अपनापन बढ़ाती रस्में!! – लतिका श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सास गारी देहे……पता नहीं ससुराल का मतलब हर बार सास का घर ही लगा और सास का मतलब गारी देना..!!
गौरी इसीलिए चाहती थी कि शादी ही ना हो और शादी हो भी जाए तो सास के साथ बिल्कुल ना रहना पड़े या फिर सबसे अच्छा तो ऐसे घर में शादी हो जहां सास हो ही ना!!ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी!
फिर केवल सास ही क्यों ससुर देवर ननद जेठ जेठानी ….. उफ्फ कितने सारे रिश्ते कितने सारे बंधन ससुराल में पहुंचते ही नई बहू को जकड़ लेते हैं…हर नया रिश्ता आने वाली बहू से ही बेतरह अपेक्षाएं रखता है हर किसी के शौक और आदतें नई बहू के आते ही मानो बदल ही जाती हैं….

आने वाली लड़की जो अब नए अवतार में है उसकी भी तो नई नई आशाएं हैं अपेक्षाएं हैं!!!ये कोई क्यों नहीं सोचता!!वह हर किसी के लिए हर समय हर कार्य करने को तत्पर रहे उत्साही रहे सब यही चाहते हैं!!हर गुण उसमें ढूंढते हैं!!
मां तुम भी मेरे ससुराल मेरे साथ में चलना कुछ दिन मेरे साथ रह कर फिर साथ में लेते आना गौरी हमेशा मां से कहती थी और मां विवश मुस्कान से उसे मीठी झिड़की दे देती थीं पगली कहीं की इत्ती बड़ी हो गई शादी होने वाली है और बातें अभी भी बचकानी करती है अरे बिटिया दस्तूर यही है बेटी पराए घर जाती है अकेले ही सारे नए रिश्ते समझ लेती है संभाल लेती है ….

इसीलिए तो मैं तुझे समझाती रहती हूं बेटा सिखाती रहती हूं मुझे पता है इतनी पढ़ाई लिखाई करने के बाद मेरी बेटी और भी समझदार हो गई है वो अकेले ही सब कुछ अच्छे से समझदारी से कर सकती है उसको मेरी जरूरत ही नहीं पड़ेगी मेरी रानी बेटी….गौरी चुप हो जाती थी।
आजा समझ ले बेटा हलवा बनाना वहां यही बना देना आखिर तेरे हाथ का कुछ तो खायेंगे वहां मां गौरी की विशेष फरमाइश पर हलवा बनाते बनाते उसे सिखाने की कोशिश कर रहीं थीं…

मां ये भी कैसी रस्म है !! एक तो अपनी मां अपना घर छोड़ कर जाओ और वहां जाकर परीक्षा उत्तीर्ण करो “कुछ बनाओ” मानो बहू से आते ही ससुराल का कोई एंट्रेस टेस्ट लिया जा रहा हो!!मुझे नहीं बनाना कुछ जिसको जो बोलना होगा बोलता रहेगा …ये करो वो नहीं करो ..!!सब ड्रामा सिर्फ और सिर्फ सास लोग ही करती हैं….बहू नहीं एक आज्ञाकारी सेवक की वांट्स में भर्ती हुई हो जैसे!!

नहीं नहीं करते करते गौरी की शादी का दिन आ गया उसका सासरा बहुत भरा पूरा था चाची सास भी थीं और दादी सास भी।
सास नाम से ही घबराने वाली गौरी को एक नहीं तीन तीन सास का सामना करना था ….मरता क्या ना करता!!मां ने दिलासा भी दी थी और सख्त हिदायत भी कि ससुराल से कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए अभी शुरू शुरू में पूरा खानदान जुड़ता है सारे नाते रिश्तेदार जिसमे कुछ तो पहली बार ही आयेंगे और पहला इंप्रेशन लेकर चले जायेंगे इकठ्ठे होंगे

