‘ अपमान बना वरदान ‘ – विभा गुप्ता 

सुनंदा ने ट्राॅलीबैग में अपने सभी कपड़े रखे, स्कूल-काॅलेज के मार्कशीट के साथ-साथ सभी प्रतियोगिताओं के सर्टिफिकेट भी रख लिए और बैग को बंद करने से पहले उसने एक नज़र पूरे कमरे पर डाली जहाँ छह बरस पहले सोमेश उसे ब्याह कर लाए थे।सोमेश के साथ अपने सुखद भविष्य के जो अनगिनत सपने उसने सजाए थे वे सब तो..।खैर,अब इन बातों से क्या फ़ायदा।उसका आने वाला कल तो उसके आज के द्वार पर दस्तक दे रहा है।उसने ट्राॅलीबैग लाॅक किया, हैंडबैग में जरूरत के सभी सामान रखा,अपना टिकट,आई- कार्ड और अपाॅइंटमेंट लेटर चेक किया, साथ ही रुपये के साथ कुछ चिल्लर रख कर वह आश्वस्त हो गई।

             ट्राॅली बैग लेकर वह कमरे से बाहर की ओर जाने लगी तो ननद रूपा ने मज़ाक किया ” क्यों भाभी, वापस आने का इरादा नहीं है क्या?”  ” ऐसा ही समझो”  सदैव चुप रहने वाली भाभी के मुख से ऐसा उत्तर सुनकर रूपा हतप्रद रह गई।चाय की चुस्कियाँ लेती हुई सासूमाँ ने बहू के हाथ में बैग देखा तो वो भी चकित रह गई।सुनंदा दरवाज़े तक पहुँची ही थी सोमेश भी ड्राइंग रूम से बाहर निकले और सुनंदा पर बरस पड़े, ” ये क्या नाटक लगा रखा है?” सुनंदा बोली, ” मुझे नौकरी मिल गई है और मैं जा रही हूँ।” 

               सुनकर सुनंदा की सास ठहाका मारकर हँस पड़ी।बोली, ” तुमको भला कौन नौकरी देगा?” रूपा भी अपनी माँ की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोली, ” झाड़ू-बरतन करने के सिवा आपको आता भी क्या है।” सुनकर सुनंदा तिलमिला कर रह गई।अपने गुस्से पर काबू करते हुए वह बोली, ” जब से मैं इस घर में आई हूँ, आप सभी ने मुझे अपने-अपने तरीके से अपमानित ही किया है।लेकिन जाने से पहले आपलोगों को आपका आईना ज़रूर दिखाऊँगी।

              सबसे पहले मिस रूपा तुम! तुमको जानकारी दे दूँ कि मैंने इंग्लिश ऑनर्स से बीए और फ़िलाॅसफ़ी विषय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है।फिर भी तुम्हारी चाकरी करती रही।मैं अकेली तुम्हारी सहेलियों को चाय-नाश्ता परोसती और तुम टाँग पसार कर महारानी की तरह आराम फ़रमाती थी।खुद तो कुछ करती नहीं, मेरे कामों में गलतियाँ निकालकर मुझे अपमानित करती रहती थी।मैं अपने अपमान का घूँट पीती रही और तुम प्रसन्न होती रही।मैंने तो तुम्हें अपनी छोटी बहन समझा और तुमने मुझे…।तुम्हारे जन्मदिन पर जब तुम्हारी सहेलियों ने मेरी तारीफ़ करना चाहा तब तुमने कहा दिया, ” ढ़ेले भर की भी अकल नहीं है इनमें,पता नहीं कहाँ से भाई इस फूहड़ को उठा लाए हैं।” उस दिन मैं बहुत रोई थी।तुम्हारे मन में मेरे लिए जो ज़हर भरा था,उस दिन उगल कर तुमने मेरी आँखें खोल दी।”



