अपना घर (भाग 1 )- पूनम अरोड़ा 

स्कूल की घंटी बजते ही जहाँ सब बच्चे घर जाने की जल्दी में एक दूसरे से पहले भागने की दौड़ में धक्का मुक्की कर रहे थे वहीं  शाश्वत धीरे धीरे बिना किसी उत्साह  के स्कूल के मेन गेट की तरफ बढ़ रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उसे घर जाने की कोई  जल्दी ही नहीं  है। गेट पर पहुँच कर उसने  देखा कि सब बच्चे  बस पे बैठ चुके थे। उसके बस पर चढ़ते ही बस चल पड़ी। वह चुपचाप  पीछे वाली सीट पर बैठ गया।

एक साल पहले वह भी और बच्चों की तरह ही कूदता फाँदता बस पर चढ़ता। खिड़की वाली सीट के लिए  बच्चों  से बहस करता था लेकिन अब ऐसा नहीं  है। एक साल में बहुत कुछ बदल गया है अब वह बड़ा  और समझदार हो गया है। कभी किसी बात के लिए  जिद भी नहीं  करता।

एक साल पहले वो स्कूल से उतरकर “अपने घर “जाता था जहाँ  उसके मम्मी पापा एक साथ  रहते थे  मम्मी  बस स्टाॅप पर खड़ी अधीरता से उसका इंतजार कर रही होती।कितना  कितना  सुखद खुशनुमा  एहसास  था उस घर में  रहने का। बहुत-बहुत प्यार करते थे मम्मी पापा दोनों उससे, कितना मजा आता था। बस एक ही बात अच्छी नहीं लगती थी कि कभी-कभी  उन दोनों में  झगड़ा हो जाता था और कभी-कभी तो इतना बढ़ता कि घर में  खाना भी नहीं  बनता था।

तब मम्मी उसे दूध में  कार्नफ्लैक्स डालकर खाने को देती जो वो खाता नहीं  और नींद का बहाना बनाकर चुपचाप अपने  कमरे में  लेटा रहता और उनके झगड़ा  खत्म  होने का इंतज़ार  करता। उस दिन मम्मी उसके कमरे में  उसके पास आकर सोती। कभी-कभी  दो चार दिन और कभी-कभी  उससे भी ज्यादा। बीच बीच में  उसे चिपका कर रोने भी लगतीं। वह भगवान से प्रार्थना करता कि उसके मम्मी  पापा का झगड़ा जल्दी  खत्म  हो जाए।




उसे यह समझ नहीं आता कि जब उसका गली या स्कूल में  किसी से झगड़ा हो जाता था और वह मम्मी को बताता था तो वो हमेशा समझाती थी कि ऐसा नहीं  करना चाहिए। “बैड बाॅय” ऐसा करते हैं और पापा भी यही कहते लेकिन फिर वे आपस में  क्यों लड़ते रहते हैं  क्या वे “बैड बाॅय और बैड गर्ल” हैं?

एक दिन तो झगड़ा इतना बढ़ गया कि मम्मी 
उसके पास सोने नहीं आई बल्कि  उसे लेकर रात में  ही नानी के घर चली गई। वैसे तो उनके जाने से नानी के घर सब बहुत खुश होते थे प्यार दुलार करते थे लेकिन उस दिन सब उदास थे। किसी ने उससे ज्यादा बात भी नहीं की  फिर कुछ दिन तक वे वहीं  रहते रहे।
उसे वहीं से स्कूल भेजा जाता और वहीं  वापस लाया जाता। पापा और घर की उसे बहुत  याद आती। उसने घर वापस चलने को  मम्मी  को कितनी बार कहा लेकिन मम्मी हमेशा  यही कहती कि तुम्हारे  पापा लेने आएँगे  तब चलेंगे।

उसने पापा से भी फोन पर बात कर आने को कहा तो उन्होंने कहा कि वो ऑफिस ट्रिप पर हैं  दो चार दिन तक ही वापस आ पाएँगें ।
एक दिन पापा का फोन आया, मम्मी  से बात हुई  फिर मम्मी  ने कहा “कल संडे  है तुम्हारे  पापा तुम्हें  घुमाने लेकर जाएँगे जल्दी  तैयार  हो जाना ।”

अगले दिन पापा गली के मोड़ तक आए। मम्मी  ने मेड के साथ उसे वहाँ  तक भेज दिया। वह पापा से मिलकर बहुत खुश हुआ पापा भी उसे गले लगा कर रो पड़े। उस दिन पापा ने उसके साथ बहुत मस्ती  की। क्रिकेट खेले, बोटिंग कराई, झूले झुलाए, पिज्जा और आइसक्रीम  खिलाई। पहले वो पापा से कुछ माँगता था तो बहुत मुश्किल से जिद करने पर ही ले के देते और आज उससे उसकी पसंद पूछ कर खुद जबरदस्ती दिलवा रहे हैं।

शाम को पापा गली के नुक्कड़  तक छोड़ने
आए तब उसने पापा से कहा कि “आप साथ आ जाओ मम्मी को साथ लेकर अपने घर चलते हैं।  मुझे यहाँ अच्छा नहीं लगता है अपने घर की बहुत  याद आती है।” तब पापा ने प्राॅमिस किया कि वो कल आकर उसे और मम्मी को साथ ले जाएँगे  लेकिन शाश्वत को बाद में  समझ आया कि वो झूठ बोल रहे थे।

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अपना घर (भाग 2 )- पूनम अरोड़ा 

पूनम अरोड़ा 

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