अपनी अहमियत – लतिका श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

आज से मैं भी कुछ नहीं बोलूंगी सुबह से हर किसी से पूछते रहो क्या खाना बनाएं क्या नाश्ता करोगे क्या सब्जी खाना है स्कूल में क्या किया ऑफिस में क्या हुआ ….. पर क्या मजाल जो कोई ढंग का जवाब मिल जाए ..!! एक तो खुद अपने आप कोई कुछ बताता ही नहीं और पूछने पर … अरे क्या रोज रोज वही बात पूछती रहती हो या अब तक तो तुम्हे समझ आ जाना चाहिए था किसको क्या पसंद है या आज स्कूल में ऑफिस में क्या हुआ होगा .. !!

पता नहीं खामोश घर मुझे घर ही नही लगता बस इसीलिए कोई बोले नाबोले मैं बोलती ही रहती हूं पर अब नही बहुत हो गया….!शुभी दुखी हो रही थी मन ही मन खुद को लानत भेज रही थी कितना ज्यादा बोलती हूं मैं ।

मैंने तो सदा घर और घर  के माहौल को खुशनुमा बनाने को ही अहमियत दी है बाहरी दुनिया में तो कितनी जलन कुढ़न स्वार्थ प्रतिस्पर्धा तनाव और दबाव होता है ।घर का हर सदस्य घर में स्वतंत्र और तनाव रहित महसूस करे उन्मुक्त होकर बात कर सके हाल और तरोताजा महसूस कर सके मेरी वरीयता यही रहती आई है।आपसी संवाद बना रहे प्रयास यही रहता है।

शुभी हमेशा इस बात को अहमियत देती आई कि घर में सभी हंसी खुशी से बातचीत करते रहे ।बच्चे जब स्कूल से वापिस आते वह झटपट सारा काम छोड़ उनका हाल चाल लेने लग जाती।शशांक के ऑफिस से वापिस आने पर उसके साथ बैठकर ऑफिस की बातें बांटना चाहती ।

लेकिन इधर कुछ महीनों से वह महसूस कर रही थी कि शशांक और दोनों बच्चे उसके साथ ज्यादा बात  नही करना चाहते।वे लोग खुद से तो कुछ बताते ही नहीं और उसके पूछने पर टालमटोल जवाब बेरुखी से देते हैं ना ही शुभी की किसी बात को अहमियत देते हैं।

शुभी की दुनिया तो घर और घरवालों से ही थी सुबह से रात तक वह सबकी इच्छा का ध्यान रखते हुए घर का माहौल खुश और प्रफुल्लित ही रखती रहती थी ।पहले तो बच्चे भी बहुत उत्साह से अपनी सभी प्रकार की पूरी बातें स्कूल की टीचर की दोस्तों की सब बताते थे मम्मी की प्रतिक्रिया के बिना उनकी कोई बात पूरी ही नही होती थी

 

पर अब तो बच्चे भी टोकने लगे हैं बस मम्मी आपका प्रवचन फिर से शुरू हो गया या अब आप बोलना बंद करेंगी तभी तो और कोई बोल पाएगा ।

कल तनु की सहेलियां आईं थीं शुभी कितनी खुश हुई थी जल्दी से सभी के लिए कॉफी बना कर ले आई थी सोचा साथ में बात करते हुए वह भी पी लेगी… सहेलियों के जाने के बाद तनु का गुस्सा..!! मम्मी आपकी सहेलियां थीं क्या वे जो आप बैठ गईं हम लोगों के बीच आकर …. सारा मूड खराब कर दिया आपने अब मैं कभी अपनी सहेलियों को अपने घर नहीं बुलाऊंगी … आपकी तो कोई सहेली  ही नहीं है क्यों नहीं बना पातीं आप सहेलियां ..!!