सबकी तीखी नजरें बहू की एक एक गतिविधि पर रहेंगी इसलिए अभी ज्यादा ध्यान देकर घर के रीति रिवाजों और कायदे को निभाना …..तुम्हारी ससुराल वालों को भी तुम पर गर्व हो सके ….सबके जाने के बाद अपने हिसाब से फेर बदल कर लेना।
गौरी को ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो जेल जा रही हो ऐसी कैद में जा रही हो जहां सब कुछ दूसरे की इच्छा से ही करना पड़ेगा सुबह उठना नहाना चाय नाश्ता खाना तैयार होना बात करना हंसना बोलना …..!पता नहीं शादी के बाद लड़की को ही ससुराल के झंझट में क्यों पड़ना पड़ता है !!!मायके जैसी स्वतंत्रता मस्ती वहां भी क्यों नहीं मिल जाती!!

क्यों सब लोग बहू को एक बहुआयामी सर्वगुण संपन्न के ही पैमाने से मापने लगते हैं!!क्या बहू भी एक आम इंसान नहीं होती है!!बहू की आचार संहिता ही अलग बना दी जाती है उसीके अनुसार आचरण करो।
बकरे की मां कब तक खैर मनाती…..गौरी अपने ससुराल बनाम जेल में आ गई थी जहां एक नहीं तीन जेलर थे और चारों तरफ पहरेदार तैनात थे जो उस नए कैदी पर नजर रखे थे ।
आज बहू के हाथ की रसोई है!!
सुबह सुबह नहा कर साड़ी पहनना उफ्फ कितना कष्टकारी है!मां ने सिखाई तो है साड़ी पहननी पर यहां अकेले कैसे बनेगा … मां की याद आ गई!अच्छे से नहीं पहन पाई तो मां का मान घटेगा ….सहायता तो चाहिए थी…पतिदेव सुबह सवेरे से जाने कहां गायब हो गए थे अब ये जंग अकेले गौरी की थी!! लड़कों की कितनी मौज रहती है शादी के बाद कहीं आना ना जाना बल्कि बैठे बिठाए एक असिस्टेंट मिल जाता है…खीझ रही थी गौरी।

जैसे ही नहा कर आई और साड़ी पहनने की जद्दोजहद आरंभ की… दरवाजे पर खट खट होने लगी..अरे लगता है देर हो गई मुझे अभी तक तैयार नहीं हो पाई सब उठ गए हैं मारे शर्म के रोना आ गया…. खट खट और तेज हो गई तो धीरे से दरवाजा खोला ही था की तेजी से चाची सास अंदर आ गईं फैली हुई साड़ी अस्त व्यस्त दुल्हन को देख कर मुस्कुरा दी लो बिटिया पहिले ये चाह और समोसा खा लियो इत्मीनान से अउर ये साड़ी दे दियो हमको …अभी कोई तैयार नहीं हुआ है चिंता ना करो तुम खा लियो आराम से और ये चाय अपने हाथों से बना कर लाए हैं तुम्हारे लिए पी लो आओ इधर बैठो गिलास भर के चाय मुझे पकड़ाते हुये  इतने स्नेह से बोली की लगा मां आ गई हैं…

जब तक उसने चाय पी उन्होंने साड़ी सेट कर ली और दो मिनट में पहना दी साथ ही सभी जेवर आदि भी….वाह कित्ती सुंदर है हमारी बिट्टो रानी नज़र ना लग जाए काला टीका लगाते हुए बोली हम तो तुम्हे बिट्टो ही बोलेंगे ठीक है ना!!
गौरी विस्मित थी ऐसी भी सास होती हैं क्या!!
बड़े प्रेम से उसे लेकर दादी सास के पास ले आईं और वहीं बिठा दिया
गौरी की तो सांस अटक गई थी…. दादी सास तो मेरी बाट लगा देंगी !!पैर छूकर आशीष लिया तो गले से लगा लिया उन्होंने ….जैसे सूरज का उजाला हो गया तेरे आते ही खुशी से बोल पड़ीं इत्ती अच्छी साड़ी पहनना मां से सीखा होगा हम तो सोच रहे थे इत्ती पढ़ी लिक्खी बहुरिया आ रही है तो वही लडको वाले कपड़े ना पहन ले!!

