अंजाना बंधन – निभा राजीव “निर्वी”

रीमा के घर के सामने वाली सड़क के उस पार कुछ दूर आगे चलकर ही एक वृद्ध आश्रम था। रीमा अक्सर वृद्धों को देखा करती थी कभी सड़क पर टहलते… कभी-कभी पास वाली पार्क में भी वे घूमने आया करते थे। रीमा प्राय: जब प्रात: भ्रमण के लिए पार्क में जाती थी तो वहां कुछ वृद्ध भी टहलते हुए मिल जाते थे।

               उस दिन भी रीमा पार्क में टहल रही थी कि अचानक उसका पांव बड़ी जोरों से मुड़ गया। वह चीख कर वहीं बैठ गई। पीड़ा से उसका हाल बेहाल था। वहीं सामने एक वृद्ध जोड़ा बैठा था जो शायद टहलने के बाद थक कर वहां बेंच पर बैठ गए थे। उसे इस हालत में देखकर दोनों शीघ्रता से उसके पास आ गए।  फिर सहारा देकर उसे बेंच पर बिठाया। वृद्धा के हाथ में एक पानी का बोतल था, उसमें से उन्होंने उसे पानी भी पिलाया । जब वह थोड़ी संयत हुई तो वृद्धा ने आत्मीय स्वर में पूछा बेटा “- आप कहां रहती हो?”

रीमा ने उन्हें अपने घर का पता तो बता दिया पर  वह बहुत चिंतित हो गई क्योंकि इस समय उसके पति भी घर में नहीं थे। वह कार्यालय के किसी कार्यवश दूसरे शहर दौरे पर गए थे। सीमा को परेशान देखकर वृद्ध ने उनसे पूछा “- क्या बात है बेटा? तुुम क्यों परेशान हो? तुम चिंता मत करो जब तक तुम्हारे घर से कोई नहीं आ जाता, हम तुम्हारे साथ ही बैठे रहेंगे। तुम फोन करके किसी को बुला लो”

रीमा की आंखों में आंसू भर आए उसने आर्द्र स्वर में उन्हें कहा “- अंकल जी, इस वक्त मेरे घर में मेरे अलावा कोई नहीं है। मेरे पति भी दौरे पर बाहर गए हैं। मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूं कि अब मैं क्या करूंगी”

वृद्ध जोड़े का मन द्रवित हो गया। वृद्धा ने कहा बेटी तुम कोई चिंता मत करो। हम तुम्हें ऑटो से घर पहुंचा देंगे। वृद्ध ने सामने से जाते हुए औऑटो को रुकवा कर रीमा को सावधानीपूर्वक उसमें बिठाया और वे दोनों पति-पत्नी भी उसके साथ ही ऑटो में बैठ गए और उसे लेकर उसके घर तक आए। कंधे का सहारा देकर वृद्ध उसे उसके घर के अंदर ले गए। वृद्धा ने फटाफट हल्दी गर्म करके उसकी पुल्टिस बनाई और उसके पैरों पर बांध दिया और थोड़ा दूध गर्म कर उस में हल्दी डालकर उसे पीने को भी दिया। उसके बाद गरम सूप बनाकर उसे पिलाया। अंकल ने फोन करके डॉक्टर को भी बुला लिया। डॉक्टर घर पर आ गए उन्होंने रीमा को कुछ दवाइयां लिख दीं और आराम करने का बोल कर चले गए । अंकल और आंटी उसके आवश्यकता की सभी चीजें उसके सिरहाने वाली मेज पर रखकर  शाम को आने का फिर बोल कर चले गए। रीमा ने पति आनंद को भी फोन कर दिया था। आनंद ने भी उसे आश्वासन देते हुए कहा कि वह शाम तक घर अवश्य पहुंच जाएगा।



                  उनके जाते ही रीमा सोच में पड़ गई कितने स्नेहिल हैं अंकल और आंटी। कैसे होंगे वह बच्चे जिन्होंने इतने प्यारे मां-बाप को वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया। उसकी आंखें भर आई। यही सब सोचते सोचते पता नहीं कब उसकी आंख लग गई।

                आंख खुली तो शाम होने को आ गई थी। आंटी थरमस में उसके लिए चाय बना कर सिरहाने रख कर चली गई थीं। उसने पास ही रखें बिस्किट के डब्बे से दो बिस्किट निकाल कर खाए और थोड़ी सी चाय पी। फिर वह रिमोट से टीवी ऑन करके टीवी देखने लगी।