           एक लम्बी साँस लेकर वह आगे बोली, “सासूमाँ आप, विवाह से पहले आपने मेरी माँ से कहा था कि मेरे लिए जैसे रूपा है वैसे ही सुनंदा रहेगी।लेकिन एक घूँघट न रखने की आज़ादी देकर आपने मुझे उम्र भर के लिए गुलाम बना लिया था।पहले तो मेरे आते ही कामवाली बाई को यह कहकर हटा दिया कि सास-बहू मिलकर कर लेंगे लेकिन एक दिन पैर-दर्द का बहाना लेकर जो बिस्तर पर बैठी,तो आज तक बैठी ही हैं।कभी खाने में तो कभी सफ़ाई की, कमियाँ निकालना तो जैसे आपकी आदत-सी बन गई थी।बाहर तो कभी जाने नहीं दिया, टेलीविजन देखने बैठती तो कभी आपकी चाय पीने की इच्छा हो जाती तो कभी आपके सुपुत्र को।मैंने तो आपको माँ का दर्ज़ा दिया था और आपने….।एक दिन पड़ोस की शर्मा आंटी ने जब मेरी प्रशंसा करते हुए कहा, “मिसेज अग्रवाल, बड़ी अच्छी बहू मिली है आपको।” तब आपने क्या जवाब दिया था? याद है, आपने कहा था, ” घर से तो थर्ड डिविजन में दसवीं करके आई थी, मैंने ही इसे बीए कराया और घर -गृहस्थी सिखाई है।” उस वक्त मैं तड़प कर रह गई थी।आपने तो मेरी पहचान, मेरे वज़ूद को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।मैं चाहती तो उस वक्त अपना मुँह खोल सकती थी लेकिन मेरे संस्कारों ने मेरे मुँह पर ताले लगा दिए थे।परंतु उस दिन के अपमान से मैंने एक सबक सीखा।”

         सुनंदा के बदलते तेवर देखकर उसके ससुर जी समझ गए कि अब बहू उनका गिरेबान पकड़ने वाली है।इसलिए उन्होंने वहाँ से खिसक जाना उचित समझा।तभी सुनंदा ने उन्हें टोक दिया, ” क्यों ससुर जी, अपनी तारीफ़ नहीं सुनेंगे?” सुनकर उनका हलक सूखने लगा।सुनंदा अपने ससुर की तरफ़ हाथ से इशारा करते हुए बोली, ” ये महाशय स्वयं को घर का मुखिया कहते हैं।इनसे अपना शरीर तो संभला नहीं, चरित्र भी नहीं…।कभी पानी मंगवाने के बहाने तो कभी सिर दबवाने के बहाने मेरा स्पर्श पाने का हरदम प्रयास करते।” सुनकर वहाँ खड़े तीनों प्राणियों ने उन्हें घूरकर देखा तो वे नज़रें चुराने लगे।



