नीरज – नीलिमा सिंघल

नीरजा की शादी उसके माता-पिता ने लड़के वालो की मर्जी से की थी और शादी करके उसको भूल ही गए थे जैसे,,,साथ के साथ ही गौना भी करके विदा कर दिया,,उसके बाद उसको कभी नहीं बुलाया।

नया घर नए लोग नये रिवाज सब निभाते हुए नीरजा के दिन बीत रहे थे । शादी के 20 दिन बाद उसका मन उदासीन हो रहा था तो उसकी सास ने कहा आपने घर फोन मिला लो खैर खबर मिल जाएगी तो अच्छा लगेगा।

नीरजा ने फोन मिलाया और दूसरी तरफ उसके पापा ने फोन उठाया जिनसे नीरजा हमेशा से डरती थी,,,नमस्ते पापा बोलते ही दूसरी तरफ से उसके पापा की कड़क आवाज सुनाई दी,,आ गयी याद हमारी,,,ससुराल जाकर भूल ही गयी,,और वैसे भी अब तो वंहा सब हैं जिन्हें सब बताएगी हम तो कुछ हैं ही नहीं।

शादी के 20 दिन बाद तक मायके से कभी फोन नहीं आया और आज उसने मिलाया तो भी डांट उसको पड़ी,,उसकी आंखे छलछला उठीं,,जिसे उसकी सास ने देख लिया और शाम को जब रवि उसका पति अपने काम से वापस आया तो उसको बोला कि काफी दिन हो गए हैं नीरजा को उसके मायके जाकर सबसे मिलवा ला,,,

और छुट्टी वाले दिन रवि के साथ खुशी खुशी मायके जाने को तैयार हुई,,,

मायके पहुंचकर उसका बड़ा ठंडा स्वागत हुआ,,नीरजा के सारे उत्साह पर जैसे पानी पड़ गया,,

2 घण्टे भी बड़ी मुश्किल से बीते और नीरजा वापस अपनी ससुराल जाने को उठ खड़ी हुई,,



फिर तो जैसे ये एक पैटर्न बन गया खुद जाती खुद वापस आ जाती,,मायके से ना बुलावा आता ना कोई फोन,,,

जब अकेले होती तब यही सोचती कि क्या वो एक बोझ थी जिसे उसके माता-पिता ने अपने सिर से उतार फेंका था,,

जब भी मायके वालों को जरूरत होती वो हमेशा वंहा होती पर कटाक्ष जैसे उसका पीछा नहीं छोड़ते थे,,

धीरे-धीरे वो 2 बच्चों की माँ बनी सास की तबियत भी खराब रहने लगी पति भी ज्यादातर टूर पर रहता था,,,मायके की ललक उसकी पलके नम कर देती थी पर उसने आवरण ओढ़ लिया उसके दिल मे क्या चल रहा है किसी को पता नहीं लग पाता था,,डिप्रेशन की वज़ह से सिर दर्द रहने लगा था,

उसकी शादी के 15 साल बीत गए थे उसके पापा की हार्ट अटैक से डेथ हो गयी थी,,अब उसकी माँ और भाई ने सारे रिश्ते ख़त्म कर लिए थे,,जरूरत के समय बुलाते पर तानों के साथ,

नीरजा थकने लगी थी अब,,,,,,और उसने मायके की ललक को कहीं अंदर दफना दिया जब उसके माँ भाई ने उससे रिश्ता तोड़ने की बात कही ओर फिर कभी घर की चौखट पर कदम ना रखने का फरमान सुनाया ,,उसके मासूम बच्चों तक पर इल्ज़ाम लगा दिया कि नानी के घर से समान भरने आते हैं जबकि नीरजा उनका ही घर भरती थी ,,,अपने पति के खिलाफ कुछ ना सुनने वाली नीरजा ने अब समझौते की डोर भी तोड़ दी।

अपने कुचले हुए रिश्तों को नीरजा ने छोड़ दिया और अपने आत्मसम्मान के लिए मायका भी छोड़ दिया,,,

कभी-कभी आँखों के कोर आज भी भीग जाते हैं जिन्हें नीरजा छुपा लेती है,,,वो एक बोझ ही थी उनके लिए जिन्होंने उसके आत्मसम्मान पर बचपन से ही चोट की थी। ।।

इतिश्री

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