अनोखा रिश्ता – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : आज फिर तू ड्रिंक करके आई है ? तू तो छोड़ दी थी ना पीना .. फिर.?? कितनी बार तुझे समझाया है ये सब छोड़ दे लेकिन तू है समझने का नाम ही नहीं लेती ।

देख कलावती , यदि तुझे काम करना है तो ठीक से कर वरना साफ-साफ बता दे भाई , मैं दूसरा देख लूंगी ..जानती तो है मैं भी हार्ट की पेशेंट हूं अब काम नहीं कर पाती, ऐसे कैसे चलेगा ? जब तेरा मन तू आएगी जब मन बीच-बीच में बिना बताए नदारत और आज आई भी है तो पहले इतनी देर से ऊपर से थोड़ा सा ड्रिंक करके. जैसे मुझे पता ही नहीं चलेगा ।

अरे नहीं आंटी , वो आज घर में सब जिद करने लगे तो… अब बस, तू एक शब्द भी नहीं बोलेगी… सिर्फ सुनेगी , भले तुम्हारे घर में शराब पीना स्वीकृत होगा पर ये हर हालत में गलत है और तू भी तो मानती है ना इसे गलत ..देख कलावती तू पहले कैसी थी और अब मेरे साथ रहकर मेरी बात मानकर कितनी बदल गई है फिर बस एक यही आदत , वो भी जब छोड़ दी है तो …..

” कोई कैसे जिद करके तुझे मजबूर करेगा जब तक खुद की तेरी सहमति न हो या तेरे प्रतिकार में वो ताकत ही नहीं जो सामने वाले के समक्ष टिक सके “

अब बस , ये आखरी बार मैंने माँ बनकर अपना फर्ज निभा दिया .आज के बाद मैं कभी मना नहीं करूंगी तुझे जो करना है कर..। काजल मन ही मन सोच रही थी इन लोगों के लिए जितना भी करो पर इन्हें तो अपने मन का ही करना है..। काजल ने पराठा बनाने की निरंतरता जारी रखी ।

सिसक सिसक कर रोने की आवाज सुनकर काजल ने कहा.. अब रो क्यों रही है , काम करना है या नहीं सोच ले भाई ..यदि काम करना है तो तुझे कुछ आदतों में सुधार करनी होगी.. दृढ़ता से काजल ने अपनी बात रखी ।

हाथ धोकर काजल ने जैसे ही झाड़ू उठाया कलावती ने रोते हुए काजल के हाथ से झाड़ू लेकर कहा अब बस आंटी आज के बाद आपको कभी नहीं बोलना पड़ेगा , कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगी ।

शायद आपको मालूम नहीं आंटी मैं अच्छे-अच्छे कपड़े पहनती हूं ना तो सब झोपड़ी वाले मुझसे जलते हैं ..!क्यों जलते हैं भला ? तू काम करती है कलावती, कमाती है फिर ?

हां माना , तेरा मेरा संबंध सिर्फ काम का ही नहीं है ना बेटा , मैंने तुझे हमेशा अपनी बेटी माना है और तू भी तो काम जरूर करती है पर पूरे अधिकार से , और मैंने भी तुझे कभी जितना काम कर रही है तो सिर्फ उतना ही पैसे देने तक का संबंध नहीं रखा है , तेरी हर जरुरतों पर गौर फरमाकर यथा संभव मदद करने की कोशिश की है ।

और सिर्फ मैं ही नहीं कलावती तू भी कभी खुद को काम वाली समझ सिर्फ उतना ही काम नहीं किया जीतने की , तुझे पैसे मिलते हैं ..जो तुझे समझ में आता है तू कर देती है शायद इसीलिए हम दोनों एक दूसरे को काफी समझते हैं ।

काजल ये कभी नहीं भूलती , गरीब होने के बावजूद कच्चे नए मूंगफली अपने दुपट्टे में बांधकर , लीजिए आंटी कहना …अपने घर ले जाने की बजाय पेड़ से गिरे कच्चे आम ,आंटी इसका चटनी बनाइएगा.. इन छोटी-छोटी चीजों में कलावती का प्यार अपनापन काजल को समझ में आता था ।

उस दिन तो हद ही हो गई नए-नए कटहल के सीजन में ..इतने महंगे कटहल , अरे तुझे कहां से मिल गया ? आंटी वो गुड्डू के पापा लाए थे ..शरमाते हुए कलावती ने पति की और इंगित किया ।

