“आत्मनिर्भरता” –  सुधा  जैन

 नेहा, सुरभि, कल्पना, आयुषी चारों सहेलियों का अपना संसार है ।महीने में एक बार चारों मिलती है। अपने सुख दुख की बातें करती है… कुछ खाती पीती हैं… और फिर अपने अपने घर चली जाती हैं। हर बार उनकी बातचीत का विषय घर ,परिवार पति , सास यही रहता है। आयुषी अपनी सास के साथ रहती है। आयुषी की शिकायत यह है कि मेरी सास बड़ी ही सफाई पसंद है.. बाहर से कुछ भी चीज लेकर आओ.. भले ही वह आलू हो ,तरबूज हो, कोई भी फल हो ,पहले उसे धोना पड़ेगा… फिर अपने स्थान पर रखो ।कोई मेहमान भी सोफे पर आकर बैठकर चला जाए तो अगले दिन कवर को धोना पड़ता है। पैरपोंछ और को भी हर दिन धोना पड़ता है… कुछ समझ में ही नहीं आता कि इनकी सफाई का फोबिया कब खत्म होगा? मैं तो बहुत थक जाती हूं.. और परेशान भी हो जाती हूं.. इस समस्या का कोई हल हो तो बताओ कभी-कभी तो मुझे लगता है सब कुछ छोड़कर चली जाऊं…

 सुरभि का कहना यह है कि मेरी सास बहुत ही ज्यादा धर्म ध्यान करती हैं ..हर वक्त मंदिर जाना, पूजा पाठ करना, और हम सब को भी मंदिर जाने और पूजा पाठ करने के लिए बार-बार बोलना… मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता …लेकिन फिर भी मन मार कर करना पड़ता है.. क्या करूं? कुछ समझ में नहीं आता। नेहा बोली” मैं मेरी जिठानी के मारे परेशान हूं ..हर बात में अपनी चलाती हैं.. मेरी बिल्कुल भी चलने नहीं देती . चाहे खाने का मीनू हो या घर का कोई काम.  कुछ समझ में नहीं आता और मुझे लगता है कि मेरी  प्यारी सी जिंदगी देरानी जिठानी के झगड़े में खत्म ना हो जाए “।

कल्पना को अपने पति से शिकायत थी वह घर के कामों में बिल्कुल भी सहयोग नहीं देते.. बिल्कुल तानाशाह बनकर रहते हैं कुछ भी कहो तो बोलते हैं कि मैं तुम्हें क्यों लाया? घर का काम तो  करना पड़ेगा.. बच्चों की देखरेख भी तुम्हें करना पड़ेगी.. मैं करती भी हूं पर मैं भी इंसान हूं कभी-कभी थक जाती हूं। चारों  सहेलियां अपने से घिरे  रिश्तो से परेशान थी… जीवन जीने में मजा नहीं आ रहा था… क्या करें ?क्या ना करें ?समझ में नहीं आ रहा।



 जब चारो सहेलियां अपनी अपनी परेशानियां बता रही थी.. तब बात की पास में एक वृद्ध महिला बैठी हुई थी और उन सभी की बातों को ध्यान से सुन रही थी। वह हंसकर बोली.” अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं कुछ  कहूं” सहेलियों ने कहा “नहीं, नहीं कहिए आप. हमें बुरा नहीं लगेगा ..तब उस वृद्धा ने कहा कि इन दिनों सभी रिश्तो में दरार सी आ गई है और इसके जिम्मेदार हम सब हैं. उन्होंने आयुषी को समझाया कि अपनी सास को स्पष्ट शब्दों में कहो की इतनी साफ-सफाई अच्छी बात नहीं…  और मुझसे तो नहीं होगी …कभी-कभी किसी बात के लिए हमको खुद को ही स्टैंड लेना पड़ता है…

 सुरभि को कहा” अपनी सास को उनका धर्म ध्यान करने दो लेकिन तुमसे जो हो सके वही करो” और अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जियो।

 नेहा से कहा यह दिरानी जिठानी का रिश्ता तो बहुत ही उलझन वाला होता है.. इसलिए सबसे बेहतर तो यह है कि तुम अपनी राह अलग कर लो.. और अपने हिसाब से अपने घर को चलाओ… क्योंकि आज नहीं तो कल दिरानी जिठानी का साथ रहना मुश्किल है।

 कल्पना को समझाया कि तुम तो पढ़ी लिखी हो …अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ.. आत्मनिर्भर बनकर ही हम कुछ कर सकते हैं. भले ही कोई काम हो, छोटा मोटा ही हो.. शुरुआत तो करो.. क्योंकि कब तक हम किसी के मोहताज बने रहेंगे… जब तक कोई भी महिला अपने पैरों पर खड़ी नहीं होती ..तब तक उसके किसी सपने को पूरा नहीं कर सकती। मेरी प्यारी बेटियों …बस मेरी इस बात को याद रख लो की तुम सब कुछ ना कुछ कमाओ जरूर..  ज्यादा नहीं तो इतना जरुर कमा लो कि अपनी रोटी खा सको.. स्वाभिमान की जिंदगी बहुत बड़ी बात होती है .अन्यथा तो सारे रिश्ते हमें परेशानी देते हैं। किसी के त्याग, समर्पण, अपनापन का मूल्य कहां कर पाते हैं? इसलिए अपने आप को खुश रखना, आत्मनिर्भर बनना, अपने लिए स्वयं खड़े होना, गलत बात का विरोध करना ,बहुत जरूरी है। आत्मनिर्भरता ही आत्म सम्मान है। चारो सहेलियां वृद्धा की बात को बड़े ध्यान से सुन रही थी ..और वह उन्हें किसी देवदूत से कम नहीं लग रही थी।

 

 मौलिक रचना

 सुधा  जैन

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!