शुभी कैसे बताती कि उसे अभी तक की जिंदगी में सहेली बनाने की कोई आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई मेरे बच्चे मेरे पति मेरी सासू मां मेरा घर ही मानो मेरी सहेली बने रहे ।

 

आज ही की लो सुबह से शशांक काफी गंभीर लग रहे थे उनके ऑफिस में कोई समस्या थी शुभी से उनका गंभीर चेहरा देखा नहीं गया ।जानते हैं आज हमारी मेड क्या कह रही थी… फिर बिना शशांक की प्रतिक्रिया की राह देखे उसने फिर से कहना शुरू कर दिया …कह रही थी आपका घर मुझे सबसे अच्छा लगता है जितने भी घरों में मैं काम करती हूं हर जगह कुछ मनमुटाव बना ही रहता है तनाव सा रहता है एक दूसरे से लड़ाई का लोग मौका ढूंढते रहते हैं… लेकिन आपके घर में ऐसा नहीं है… मैं….

हां क्योंकि हमारे घर में तुम किसी को बोलने ही नही देती हो अपनी बात कहने से तुम्हे फुरसत ही नही मिलती …. बीच में ही बात काटते हुए तीखे स्वर में शशांक ने कहा था अभी ही देख लो मेरे दिमाग में ऑफिस  टेंशन का तूफान उमड़ रहा है और तुम्हें मेड क्या कह रही थी इसी पर चर्चा करनी है… कितना बोलती हो तुम भी कभी सोचा है तुमने… कहता शशांक बैग लेकर ऑफिस चला गया था।

अवाक खड़ी शुभी आगे की बात मुंह में रखे चुप हो गई थी … थोड़ी ही देर में एकदम सामान्य होकर सासू मां के बाहर धूप में बैठने की व्यवस्था करने चली गई थी।

मां आपकी चाय बाहर धूप में ही दे दूं या यहीं कमरे में ले आऊं वैसे अभी सुबह की गुनगुनी धूप बहुत अच्छी है यहीं चाय ले आती हूं… कहती शुभी मां के पास पहुंच गई थी।

तू मुझसे पूछ रही है या बता रही है बहू…. अरे रोज की चाय ही तो है जैसे रोज कमरे में पी लेती हूं वैसे ही आज भी कर ना है अब इसमें इतनी बात करने की जरूरत ही क्या है सच में बहू शशी ठीक बोल रहा था तू कितना बोलती है…!!

बेटे की कही सारी बात मां ने सुन भी ली महसूस भी कर ली और त्वरित प्रतिक्रिया भी दे दी..।शुभी विस्मित थी आज मेरे साथ ये क्या हो रहा है या क्या आज ही मैं इन सब पर ध्यान दे रही हूं।

चुपचाप मां को चाय दे आई फिर मां के लिए गरम नाश्ता तैयार करती शुभी के दिमाग में मानो विचारों का समुद्र मंथन आरंभ हो गया था।

क्या मैं सही में ज्यादा बोलने लगी हूं क्या अपने ही घर में अपने घरवालों के साथ भी तोल मोल के बोलना चाहिए!! घर में मेरे सिवा और कोई बोलता भी तो नहीं है!! क्या मैं उन्हे बोलने का मौका ही नही देती हूं!! लेकिन कुछ पूछने पर भी सब कितना संक्षिप्त जवाब देते हैं किसी प्रकार की कोई बात कोई करता ही नही है बस वही सुबह का नाश्ता लंच स्नैक्स डिनर …!!

घर तो वही होता है जो घरवालों की हर तरह की  बातो से हंसी मजाक से हर वक्त गुलजार रहे।

शुभी की कल्पना में तो ऐसा ही घर होता है इसीलिए वह हमेशा हर किसी से बाते करने में किसी की बताई बातें सुनने में बहुत उत्सुकता दिखाई रहती है… बेटा भी जब स्कूल से वापिस आता है वह तुरंत उससे बात करने लगती है कैसा रहा आज स्कूल बेटा क्या किया वहां आज तुमने टिफिन खाया कि नहीं…!!

