पहचान – श्रुति  त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : रितिका  क्या  कर रही हो?  रेखा जी ने अपनी बेटी को आवाज  दी 

कुछ नही मम्मी  बस अभी आई उधर से रितिका ने कहा 

रेखा जी बडबडाने  लगी जब देखो तब मोबाइल  पर लगी रहती है | अभी तो बस ग्यारवीं  मे है तब यह  हाल है | रेखा जी ने देखा उनके  पति आराम से बैठे पेपर पढ रहे है | उनकी बात सुन ही नही रहे है | 

रेखा जी अपने पति  से बोली ” आप तो मेरी बात सुन ही नही रहे है और मैने कल आपको  उस फोन के बारे में  भी बताया था न ! 

उनके पति बोले आप फालतू  में  ही अपनी बेटी पर शक कर रही है आपको   

अपने संस्कारों  पर भरोसा नहीं  है क्या ?

भरोसा तो है पर उसकी उम्र  ही ऐसी है 

डर लगता है कहीं  कुछ उल्टा -सीधा

कदम न उठा ले |

अरे ! आप तो बेमतलब में  फिक्र करती है |

तभी रितिकाआ जाती है और दोनों  चुप हो जाते हैं।  रेखा जी उसको नास्ता देती है | 

रेखा जी उसको बोलती है ”  देखो बेटा कल एक फेक फोन आया था तुम्हारे  लिए  कुछ  गलत बोल रहाथा|

रितिका उन्हें  घूर के देखती है और बोली ” क्या मम्मा  आप भी किसी की बातों  में  आ जाती हो |

अरे ! बच्चा में  किसी की बातों  में  नहीं  आ रही हूं  बस आपको  बता रही हूँ  और ये कहना चाह रही हूँ  अगर कुछ ऐसा है तो बताओ मुझे  

हम लोग कभी किसी लड़के  से दोस्ती करने के लिए  नहीं  मना कर रहे है लेकिन एक लिमिट में  रहते है बच्चे  

और वो क्या है डिसकोरड  उस पर भी तुम्हारी  कुछ चैट है उसके लिये भी बोल रहा था | 

क्या मम्मा  आप भी मुझ पर भरोसा नही है दूसरे पर भरोसा करती हो |

जरूर  वो निखिल  होगा वो ही भडका रहा होगा आपको …अभी  बताती हूं  उसको |

रितिका एकदम से भडक गयी |

बेटा गुस्सा  क्यों  हो रही हो मै  तो बस तुम्हे  समझा रही थी |अभी तुम्हारी उम्र   की है | अपनी एक पहचान  बनाने  की है | पहले अपनी पढाई पर ध्यान दो फिर इन सब में  पढो | कुछ लोग तो आपका ध्यान  भटकाने के लिये  ये सब करेगे ही और तुम पढने में  अच्छी  हो तो और चिढ कर करते है |

पर रितिका तो अपनी मम्मी  से नाराज  हो गई  ” आपको  तो बस यही  लगता है मै  बिगड़ गई हूं  और हमेशा  एक पहचान  बनाने  की बात करती है आपकी पहचान  क्या है ?

बस घर में  कपड़ा झाड़ू – पोछा बर्तन  और रोटी  यही पहचान  है आपकी |

आप तो करियर और पहचान  की बात मत करिये |

रेखा के पति जो अब तक  माँ – बेटी को सुन रहे थे | बेटी  पर चीख पड़े  तुम्हारी  हिम्मत  कैसी हुई  अपनी  माँ से इस तरह बात करने की |

तुम जानती हो इसने तुम्हे  और रिषभ को पालने  के लिए  कितने सेक्रिफाइस  किये है|

रेखा ने उन्हें  शांत कराया और बोली आप शांत हो जाइये  जब बच्चे  बड़े  हो जाते है तो वो अपने आप को माँ- बाप से भी बड़ा  समझने लगते है और बेटा मैने  तो तुम्हे  बस एक सही रास्ते  पर चलने की सीख देनी चाही और कुछ नही. .

