अन्याय के खिलाफ – संगीता त्रिपाठी : Moral stories in hindi

सायरन बजाती एम्बुलेंन्स दूर चली गई।वसुधा छोटे बेबी को गोद में लिये कांप रही थी।उसकी तरफ उठी हर ऊँगली उसे ही दोषी मान रही थी। बेटा और बेटी उससे लिपट कर डरे -सहमे से खड़े थे। एक बारगी उसका मन भी विचलित हो गया, क्या उसने गलत किया…?

पर आखिर वो कितने ज़ख्म, जो नासूर बन गये झेलती। रवि का रोज पी कर आना फिर उसके साथ मार -पीट करना, कब तक बर्दाश्त करती। अब तक कर भी रही थी। कभी उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई,कल रात की घटना ने उसे हिला दिया।

       रात रवि फिर पी कर आया और फिर चालू हो गया, मारने, सिगरेट से जलाने की प्रक्रिया। बेटे की आँखों में क्रोध और बेटी की आँखों के डर ने उसे निर्णय लेने को मजबूर कर दिया।एक माँ सब कुछ सह सकती हैं पर बच्चों को डर में नहीं देख सकती,।

रवि को जोर से धक्का दे दिया। नशे की हालत में रवि कण्ट्रोल नहीं कर पाया और दूर जा गिरा।उसका सर फट गया।आवाज सुन सब लोग दौड़े चले आये, सास ने अग्नेय नेत्र से उसे देखते गुस्से में बोली -“थोड़ा बर्दाश्त कर लेती वो पति हैं तुम्हारा,”

“वो मुझे जला सकता, मार सकता, तब तो आपने उसे कभी नहीं रोका “आज वसुधा जवाब देने से अपने को रोक नहीं पाई।

   ” पति का हक़ हैं, वो कुछ भी कर सकता हैं पत्नी के साथ, पर पत्नी उसे कुछ नहीं कर सकती,यही संस्कार तेरे माँ -बाप ने तुझे दिया। मैंने रवि को पहले ही चेताया था, छोटे घर से रिश्ता जोड़ना ठीक नहीं, पर रवि पर प्रेम का भूत चढ़ा था “।

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   “माँ जी मेरा घर छोटा जरूर हैं पर लोगों के दिल बड़े हैं, आप लोगों की तरह संकुचित नहीं हैं। ऐसे महल में रहने से क्या फायदा, जहाँ औरत की कोई इज्जत ही ना हो। रही बात संस्कार की, आप किस संस्कार की बात कर रही हैं, पापा जी, बड़े भैया, रवि सब अनैतिक रिश्ते में हैं, क्या आप अपने पति या बेटे को संस्कार सीखा पाई। आप स्त्री हो कर भी मेरी9 और आशा भाभी का दर्द नहीं समझ पाई। जब हम पर हाथ उठाया जाता तो आप खड़ी तमाशा देखती।आपने कभी रवि या भैया को रोका नहीं,मुझे याद नहीं कि कभी आपने उनके खिलाफ जा हमें सुरक्षा दी हो, आप पापा जी को रोक नहीं पाती इसलिये हमें भी उसी गर्त में देखना चाहती हैं। ये आपकी हीनता का प्रतीक है जो हमें प्रताड़ित देख कर संतुष्ट होता हैं, अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए, भले ही वो पति हो या पुत्र हो…. माँ जी भगवान भी उन्ही की सहायता करता है जो खुद अपने लिये खड़े होते है….”

   सासु माँ, वसुधा की बात सुन चुप रह गई। तब तक बड़े भैया ने अस्पताल कॉल कर एम्बुलेंन्स बुला रवि को अस्पताल भेज दिया।

 बड़े से नंदा भवन में सन्नाटा तिर आया। सन्नाटा तो परिवार के सभी सदस्य के अंदर भी फैल गया। क्योंकि आज से पहले किसी ने सच का आईना उन्हे नहीं दिखाया था।