लेकिन अब नहीं.!! कुछ तो बदल रहा है उसके आसपास जो उसे भी बदलने के लिए बाध्य कर रहा था…. !!

रोज की तरह शाम हुई सब घर वापिस आए शशांक भी और बच्चे भी।

शुभी सबके लिए नाश्ता प्लेट में लगा कर डाइनिंग टेबल पर रख आई रोज की तरह शशांक के या बच्चों के हाथों में थमाने की कोशिश नहीं की ना ही आज उन सब के पास बैठ कर कुछ जानने की जिज्ञासा जताई ।

काफी देर हो गई लेकिन ना ही मम्मी ने आवाज दी ना ही कोई बात की प्लेट पकड़ाई तब बच्चे चुपचाप आकर टेबल पर नाश्ता करने आ गए…शशांक भी रोज की आदत अनुसार कमरे में नाश्ते का इंतजार करते रहे कि अब शुभी आएगी बात करेगी नाश्ते के लिए मनुहार करेगी लेकिन काफी देर हो जाने पर बाहर आ  गए और टेबल पर बच्चों को चुपचाप नाश्ता करते देख खुद भी आकर बैठ गए और नाश्ता करने लगे।सब शुभी की तरफ देख रहे थे और आज शुभी भी सबके साथ सामान्य तरीके चुपचाप नाश्ता कर रही थी वरना रोज तो वह सबको परस परस कर खिलाती थी फिर सबके खाने के बाद अपनी प्लेट लगाती थी…।आज बहुत खामोशी थी ..मां भी  आज बिना आवाज लगाए आकर बैठ गई थीं..शुभी तुम्हारी तबियत खराब है क्या आखिर शशांक ने पूछ ही लिया । नहीं तो एकदम सही है शांति से संक्षिप्त सा जवाब देती शुभी फिर चुप से नाश्ते में मगन हो गई थी।बच्चे बड़े खुश थे चलो अच्छा है आज मम्मी का प्रवचन सुनने नही मिल रहा है।

नाश्ते के बाद शुभी ने टीवी ऑन कर लिया और अपना मनपसंद सीरियल देखने लगी।आश्चर्य चकित से बच्चे खेलने चले गए थे।

रोज की ही तरह रात हो गई डिनर का समय हो गया।

डिनर भी चुपचाप खामोशी से हो गया सभी आश्चर्य से शुभी की ओर देख रहे थे कि अब ये कुछ बोलेगी टोकेगी कहेगी लेकिन शुभी चुपचाप अपनी थाली लगाकर खाने में मगन हो गई फिर सोने के पहले अरसे के बाद एक किताब निकाल कर पढ़ने लगी..!!

अरे शुभी क्या हो गया कोई बात बुरी लग गई क्या कुछ नाराज है क्या….इस बार मां ने ही पूछ लिया ।

नहीं मां संक्षिप्त जवाब था शुभी का।

मम्मी ही तो बात करती थी पूछती थी आज मम्मी ने कुछ पूछा ही नहीं ना ही कुछ बताया ।

पूरा घर ऐसा खामोश लग रहा था जैसे कोई रहता ही नहीं है।

आज भी काम सभी कर रहे थे लेकिन कुछ कमी सी लग रही थी।डिनर खत्म होते ही तनु बोल पड़ी मां आज स्कूल में गेम्स कंपटीशन हुए थे मैंने…..फिर मां को कुछ बोलते हुए ना देख कर आगे के शब्द रुक से गए।

हां क्या किया तुमने शशांक ने उसकी बात आगे बढ़ते हुए पूछा ।

कुछ नहीं पापा बुझे स्वर में तनु ने कहा।

दूसरे दिन भी घर चुप ही रहा क्योंकि घर में बोलने बतियाने वाली एकमात्र शुभी चुप थी।