मज़ाक करते हुए पोपली हंसी से उन्होंने कहा तो गौरी को भी हंसी आ गई थी।आजा यहां बैठ जा मेरे पास इत्ता सिर क्यों ढक रखा है अरे इत्ती प्यारी सूरत सबको दिखनी चाहिए कहते हुए अपने दोनों हाथों से उसकी बलैया लेने लगी ये देख ये झुमके तुझ पर बहुत सुंदर लगेंगे ये मेरी तरफ से रख ले मेरी बहू को ना दिखाना उसे नहीं दिए थे मैंने ना तो चिढ़ जायेगी कह फिर पोपली हंसी बिखर गई थी
गौरी की अटकी हुई सांस बाहर आई थी ये दादी सास तो मेरी ही दादी जैसी हैं
अब तो बस सासू मां से मुठभेड़ होनी बाकी रह गई थी उसका दिल फिर से धड़क उठा तीखी तेज तर्रार सास का चेहरा उसके मन में चमक उठा तभी उसकी छोटी ननद ने आकर बहुत आदर से कहा भाभीजी आपको मां बाहर बुला रहीं हैं पड़ोस की महिलाएं आपसे मिलने आईं हैं।
हूं देखा अड़ोस पड़ोस सबके सामने अपनी सास की अकड़ दिखाएंगी जाने क्या पूछ लेंगी क्या हंसी उड़ाएंगी गौरी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि बाहर जाए तभी दादी सास ने बड़े प्यार से कहा जा बिटिया बुला रहे हैं।
अब ओखली में सर दिया है तो मूसल की चोट सहनी ही पड़ेगी…धड़कते दिल और सहमते पैर से ननद जी के पीछे पीछे चल पड़ी..तभी ननद ने कहा अरे भाभी एक शर्त है मां ने कहा है आपकी आंखों पर पट्टी बांध कर लाना..!और भाभी की इच्छा अनिच्छा की परवाह किए बिना पहले से ही तैयार एक साटन की पट्टी आंखों पर बांध दी।

जैसे ही उस कमरे के अंदर पहला कदम रखा ऊपर से लाल गुलाब की अनगिनत पंखुड़ियों की आकस्मिक बारिश ने उसे तकरीबन नहला ही दिया….अभी वो संभल भी ना पाई थी कि ननद ने दूसरा फरमान जारी कर दिया भाभी अब आपको आंखों पर पट्टी बांधे बांधे उपस्थित सभी महिलाओं का हाथ छूना है और पता लगाना है आपकी सासू मां यानी की मेरी मां कौन सी हो सकती हैं!!
देखा ..मुझे पता था कुछ ऐसी ही फजीहत करवाएंगी ये सासू जी नए नए तरीके ढूंढती रहती है सास लोग भी अपनी बिचारी नई बहू से मजाक करने के हंसी उड़ाने के !!अभी मेरी मां यहां होती तो इन सबको जवाब मिल गया होता!!भला ये भी कोई गेम हुआ आज तक अपनी सासू से मैं मिली भी नहीं ऐसे कैसे पहचान लूंगी!! हद है मेरी बेबसी की हंसी उड़ाने की!!
आज इनका दिन है करवा लो मेरा भी दिन आयेगा तो बताऊंगी….मन ही मन कुदकुड़ करते गौरी ने बहुत संकोच से सबके बढ़े हुए हाथों को स्पर्श करना शुरू कर दिया….एक दो तीन चार पांच छह और ये सातवां हाथ…ये तो मां का हाथ है कस के पकड़ लिया गौरी ने और मुंह से बेसाख्ता ही निकल पड़ा मां मां…बिना किसी की परवाह किए तेजी से आंखों की पट्टी निकाल फेंकी ..मां यहां!!!
देखा तो सच में मां खड़ी थी सामने ।
मां कहते हुए गौरी तो लिपट ही गई अपनी प्यारी मां से और मां ने भी उसे आश्चर्यचकित करते हुए हंसकर गले से लगा लिया ।
हां बेटा मैं ही हूं तेरी सासू जी ने ही मुझे यहां बुलवा लिया है दामाद जी सुबह सबेरे ही खुद आए थे मुझे लेने कहने लगे हमारे घर की ये अनिवार्य रस्म होती है मां ने बुलवाया है तत्काल चलिए मुझे आना ही पड़ा..!
अब गौरी ने अपनी सासू जी की तरफ ध्यान दिया
हां गौरी हमारे यहां बहू की मां के सामने ही बहू भोज होता है सासू जी ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा तो गौरी का दिल फिर धड़क उठा अच्छा तो मेरी मां को यहां बुलाकर उनके सामने मेरे हाथों की बनी डिश का मखौल उड़ाने की रणनीति बनाई है इन्होंने बिचारी मेरी मां!!
भाभी जी आइए क्या सोचने लगी आप !!ननद ने फिर टोका तो गौरी मां का हाथ छोड़कर किचन की तरफ मुड़ने लगी मां ने हलवा बनाना सिखाया तो है पर आज मैं बना पाऊंगी की नहीं मुझे बिलकुल भरोसा नहीं है…सोचती जा रही थी।
तब तक देखा सासू जी खुद हलवा बना कर ला रही हैं और सबसे पहली प्लेट गौरी की तरफ बढ़ाते हुए बोल उठी
हां ये हमारे घर की रस्म है बहू रानी कि सास अपने हाथ से हलवा बना कर अपनी नई बहू को खिलाएंगी यही परिचय है अरे ये भी कोई रस्म हुई कि नई दुल्हन आते ही रसोई से परिचय ले …

