अपनों का साथ – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

” विपिन आप आ गए ….क्या बात है इतने परेशान क्यो हो ?” पति के घर आते ही संध्या ने पूछा।

” कुछ नही बस ऐसे ही !” विपिन ने संध्या को टाल दिया और अनमना सा सोफे पर अधलेटा हो गया। विपिन व संध्या के दोनो बच्चे आठ साल का रोहान और दस साल की रूही विपिन को यूं परेशान देख ना तो आज उससे लिपटे ना आइसक्रीम की डिमांड की बल्कि उठकर अपने कमरे में चले गए।

” क्या बात है विपिन कुछ तो परेशानी है वरना आपको इतना परेशान मैने आज तक नही देखा।” संध्या उसके पास आकर बैठते हुए बोली।

” संध्या सब खत्म हो गया … मैं हार गया !” विपिन रोते हुए बोला।

” क्या ….ऐसा क्या हुआ है प्लीज मुझे बताइए!” संध्या विपिन को इस हाल में देख परेशान हो गई।

” संध्या हमारा बहुत बड़ा नुकसान हो गया फैक्ट्री में …जो ऑर्डर हम आस्ट्रेलिया भेजने को बना रहे थे वो सारा जल कर खाक हो गया जिस कमरे में सारा बना हुआ और कच्चा माल था वहां शॉर्ट सर्किट से आग लग गई फैक्ट्री को भी बहुत नुकसान पहुंचा है उसकी मरम्मत तक को मेरे पास फूटी कोड़ी नही.. !” विपिन रोते हुए बोला।

” ओह….अब क्या होगा विपिन उस ऑर्डर के लिए तो आपने ये घर भी गिरवी रख रखा है !” संध्या परेशान होते हुए बोली।

” संध्या मुझे क्या पता था ये सब होगा इतना बड़ा ऑर्डर था उसके पूरा होने पर बहुत मुनाफा होता इसलिए मैने घर गिरवी रख दिया था पर अब क्या होगा नहीं पता। ” विपिन लाचारी से बोला।

संध्या को कुछ समझ नही आ रहा था बैठे बिठाए ये क्या हो गया। अच्छी खासी जिंदगी चल रही थी छोटी सी कपड़ो की फैक्ट्री और तीन कमरों के इस घर में पर अचानक एक विदेशी को उनका बना कपड़ा इतना पसंद आया की विपिन को एक करोड़ रुपए के समान का ऑर्डर मिल गया जिसे पूरा करने के लिए विपिन ने घर गिरवी रख दिया हालाकि संध्या ने मना किया था कि जितना मिल रहा काफी है पर विपिन ने उस वक्त संध्या की बिल्कुल नही सुनी और आज ये हो गया। 

” विपिन जो होगा देखेंगे आप इतना परेशान मत होइए !” संध्या ने विपिन को कहा।

” कैसे परेशान न होऊं संध्या बैंक से मैने छह महीने के लिए लोन लिया था चार महीने होने को है जब बैंक पर पैसा नहीं पहुंचेगा तो वो तो घर की कुर्की कर देगा सच मे जिंदगी सुख कम दुख ज्यादा लाती है कहाँ मैं ये सोच खुश था परिवार के लिए और बेहतर सुविधा जुटा पाऊंगा कहाँ जो था वो भी गया !” विपिन रोते हुए बोला।

” जो होगा देखा जायेगा आप परेशान मत होइए। अब ज्यादा से ज्यादा किराए के घर में ही रहना होगा ना कोई नही रह लेंगे …मुझे इस घर से ज्यादा इस घर में रहने वाले लोग प्यारे है । आपको चिंता में देख बच्चे भी परेशान हो गए है और मेरे परिवार के लोग परेशान हो ये मुझे मंजूर नहीं !” ये बोल संध्या अंदर चली गई और आकार एक रूमाल में कुछ बंधा हुआ विपिन को दिया।

” ये क्या है संध्या ?” विपिन ने हैरानी से पूछा।

” आप ये घर खुद से बैंक वालों को सौंप दो और ये मेरे जेवर बेच फैक्ट्री फिर से ठीक करवाओ !”संध्या बोली।

” नही संध्या ये तुम्हारे गहने है इनपर मेरा कोई हक नही !” विपिन उसे गहने लौटता बोला।

” विपिन फैक्ट्री और तुम सलामत रहोगे गहने और बन जायेंगे तुम अभी जो मैं कह रही वो करो इतने मैं कोई किराए का घर का पता लगाती हूं !” संध्या बोली।

” सॉरी संध्या मैने तुम्हारी बात ना मान ये ऑर्डर ले लिया और सब खत्म कर बैठा…मेरे कारण तुम्हे , बच्चों को इतनी परेशानी झेलनी होगी अपना घर जो तुमने इतने प्यार से सजाया इसे छोड़ना होगा !” विपिन शर्मिंदा हो बोला।

” विपिन तुमने ये ऑर्डर हमारे लिए खुशियां खरीदने को लिया था तुम्हे थोड़ी पता था ये होगा रही घर की बात घर वही प्यारा बन जाता जहां खुशियां और परिवार का साथ हो। देखना एक दिन दुख के बादल छटेंगे और सुख का सूरज जगमगाएगा। अब ये मायूसी की चादर उतार फेंको देखो बच्चे भी अपने पापा का इंतजार कर रहे !”संध्या ने विपिन आंसू पोंछते हुए कहा।

” संध्या तुम जैसी जीवनसाथी हो तो इंसान को कोई ना कोई राह निकल ही आती है…शुक्रिया मेरा साथ देने के लिए !” विपिन ने संध्या का हाथ पकड़ते हुए बोला।

दोनो पति पत्नी बच्चों के कमरे की तरफ बढ़ गए जहां बच्चे अपने प्यारे पापा का इंतजार कर रहे थे।

दोस्तों परिवार में दुख परेशानी आ ही जाती है पर अपनों का साथ हो तो हर परेशानी में भी मुस्कुराया जा सकता है। वैसे भी मकान , रुपए पैसे जैसी भौतिक सुख की चीजे जरूरी है पर उससे ज्यादा जरूरी अपनो का प्यार और साथ है।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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