             तभी दरवाजा खुला और अंकल आंटी दोनों मुस्कुराते हुए अंदर आए।आंटी ने बड़े स्नेह से उसके सर पर हाथ रखकर उसका हालचाल पूछा। रीमा भी घुल मिलकर उनसे बातें करने लगी। बातों बातों में पता चला कि उनका एकमात्र पुत्र अब विदेश में बस चुका है। 6 महीने पहले घर आया था और जब उन्होंने सारी संपत्ति उसके नाम कर दी तो सारी संपत्ति बेच कर उन्हें यहां वृद्ध आश्रम के हवाले कर दिया और स्वयं वापस विदेश चला गया। उनकी आपबीती सुनकर रीमा का मन उनके पुत्र के प्रति वितृष्णा से भर गया। कैसे इंसान इस हद तक स्वार्थी हो जाता है कि अपने जन्मदाता पालन पोषणकर्ता माता पिता को ईश्वर के भरोसे छोड़ कर चल देता है।

           तभी दरवाजा खुला और आनंद अंदर आ गया। आते ही घबराया सा रीमा के पास पहुंचा और उसकी चोट देखने लगा। इस पर रीमा मुस्कुरा दे और कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है अब मैं पहले से काफी बेहतर हूं।अंकल आंटी ने मेरा पूरा ख्याल रखा। आंटी ने आनंद को पानी दिया और फिर सबके लिए चाय बनाने चल दी। सब ने साथ साथ चाय पी। फिर आंटी उन दोनों के लिए रात के खाने के लिए हल्का कुछ बनाकर अंकल के साथ वापस वृद्धाश्रम चली गई। उनकी आत्मीयता से आनंद भी बहुत प्रभावित हुआ और उसका हृदय उनके प्रति सम्मान से भर गया।



                  अगले 1 सप्ताह तक जब तक रीमा का पैर पूरी तरह से ठीक नहीं हो गया अंकल आंटी हर रोज आते रहे उसका हालचाल लेने और अपना स्नेह उन दोनों पर लुटाते रहे। रीमा और आनंद को महसूस होने लगा जैसे अंकल और आंटी से उनका एक अनजाना सा बंधन जुड़ गया है।

            उस दिन रीमा और आनंद साथ साथ बैठे चाय पी रहे थे। रीमा कुछ खोई खोई सी थी जैसे किसी गहरी सोच में हो। आनंद ने पूछा “- क्या बात है रीमा …क्या सोच रही हो?”

रीमा ने आनंद की ओर देखा और कहा “-आनंद, कई दिनों से एक बात दिमाग में आ रही है। सोच रही थी तुमसे कैसे कहूं…”  इस पर आनंद ने मुस्कुराते हुए कहा “-अब बेगम साहिबा को मुझसे बातें करने के लिए भी सोचना पड़ रहा है “….इस पर रीमा मुस्कुरा दी। फिर उसने गंभीर होते हुए कहा आनंद सब लोग बच्चों को गोद लेते हैं, हम मां बाप को गोद ले लें तो कैसा रहे ? मेरे मां-बाप तो बचपन से ही नहीं थे, चाचा चाची ने पाला और अब तो तुम्हारे माता-पिता भी नहीं रहे। कितना अच्छा हो हम अगर एक माँ बाप गोद ले लें। आनंद अचंभित सा रीमा की ओर देखता रह गया। उसके चेहरे पर कई भाव आने जाने लगे। इस पर रीमा ने मुस्कुराते हुए कहा “- हां आनंद, तुम सही सोच रहे हो…… मैं अंकल आंटी की ही बात कर रही हूं। कितना अच्छा हो अगर वह हमेशा के लिए हमारे साथ हमारे घर में रह जाएं हमारे माता-पिता बनकर….”

रीमा की बात सुनकर आनंद के चेहरे पर भी प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई उसने कहा “- हां रीमा, मैं भी कई दिनों से यही बात सोच रहा था, पर तुम से बोल नहीं पा रहा था कि पता नहीं तुम कैसी प्रतिक्रिया दोगी। अब निश्चिंत हो जाओ। आज अंकल आंटी घर आएंगे तो हम उनसे इस बारे में अवश्य बात करेंगे और उन्हें आदर सहित अपने घर ले आएंगे । हमारे सर पर फिर से मां-बाप का साया आ जाएगा। “

           रीमा और आनंद एक दूसरे की ओर देखते हुए सुकून से मुस्कुरा बैठे।

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

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