अरे तो तू अपने घर में बना लेती ना सीजन का पहला पहला कटहल है । फिर काजल को समझते देर ना लगी कि कटहल बनाने के लिए तेल मसाले की भी जरूरत होगी , हो सकता है शायद घर में ये चीजें उपलब्ध ना हो ।

अच्छा रहने दे , मैं ही बनाऊंगी, देखना कितना स्वादिष्ट बनाती हूं फिर तुझे घर ले जाने के लिए दूंगी …गुड्डू के पापा को भी खिलाना .. कहकर काजल ने बात को दूसरी दिशा में मोड़ दी ।

काजल सोचने लगी ..आखिर क्या रिश्ता है मेरा इसके साथ क्यों मेरे बातों को इतना ध्यान से सुनती है और अमल भी करती है ।

जब कलावती के शराब पीने की वजह से इसे कोई काम पर नहीं रखना चाहता था तब काजल ने ऑपरेशन के बाद मजबूरी में इसे अपने घर कम पर रखा था , पर प्यार सहानुभूति और धैर्य से काजल समझाती रही फलस्वरूप धीरे-धीरे कलावती में सुधार साफ दिखाई देने लगा था ..हां एकदम तो नहीं पर इन हरकतों पर विराम जरूर लग गया था …।

और धीरे-धीरे दो वर्ष ..फिर चार वर्ष , कब बीत गए पता ही नहीं चला कलावती और काजल के घर और काम के तालमेल को । अब तो कलावती पूरे विश्वास से खुश होकर कहती है ..

जानतीं है आंटी , मुझे देखकर झोपड़ी में न जाने कितने लोग शराब के नशे से दूर हो गए हैं और बिखरते परिवार संभल गए …अरे वाह तू तो आइडियल हो गई है अपने एरिया की… काजल भी खुश हो मजा लेती ।

आंटी किसी ने मुझसे प्यार से बात ही नहीं की थी ,ना ही मुझे कभी समझने और समझाने की कोशिश ही की ।

न जाने क्यों आपके पास आकर अपनापन और एक अलग सुकून मिलता था कोई तो मुझे सुनता था , समझता था ..मेरी बातों पर ध्यान देता था , मेरी पसंद नापसन्द का ध्यान रखता था ..! एक बार फिर कलावती की आंखों में आंसू निकल पड़े थे..!

काजल समझ चुकी थी वो किस पसंद की बात कर रही है उसे हरे धनिया पत्ती की चटनी बहुत पसंद थी जिसे पराठे के साथ कलावती बड़े चाव से खाती थी और काजल भी कितनी भी सब्जी क्यों ना रहे कलावती के लिए चटनी जरूर बनाती थी । जब काजल गरम-गरम पराठा सेंक कर देती तो कलावती भी अपने आप को महारानी से कम नहीं समझती …

घर वाले काजल को छेड़ते भी थे मम्मी जितना ध्यान कलावती का रखती है उतना तो हमारा भी नहीं ,..तब काजल बस मुस्कुरा कर इतना ही कह पाती.. बेटा वो गरीब जरूर है पर इच्छा और स्वाद तो उसका भी हमारे जैसा ही है ना..! शायद यही प्यार अपनापन कलावती और काजल की नजदीकियां बढ़ाती गई ।

अब तो परिवार के साथ-साथ काजल के कॉलोनी वाली महिलाएं भी कहने लगी ..आप में ही कुछ विशेष बात है , जो कलावती जैसी गुमराह हुई शख्स को आपने सुधार कर सही राह दिखा दिया.. तब काजल मुस्कुरा कर सिर्फ इतना ही कहती …..

” हर रिश्ते की मजबूती का आधार है प्यार “

मालकिन बनकर काम कराना बहुत आसान है पर अभिभावक बन रिश्तों का जामा पहना कर सिर्फ अपने हित से परे थोड़ा सामने वाले के लिए सोचना बस यही तो किया है मैंने…!

सच में दोस्तों , परिस्थितियां छोटी-बड़ी , आमिर-गरीब अलग-अलग हो सकती है.. पर भावनाएं तो सब में होती ही है ना ..जब हम चाहते हैं सामने वाला हमारी भावना समझें तो हमें भी उसकी भावना समझनी ही पड़ेगी ना…

आज कलावती और काजल के अनोखे रिश्ते के बारे में … आप पाठकों को बताकर एक सुकून शांति और खुशी का अनुभव हो रहा है , न जाने कितने रिश्तों पर अपनी रचना लिखी होंगी ..पर सच में इस अनोखे रिश्ते की वाक्या बता कर आनंदित महसूस कर रही हूं ।

(स्वरचित एवं सर्वाधिक सुरक्षित रचना)

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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