रेखा जी वहां  से हटकर अपना काम करने लगी |

पर उनके मन में  उनकी बेटी के कहे शब्द  घूम  रहे थे कि उनकी कोई पहचान  नही है |

रेखा भी चाहती तो आज एक अच्छी नौकरी  कर रही होती पर उसने बच्चों  के लिये  अपनी  नौकरी  और करियर सब छोड दिया था |

आज दोपहर में  उसके पति जल्दी  घर आ गये |

रेखा उन्हें  देखकर  चौक गई ” अरे ! आप इतनी  जल्दी  | 

हां रेखा !  मै तुम्हारे  लिये आज जल्दी  आया हूँ  तुम मेरी  बात सुनो | जब तुमने अपनी  नौकरी  छोडी थी तो मैने तब भी तुमको समझाया था कि तुम बच्चों  के लिये  अपना सपना और अपनी पहचान मत छोडो  |

तब तुमने  क्या  कहा था कि ये घर और बच्चे  ही मेरी पहचान  हैँ  | लेकिन  देखो बच्चे  क्या  सोचते है |

अब वक्त  आ गया है कि तुम उन्हें  समझाओ कि एक गृहणी  क्या होती है और उसकी पहचान  क्या होती  है।  

तुम अपनी थीसिस पूरी करो |

“पर इस उम्र  में  फिर  से पढाई ” रेखा बोली 

तो पढाई की कोई उम्र  नहीं  होती है और हां  आज से तुम खाना भी नही  बनाओगी  उसके लिये  एक खाने वाली रख लेते है |

 रेखा विस्मित  खडी उन्हें  देखती रही उसके पति ने कभी  उसे नौकरी  छोडने  नहीं  बोला था वो तो रेखा ने अपने बच्चों  के लिये अपना करियर छोड दिया था |

रेखा ने सिर्फ  कहा ” आप का सहयोग  ही है जो मै कभी  हिम्मत नही  हारती “

वे मुस्कराने लगे |

अगले ही दिन से घर में  खाने वाली आने लगी | रेखा सिर्फ अपनी पढाई पर ध्यान देने लगी | रितिका को कुछ  समझ नही  आया अपने पापा से बोली  ” ये मम्मी  को क्या हो गया ” सभी  काम के लिये  बाई रख ली है और खुद पढाई कर रही है | 

उसके पापा ने कहा ” बेटा तुम्हारी  मम्मी  अपनी पहचान  बनाने  निकली है कभी  बच्चों  के लिये उसने त्याग किया था अब बच्चों  के लिये  ही अपनी पहचान  बनाने  निकली  है “|

रितिका  बिना बोले वहां  से चल दी |

“कहाँ  चल दी बेटा ” उसके पापा बोले 

अब कुछ नही  कहोगी |

मम्मी  के लिये  काफी  बनाने  पापा 

अब तक मम्मी  ने हम लोगो  के सपने जिये और अब हम मिलकर मम्मी  के सपने पूरे करेंगे |

रितिका  और उसकी  मम्मी  दोनों  ही अपनी  पढाई  में  लग गई 

रितिका  ने वारहवी में  टाप किया और उसकी  मम्मी  ने अपनी पी. एच. डी में  पेपर वाले दोनों  का इंटरव्यू  लेने  आये |

स्पेशली  उसकी मम्मी  का ” कैसा लग रहा है मैडम इस उम्र  मे इतनी बडी उपलब्धि  मिलने पर ” 

 उसकी मम्मी  ने कहा ” पढाई की कोई उम्र  नहीं  होती |मैं  बहुत  खुश हूँ  कि मैने  अपनी  एक पहचान  बनाई इसमें  मेरे परिवार  का बहुत  साथ रहा और सबसे खुशी  की बात यह है कि कल मै अपनी बेटी के स्कूल  में  लेक्चर देने जा रही हूँ  |

कल के पेपर में  माँ – बेटी का फोटो छपा और हेंडिग थी 

माँ ने  बेटी के साथ – साथ  बनाई एक नयी पहचान  ||

स्वरचित 

श्रुति  त्रिपाठी

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