अगर मेरी बेटी शादी के बाद घर आयेगी तो क्या मैं उससे किचन में कुछ पकाने भेजूंगी ?? नहीं ना!!फिर मेरी बेटी जैसी बहू भी हमारे इस घर में पहली बार आई है वो क्यों बनाएगी !!बेटा जितनी चिंता और घबराहट तुझे हुई होगी या हो रही होगी अपनी सास से मिलने उसे जानने या ताल मेल बिठाने के संबंध में ना उतनी ही चिंता और घबराहट मुझ सास को अपनी बहू द्वारा पसंद किए जाने के संबंध में हो रही है!!

तुम्हारी मां जो अपनी लाडो बेटी की विदाई के बाद निष्प्राण सी हो जाती हैं क्यों उसके ससुराल आकर उसका पहला दिन अपनी आंखों से नही देख सकतीं!! रस्में ऐसी हों जिन्हें मनाने और निभाने में खुला पन हो प्रसन्नता हो बोझ ना हो !!
मुझे पता है कि एक बहू कभी भी बेटी का स्थान नहीं ले सकती लेकिन बेटी जैसी आत्मीयता और सम्मान तो पा ही सकती है ।
लो अब तुम इसे खाकर बताओ कि मुझे तुम्हारी मां जैसा ही दर्जा तुमसे मिल सकता है कि नहीं देख बेटा मां तो मां ही होती है सास वैसी तो नहीं बन सकती लेकिन कोशिश तो कर सकती है तुझे थोड़ी सी तेरी मां जैसी बन कर…!कहते हुए अपने हाथों से उन्होंने हलवा गौरी को खिला दिया ।
गौरी अपनी मां के बगल में बैठी अपनी दूसरी मां के हाथो से हलवा खाते हुए सोच रही थी ….

ससुराल मतलब सास का घर नहीं एक और मां का घर होता है।

#ससुराल
स्वरचित
लतिका श्रीवास्तव

 

2 thoughts on “अपनापन बढ़ाती रस्में!! – लतिका श्रीवास्तव : Moral stories in hindi”

  1. Maine bahut ganda sasural Paya per main apni Bahu ke sath Aisa kuchh bhi nahin hone dungi main Aisa sochati hun aage Bhagwan jaane

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