अपना घर (भाग 2 )- पूनम अरोड़ा 

वे उन्हें  लेने कभी नहीं आऐ। हाँ  उस दिन की तरह संडे को घुमाने जरूर ले जाते और शाम को छोड़ जाते। उसका “मम्मी  के बगैर पापा के साथ जाने का मन नहीं करता और पापा के बगैर यहाँ रहना अच्छा  नहीं  लगता”। वैसे यहाँ सभी नाना-नानी, मामा-मामी सभी उसका बहुत ध्यान रखते लेकिन “अपने घर” वाली फील नहीं आती।

एक दिन पापा उसे लेने आए तो घुमाने न ले जाकर घर ले  गए जहाँ एक स्मार्ट सी आंटी ने दरवाजा खोला। पापा ने कहा “हैलो बोलो बेटा आंटी को।” उसने बेमन से बोल तो दिया लेकिन उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। हालाँकि उन आंटी ने उसे चाॅकलेट, फ्रूटी और टाॅयस दिए तब भी वह उन्हें बिल्कुल अच्छी नहीं लगी क्योंकि वह मम्मी की तरह ही उनके किचेन में  काम कर रही थीं और मम्मी के बेडरूम और अलमारी में  मम्मी के सामान की जगह उनका सामान लगा हुआ था।

इतने दिनों से  जिस घर के लिए वो तड़प रहा था आज उसका वहाँ से भाग जाने के लिए मन बैचेन हो रहा था। उसने पापा से एग्जाम की तैयारी  करने का बहाना बनाया और घर जल्दी  वापिस आ गया। उसने भी रास्ते में  पापा से ज्यादा बात नहीं की और पापा भी उसका उखड़ा मूड  देखकर कुछ ज्यादा नहीं  बोल पाए। घर आकर उसने मम्मी को आंटी के बारे में  बताया लेकिन ऐसा लगता था जैसे उन्हें  इस बात का पहले से पता था। कभी-कभी  नाना नानी, मम्मी,  मामा सब बैठकर आपस में  अजीब सी बातें किया करते थे, उसे तब कमरे में भेज दिया जाता लेकिन कुछ शब्द उसके कानों  में पड़ते रहते जैसे- लीगल नोटिस, वकील, कोर्ट वगैरह और पापा का नाम भी बीच बीच में आता रहता जिससे उसे यह आभास तो हो गया था कि मम्मी पापा के झगड़े से सम्बंधित कोई  इशू है।




एक दिन मम्मी के ऑफिस के एक दोस्त घर आए। उन्होंने उससे बहुत देर तक बातें  की उसे बहुत प्यार किया, उसके साथ लूडो खेला और  पक्की वाली दोस्ती कर ली।

वे अब अक्सर ही आने लगे। कभी-कभी सिर्फ मम्मी  को और कभी-कभी  दोनों को ही साथ घुमाने ले जाते। मूवी दिखाते, रैस्टोरेंट ले जाते उसके साथ गार्डन में बहुत मस्ती करते। उसके बिना माँगे  ही उसे बहुत सारे मंहगे गिफ्ट ले कर देते। मम्मी  भी उनके साथ बहुत खुश दिखतीं।

वह कभी-कभी सोचता कि क्या मम्मी को पापा और घर की बिलकुल याद नहीं आती है? वो कहता भी कि मम्मी वापिस घर चलो तो मम्मी  रोने लगती कि अब वो घर हमारा नहीं  है उसे समझ तो न आता कि क्यूँ ? लेकिन मम्मी को  और उदास नहीं करना चाहता था इसलिए वो चुप हो जाता।

फिर मम्मी ने एक दिन उसे बताया कि पापा ने उस वाली आंटी से शादी कर ली है जिन्हें  तुमने उस दिन वहाँ  देखा था। वह यह सुनकर अवाक रह गया और बहुत-बहुत दुखी भी, फिर भी बहादुर बच्चों की तरह मम्मी के आगे रोया नहीं  लेकिन वीकेंड पर पापा के साथ जाने में कभी तबियत, कभी एक्जाम का बहाना लगा कर मना कर देता।

एक दिन मम्मी ने उससे पूछा कि तुम्हें  नितिन अंकल कैसे लगते हैं? उसने कहा “बहुत अच्छे” “तो बेटा अगर तुम्हें  एतराज न हो और तुम्हें बुरा न लगे तो हम दोनों शादी कर लें ?”
उस समय उसे समझ नहीं आया कि यह बात उसे अच्छी लग रही है या बुरी?

वह हाँ कहे या ना?

वह खुश होए या रोए?