सबको अजीब लग रहा था शुभी अपने सभी काम राजी खुशी से ही कर रही थी लेकिन बस बात नहीं कर रही थी किसी के ज्यादा पूछने पर बस छोटा सा हां हूं बोलकर चुप हो जाती थी।

तीसरे दिन भी यही माहौल था।

शाम को सब स्वयं ही टेबल पर आ गए और तनु ने मां को सामने बिठाकर स्कूल का पूरा हालचाल बिना पूछे ही बताना शुरू कर दिया…तनु के बाद शशांक ने भी अपने ऑफिस की मजेदार बाते सबको बताने की कोशिश की लेकिन शुभी के विशेष कॉमेंट्स के बिना सबको अपनी बात का कोई मजा नही आ पाया।

आज सबको महसूस हो रहा था शुभी कितने उत्साह से हमारी बाते सुनती थीं पूछती थी सुझाव देती थी कुछ अपनी तरफ से भी बताती थी ।शशांक को भी घर बहुत खामोश और अकेला सा लगने लगा था।अभी तक जिन बातों से घर का माहौल बनाने की कोशिश शुभी कारती रहती थी आज उसी माहौल के लिए सब तरसने लगे थे।

लेकिन शुभी जो अभी तक सबकी इच्छाओं सबकी बातों को हद से जायदा अहमियत देती थी इन दो तीन दिनों में ही जैसे खुद को अहमियत देना सीख गई थी उसके दिल दिमाग में एक अलग प्रकार का सुकून छा रहा था ।जैसे समुद्र मंथन के पश्चात अमृत कुंड हाथ लग गया हो वैसे ही विचारों के मंथन के पश्चात उसे महसूस हो रहा था। अभी तक सबके साथ की चिंता करने वाली शुभी अब मानो खुद अपने साथ रहने लग गई थी।शांति और सुकून से अपने आप से बाते करना खाना खाना मनोरंजन करना सीख गई थी।

मम्मी …… तनु की आवाज पर उसने किताब से आंखें ऊपर उठाई पर कुछ कहा नहीं।

मम्मी ये क्या किताब लेकर आप बैठ गईं…..आप पहले वाली मम्मी बन जाओ ना वो हमेशा हंसते रहने वाली हर वक्त बाते करने वाली मम्मी जिसकी गूंज इस घर की सांसों में बसी है तनु के कहते ही शशांक भी आ गए थे हां शुभी घर अब घर जैसा नहीं लगता प्लीज शुभी तुम इतनी चुप चुप अच्छी नहीं लगती हो देखो मां भी कितनी दुखी हो रही है अरे तुम्हारी बातें तुम्हारी हंसी तुम्हारे साथ बतियाना हम सबकी आदत बन चुकी है  चलो आज हम सब एक साथ बैठकर कोई कॉमेडी मूवी देखते हैं क्यों तनु शानू ..!! शशांक के कहते ही दोनों बच्चे तो जैसे उछल ही पड़े हां हां मम्मी साथ में तुम्हारे हाथ की पावभाजी भी रहेगी ना!!

नहीं बहू भी पिक्चर देखेगी पावभाजी बाजार से ले आना मां ने हड़क्क कर कहा तो बच्चे तो सहम से गए लेकिन शुभी जोरो से हंस पड़ी।

कॉमेडी मूवी के साथ मेरे हाथ की पाव भाजी ही बनेगी बाजार की पाव भाजी कभी आई है घर में जो आज ही आएगी क्यों बच्चों

हां हां पावभाजी हो तो हमारी मम्मी के ही हाथ की हो वरना ना हो समवेत हंसी से पूरा घर मानो कई दिनों की खामोशी तोड़ रहा था और शुभी को भी महसूस हो रहा था कि जब से वह खुद को अहमियत देना सीख गई उसका घर भी उसे और उसकी भावनाओं को अहमियत देना सीख गया।

लतिका श्रीवास्तव

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