वसुधा और रवि साथ पढ़ते थे, दोनों में प्यार हो गया। रवि ने घरवालों के खिलाफ जा वसुधा से प्रेम विवाह कर लिया। कहते हैं ना, जो चीज जितनी आसानी से मिल जाये, उसकी कीमत उतनी ही गति से कम हो जाती।

शुरू में रवि अच्छा पति था,वसुधा साल भर में एक बेटे की माँ बन गई। बच्चे के आने के बाद रवि को अब माँ बनी वसुधा अच्छी नहीं लगती।

पेट पर पड़े स्ट्रेच मार्क्स के ढेरों निशान उसे विस्तृष्णा से भर देते । पति कैसा हो, पर पत्नी उसे हमेशा कमसिन ही चाहिये।फिर रवि भी पिता के रास्ते पर चल निकला। अपनी सेक्रेटरी के साथ अक्सर टूर पर रहने लगा। पहले कभी -कभी पीता था। अब रोज पी कर होश खोने लगा।वो भूल गया, वसुधा माँ बनी हैं तो वो भी पिता बना हैं। कुछ समय बाद वसुधा दुबारा गर्भवती हुई,।

बेटी के जन्म के बाद तो रवि, वसुधा से छुटकारा पाने की चाह रखने लगा। वसुधा उसका विरोध जो करने लगी।

                           बाहर खड़ी वसुधा सबके क्रोध का शिकार बन रही थी, एक स्त्री की इतनी हिम्मत की पति को धक्का दे। लोगों की उठी ऊँगली और अवहेलना की दृष्टि ने, वसुधा को भी विचलित कर दिया। बच्चों को ले, उसने कदम बढ़ाया ही था कि सासु माँ की आवाज सुनाई दी। “कहाँ जा रही हो,तुमने ठीक कहा मै अपने बेटेओं को भी संस्कार नहीं दे पाई ना ही पति की गलत आदतों का विरोध कर पाई।बच्चे भी जो पिता को करते देखते, वही वो भी करने लगे। अनजाने में मै भी उनके अपराध को अनदेखा कर साथ देने लगी। संस्कार का बड़े या छोटे घर से लेना -देना नहीं होता। ये सच आज मै जान गई।मै भी तुम्हारे साथ हूँ,”कह उसके बगल आ खड़ी हुई। अपने दूसरे कंधे पर जिठानी आशा के हाथों का स्पर्श पा, वसुधा बिलख पड़ी।

    … उठी हुई उँगलियाँ झुक गई। जिस पर उठी थी, उसके दोनों कंधे मजबूत हो गये। एक स्त्री को स्त्री का मजबूत साथ मिल गया। स्त्री शक्ति देख, राधेमोहन जी को भी अपनी गलती का आभास हो गया। शर्म से सर झुका अपनी पत्नी ऊषा जी से माफ़ी मांगी -बीता हुआ समय लौटा नहीं सकता, पर आगे के समय को सुखद बना सकता हूँ ‘।

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           सब अस्पताल गये, रवि खतरे के बाहर था। रवि का भाई भुवन ने भी आशा से क्षमा मांगी। थोड़ी देर बाद रवि को होश आ गया। सर झुकाये बैठी वसुधा को देख, उसने इशारे से उसे बुलाया। हाथों को पकड़ अपनी गलती की माफ़ी मांगी। नंदा विला एक बार फिर खुशियों से महक उठा।

              दोस्तों, माँ बन, स्त्री अपना सौंदर्य जरूर खो देती, पर मातृत्व की गरिमा से वो अलौकिक सौंदर्य से भरपूर दिखती हैं, क्या हुआ जो पेट या शरीर के अन्य अंगों पर स्ट्रेच मार्क्स के निशान हैं, उनकी खूबसूरती वो किलकारियाँ हैं, जो एक पत्नी ही देती हैं.। देखने का नजरिया बदल कर देखे।सिर्फ स्त्री ही बूढ़ी नहीं होती,समय के साथ पति भी बूढा होता हैं।हाँ ये भी सत्य है कि अन्याय सहने वाला और करने वाला दोनों ही अपराध है, इसलिये अन्याय के खिलाफ आवाज जरूर उठाये।

                      —संगीता त्रिपाठी 

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