फिर भी मम्मी को खुश देखने के लिए उसने हाँ  में  सिर हिला दिया। मम्मी ने उसे गले लगा कर बहुत-बहुत  प्यार किया।




मम्मी की शादी का दिन भी आ गया। मम्मी  बहुत सुन्दर, बिल्कुल फिल्म की हीरोइन जैसी लग रही थीं। नाना-नानी, मामा-मामी सभी बहुत खुश थे पर पता नहीं  क्यों  उसकी आँखो से ही बार बार आँसू  छलक छलक पड़ रहे थे।
वह कोने में एक तरफ बैठा सोच रहा था कि पहले “घर अपना नहीं रहा फिर पापा अपने नहीं  रहे और आज मम्मी भी अपनी नहीं  लग रही।”

मम्मी शादी के बाद अंकल के घर चली गई  उसे कहकर कि एक दो दिन में  उसे साथ ले जाएँगी और दो दिन बाद उसे ले भी गई। अंकल का घर बहुत बड़ा था। घर क्या आलीशान कोठी थी। अंदर लाॅन और कमरे भी बहुत बड़े बड़े  थे। उसका कमरा भी बहुत  खूबसूरत था। वही अंकल ने उससे उम्र में  कुछ बड़े  एक लड़के  से परिचय कराया “शाश्वत इनसे  हैलो करो यह तुम्हारे  बड़े  भाई  सौजन्य हैं।”
शाश्वत ने जैसे  ही हैलो करने को हाथ बढ़ाया वह गुस्से में  भुनभुनाता वहाँ  से चला गया। शाश्वत ने बहुत अपमान महसूस किया, अंकल ने  तो  उसे  कुछ नहीं  कहा लेकिन वो हैरान था कि मम्मी  को भी ज्यादा बुरा नहीं  लगा। वह सौजन्य तो मम्मी  से भी बात नहीं  कर रहा था। सुबह नाश्ते की टेबल पर भी उसने  किसी  को हैलो भी नहीं  कहा  बल्कि  मम्मी  ही “बेटा बेटा” कह कर उसकी खुशामद कर रही थी। उसे मम्मी पर भी गुस्सा आ रहा था कि मम्मी  उसको इतना भाव क्यों  दे रही है? 

वो  मम्मी  की बात का जवाब भी बदतमीजी  से  ही दे रहा था और उसे भी लगातार घूरे जा रहा था  जिसकी वजह से उसके  गले  से नाश्ता  नीचे नहीं  उतर पा रहा था। इसके बावजूद भी न तो अंकल न ही मम्मी ने उसे टोका एसे करने के लिए। उसे मम्मी के इस व्यवहार से बहुत  बुरा लगा। दिन में उसने मम्मी से कहा कि “हम यहाँ  नहीं  रहेंगे इससे तो नानी के घर में  ही ठीक है वहाँ  कोई अपमान तो नहीं करता”। लेकिन मम्मी ने उससे कहा कि “अब यही उनका घर है हाँ  अगर वो यहाँ  comfortable नहीं  है तो वहाँ चला जाए।  वह एक दो दिन में आकर उससे मिलती रहेंगी और संडे को पूरा दिन वहीं  उसके  साथ  बिताएगीं।”




यह  जवाब  सुनकर मानो शाश्वत के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई ।क्या मम्मी  उसके बगैर यहाँ  रहेंगी, जो मम्मी  एक दिन भी कभी उसके बगैर कहीं  नहीं रही वो आज ऐसे  कह रही हैं ? उसने भी गुस्से  में  दोबारा उन्हें  साथ चलने को नहीं  कहा ।नानी के घर जाते समय रोया भी नहीं ।अगर  वो उसके बगैर  रह सकतीं हैं  तो वह भी उनके बगैर रह के दिखाएगा।

अब वह नानी के घर ही रहता है। हालाँकि  मम्मी  के बगैर  उसे वहाँ  भी बिलकुल अच्छा  नहीं  लगता और फिर नाना नानी के  अलावा  वहाँ के बाकी  सदस्यों  का व्यवहार  भी पहले की तरह नहीं  है।

मम्मी  बीच बीच में  उससे आकर मिलती रहतीं हैं  कभी-कभी  उसे अपने साथ भी ले जातीं हैं। पापा भी  किसी संडे को उसे साथ  ले जाकर घुमाते  फिराते हैं  लेकिन अब वो किसी के साथ भी मस्ती, एंजाॅय नहीं  कर पाता।

एक  दिन उसका दोस्त अमन उसे कह रहा था पता नहीं ऐसे  ही या टाॅन्ट कर रहा था कि
” तेरे  कितने मजे हैं  यार  तेरे  दो-दो मम्मी,  दो-दो  पापा और तीन-तीन घर हैं  जब चाहे जहाँ  रह ले  जिससे मर्जी कुछ भी माँग ले”।

इस पर ऊपर से तो उसने यही  कहा कि “हाँ
मुझे बहुत  मजा आता है कभी कहीं  कभी  कहीं  चला जाता हूँ।”

लेकिन अंदर से उसका मन फूट फूट के रो रहा था कि “तीन घर होते हुए भी उसका एक भी घर नहीं  हैं एक घर पापा का है जहां  नई मम्मी  की नेम प्लेट लगी है  दूसरा जो मम्मी  का घर  है जहाँ  अंकल और उनके  बेटे का वर्चस्व है और  नानी के घर में  तो उसे एक मेहमान की तरह ही  ट्रीट किया जाता  है।”

उसे नहीं, बिलकुल नहीं  चाहिए  तीन घर वाला मजा।

उसे तो “अपने मम्मी” “अपने पापा” वाला “अपना घर” चाहिए।

पूनम अरोड़ा 

2 thoughts on “अपना घर (भाग 2 )- पूनम अरोड़ा ”

  1. Very heart touching story, it should not happen with anyone.
    Your way of writing is just like a film is rolling through our eyes.

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