दिखाती थी ।
सब याद है बेटा । कहते हैं ना कि यदि अपना ही आदमी कद्र ना करें तो दुनिया भी कद्र नहीं करती । ऐसा ही विमला के साथ हुआ । पता नहीं कैसे और किसने महेश के मन में शक का बीज बो दिया कि ज़रूर विमला के चरित्र में कोई खोट है तभी तो साधारण से भी बहुत नीचे दिखने वाले लड़के के साथ ऐसी सुंदर चाँद सी लड़की ब्याह दी ।
वैसे अम्मा, बेचारी विमला के साथ हुई तो ज़्यादती ही । कैसी दूध सी उजली और सुघड़ लड़की का हाथ महेश जैसे तुनकमिजाज , बंदर से लड़के के हाथ में दे दिया ।
सब अपने-अपने कर्म हैं । गरीब घर की सात लड़कियों में सबसे बड़ी है । अरे , कौन करता इस बिगड़े लड़के का ब्याह? वो तो कांता की ननद के यहाँ दुकान पर विमला का बाप मुनीमगीरी करता था । बस बेचारे को फँसा लिया ।
शादी के बाद हुआ भी करिश्मा । पूरा-पूरा दिन बाहर आवारागर्दी करने वाला महेश, विमला के आगे-पीछे घूमने लगा । अपने पिता के साथ कारोबार में हाथ बँटाने लगा । बस पूरे घर ने विमला को सिर माथे पर रख लिया ।
देखते ही देखते विमला डेढ़- दो साल के अंतर पर दो बेटों और एक बेटी की माँ बन गई । यहाँ तक कि उसने अपने पिता की भी रूपये- पैसों से बड़ी मदद की ।
पर विमला के नसीब में ज़्यादा दिन का सुख नहीं था । शादी के दस साल बाद ससुरालवालों और महेश को विमला में कमियाँ नज़र आने लगी ।
अम्मा , क्या कभी कांता ताई ने कोई बात बताई ?
हाँ , जब एक दिन गली में पचासों औरतों के सामने विमला को भला- बुरा कहा तो मैंने टोकते हुए कहा था-
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कांता जीजी , क्या हो गया आपको ? बिना गलती के विमला को क्यों डाँट दिया ? वैसे तो सारे दिन विमल – विमल करती हो और आज उसकी बेइज़्ज़ती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना सा मुँह हो गया था ।
देख रमा , पड़ोसन हो , पड़ोसियों की तरह रहो । मेरी देवरानी बनने की कोशिश मत करो । ख़बरदार! जो हमारे घर के मामले में कभी बोली । ये जितनी सीधी दिखती है ,उतनी है नहीं । वो तो इस दफे महेश की दुकान पर इसका कोई रिश्तेदार आया तब इसकी असलियत सामने आई ।
आपने फिर कभी जानने की कोशिश नहीं की कि पूरा मामला क्या था ?
जानने की इच्छा किसे नहीं होगी ? पर कांता से नहीं , मुझे क़रीब दो साल पहले विमला ने ही बताया कि उसकी दूर की रिश्तेदारी में एक नशेडी आदमी उससे विवाह करना चाहता था और जब उसके पिता ने इस रिश्ते को मना कर दिया तो उसने ही बदला लेने की बात कही थी । शायद उसी ने इतने सालों बाद कहीं से मेरे ससुराल का पता मालूम करके यह आग लगाई हो ।
अम्मा, ऐसा लगता है कि जैसे किसी फ़िल्म की कहानी है ।विमला चाची कुछ कहती क्यों नहीं? मैं मानसी से कहूँगी कि अपनी माँ का साथ दें ।
आज नहीं तो कल , बच्चे अपने आप बोलेंगे । महेश तो पहले से ही मोटी बुद्धि का है पर कम से कम माँ को तो समझना चाहिए । निर्दोष विमला की आह लगेगी इन दोनों माँ- बेटे को।
समय कभी ठहरता नहीं है । ऐसा ही हुआ । विमला चाची के दोनों लड़के ऐसे होनहार निकले कि पढ़ाई पूरी करते ही एक बैंक में और दूसरे का नेवी में चयन हो गया । मानसी और मैं एम० ए० में पहुँच गई ।
पर विमला चाची के साथ सास और पति के रवैये में सुधार नहीं हुआ । उनके पति ने सीमा तो उस दिन पार कर दी जब बड़े बेटे के रिश्ते को लेकर आए लोगों के सामने महेश ने अपनी पत्नी को दुत्कारते हुए उसे गाली दी और लड़की वाले बिना चाय पीए यह कहकर चले गए
कि जिस घर में औरतों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार होता है, वहाँ वे अपनी लड़की के रिश्ते की बात चलाने में रुचि नहीं रखते । इस बात का ठीकरा भी विमला के सिर फोड़ा गया कि मेहमानों के सामने आने की क्या ज़रूरत थी ।
पर विमला चाची के अच्छे दिन शुरू होने थे । जब बेटों को इस घटना का पता चला तो उन्होंने फ़ैसला कर लिया कि अब वे अपनी माँ को इस ज़िल्लत की ज़िंदगी से छुटकारा दिलाकर रहेंगे । बेबुनियाद आरोप की सजा से मुक्ति देंगे ।
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अगले ही दिन मोहल्ले से दूर एक किराए के मकान में विमला चाची और मानसी को लेकर दोनों बेटे चले गए । जाते समय भी दोनों माँ- बेटे ने मोहल्ला सिर पर उठा लिया पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ ।
हमारे घर से विमला चाची का संबंध मेरी और मानसी की दोस्ती के माध्यम से बरकरार रहा । बड़े बेटे का उसी के साथ बैंक में कार्य करने वाली लड़की से विवाह हो गया और छोटा अपनी नौकरी पर चला गया ।
इधर महेश और उसकी माँ की करनी भुगतने का समय आ गया था । सास डायबिटीज़ की रोगी थी , बदपरहेजी के कारण ऐसा ज़ख़्म हुआ कि लाख कोशिश के बावजूद ठीक नहीं हुआ । महेश तो पहले से ही केवल बातों का खाता था ।
अब खाने- पीने की व्यवस्था बिगड़ने के कारण उसका स्वास्थ्य भी गिर गया । आवारा तो बचपन से था , बिना रोक- टोक के चौबीस घंटे दारू- सिगरेट में धुत्त रहने लगा ।
एक दिन मेरी दादी के पास विमला चाची ने फ़ोन किया-
चाची, कई दिन से जी बड़ा बेचैन है । माँजी और ये कैसे हैं ? चाची ! थोड़ा ध्यान रखना ।
अरे बेटा , कौन ध्यान रखेगा ? इनका किया सामने आ रहा है।
इतना कहकर मेरी दादी ने सारी हक़ीक़त बता दी । एक घंटे के अंदर ही हमने देखा कि विमला चाची रिक्शे से अपना बैग लेकर उतर रही थी ।
यह देखकर मुझे बहुत ग़ुस्सा आया और मैंने कहा- क्या है इन विमला चाची को, इन्हें भी बेइज़्ज़ती करवाने की आदत हो गई है ।
तू अभी नहीं समझेगी बेटा ! हर एक का अपना-अपना कर्म है…..मानने वालों के लिए, कुछ बंधन अटूट होते हैं । सब तरह के आदमी हैं, कुछ निभाकर रहते हैं और कुछ समस्याओं से घबराकर हाथ खड़े कर देते हैं ।
यह कहकर दादी ने लंबी साँस ली ।
करुणा मलिक