            अब सुनंदा ने सोमेश की तरफ़ देखा जो यह सोचकर मंद-मंद मुस्कुरा रहा था कि मैं तो उसका पति हूँ।मेरी हर गलती को माफ़ करना उसका धर्म है।सुनंदा बोली, “जी भर के मुस्कुरा लो सोमेश, शायद फिर न मुस्कुरा पाओ।”  ” क्या मतलब?” क्रोध से चीखते हुए पूछा तो सुनंदा बोली, ” बताती हूँ,इतने उतावले क्यों होते हो? तुम्हारी तो एक-एक परत खोलनी है मुझे।हाँ तो सोमेश, विवाह के बाद मुझे चूल्हे-चौके में यह कहकर झोंक दिया कि माँ की तबीयत ठीक नहीं है।ऑफ़िस की पार्टियों में मुझे यह कहकर नहीं ले जाते कि वहाँ का माहोल अच्छा नहीं है।फिर मेरे सामने मित्रों की पत्नियों की तारीफ़ करते ताकि मेरा आत्मविश्वास खत्म हो जाए और मैं उम्र भर तुम्हारी दासी बनी रहूँ।जब-जब बच्चे की बात छेड़ी, तुमने सेलेरी कम होने तो कभी रूपा के विवाह का बहाना बनाया। मैंने तुम्हारे हर बहाने,हर झूठ को शिरोधार्य किया और एक दिन टेबल साफ़ करते समय गलती से तुम्हारी घड़ी क्या गिर गई,तुमने झट से मुझ पर हाथ उठा दिया।वो थप्पड़ मेरे गाल पर नहीं, मेरे दिल पर लगा था और तभी मैंने निश्चय किया कि अपमानित होकर आश्रित रहने से तो अच्छा है, कष्ट सहकर आत्मनिर्भर होना।” कहते हुए उसकी आँखें नम हो गई,लेकिन उसने खुद को संभाला और बोली, ” उस दिन मैंने तुमसे मिले सभी अपमानों को अपनी ताकत बनाया,अपनी डिग्रियों पर पड़ी धूल को साफ़ किया और तुमसे ही एनराॅइड फोन खरीदवा कर अपनी मंजिल की तरफ़ पहला कदम बढ़ाया।मैंने टीचर-ट्रेनिंग के लिए फार्म भर दिया,देर रात पढ़ाई करती और सासूमाँ सोचती,पति का इंतज़ार कर रही है,कितनी पतिव्रता बहू है मेरी।माँ से मिलने का बहाना करके मैं परीक्षा दे आई, उसी समय शिक्षिका के लिए वैकेंसी देखकर स्कूल में अप्लाई भी कर दिया और इंटरव्यू वाले दिन माँ ने बीमारी का बहाना बनाकर अपने पास बुला लिया था।अब ज्वाइनिंग लेटर मेरे हाथ में है।”

           ” हाँ-हाँ, जाना है तो जाओ, रोका किसने है?” सोमेश की आवाज़ में झुंझलाहट थी।सुनंदा बोली, ” ऐसे नहीं, ये तलाक के कागज़ात हैं, इन पर हस्ताक्षर कर दो और अपनी माँ से कहो कि मेरी माँ के दिए सारे जेवर मुझे वापस कर दे।” कहते हुए उसने कागज़ात सोमेश की तरफ़ फेंक दिये।कागज़ात देखकर सोमेश सोचने लगा,जिसे मैंने भीगी बिल्ली समझा था, वो तो शेरनी निकली।उसने अपनी माँ की तरफ़ देखा,जो शायद जेवर नहीं देने के बारे में सोच रही थीं।

              सुनंदा ने अपने हैंडबैग से एक लिफ़ाफा निकाला और सोमेश को दिखाते हुए बोली, ” साइन नहीं करना चाहते हो, कोई बात नहीं।मेरे पास तो सारे सबूत है,अदालत में पेश कर दूंगी।फिर पूरा परिवार जेल में आराम से चक्की पीसते रहना।” सोमेश ने तुरंत साइन करके कागज़ात सुनंदा को थमा दिया और माँ को जेवर लौटाने को कहा।

            सास से जेवर लेकर सुनंदा ने सबूतों वाला लिफ़ाफा सोमेश को दिया और ट्राॅलीबैग लेकर बाहर निकल गई।सोमेश सावधानी से लिफ़ाफा खोला।उसमें गुलाबी रंग का एक कागज था जिस पर लिखा था- नारी को कमज़ोर समझकर अपमानित करने की भूल मत करना क्योंकि अपमान हमेशा अभिशाप नहीं होता,कभी-कभी वरदान भी बन जाता है।

#अपमान

     

        —— विभा गुप्ता 

 

2 thoughts on “‘ अपमान बना वरदान ‘ – विभा गुप्ता ”

  1. घर परिवार में हल्के फुल्के मनमुटाव तो हर घर में होते हैं। लेकिन ब्याह कर आई बहू से नौकर की भांति व्यवहार और हर सदस्य द्वारा अपमानित किये जाने के बाद कोई विकल्प नहीं रह जाता ।

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