“एल्बम ” – सेतु कुमार: Moral stories in hindi

तीन महीने होने को आए थे वंदना को मायके में ठहरे हुए. दोनों भाई आज भी जब  रात में दुकान से लौटते थे तो अपनी बहना के पास मिनट भर रुक कर उसका हालचाल लेकर ही अपने अपने कमरे में जाते थे.पर बड़ी भाभी के व्यवहार में कुछ कुछ बदलाव सा दिखने लगा था.

अभी ढाई साल पहले ही तो वंदना और नरेश का विवाह बड़े धूम धाम से हुआ था.तब नरेश एक बड़े बिल्डर की कंपनी में अच्छे ओहदे पर था.नरेश की काबिलियत और ईमानदारी ने उसे कंपनी के मालिकों का चहेता बना दिया था.अच्छी तनख्वाह के साथ साथ रहने को कंपनी की तरफ से मकान भी मिला था नरेश को.नरेश वंदना का हनी मून भी कंपनी की तरफ से प्रायोजित था.

विवाह में बड़े भैया ने नरेश के हाथों में वंदना का हाथ देते हुए कहा था कि बहन नहीं बेटी दे रहा हूं.हमेशा ध्यान रखना मेरी बिटिया का.

नरेश ने भी वंदना की खुशी और आराम का पूरा ख्याल रखा था. कंपनी के कामों में दिन रात व्यस्त रहने के बावजूद वो थोड़े थोड़े समय पर वंदना से बात कर लेता था ताकि वो अकेलापन न महसूस करे.

विवाह के सालभर बाद वंदना की गोद में  अनुष्का के रूप मे एक प्यारी सी बिटिया आ गयी थी.

अनुष्का की खबर मिलते ही अगले दिन सारा मायका वंदना और उसकी बिटिया से मिलने आ गया था. कितने सारे तोहफे लेकर आए थे सबलोग. नरेश ने घर को  रंग बिरंगे फ़ूलों से सजाया था.वंदना के एक तरफ बेहद प्यार करने वाला पति था तो दूसरी तरफ उसपर ममता लुटाने वाला मायका.

पर जीवन के अगले मोड़ पर नियति किसी और रूप मे वंदना और नरेश का इन्तेज़ार कर रहीं थीं.

कुछ महिनों बाद ही न्यायालय के एक फैसले ने नरेश की कंपनी को रातों रात बर्बाद कर दिया था. कंपनी की करोडों रुपये की लागत से बनी एक बिल्डिंग को गैरकानूनी करार देते हुए उसे सरकार के हवाले कर दिया था.हेड ऑफिस में बैंकों के ताले लग चुके थे और मालिकों को फरार होना पड़ा था.

नरेश के पास अब न नौकरी थी और न घर था.

विवादित कंपनी का कर्मचारी होने के कारण कोई भी दूसरा बिल्डर उसे फ़िलहाल अपने यहां काम देने को तैयार नहीं था.

बड़ी मुश्किल से दुबई के एक बिल्डिंग फर्म मे काम तो मिला था पर सैलरी इतनी नहीं थी कि वो पत्नि और बेटी को साथ मे रख सके.

अंततः वंदना ने नरेश को दुबई जाने को तैयार कर लिया था. उसे पता था कि आज भले कम पैसे मिलेंगे पर जल्द ही नरेश अपनी काबिलियत से कुछ न कुछ अच्छा कर लेगा.

वंदना ने दोनों भाइयों से बात कर फ़िलहाल मायके में रहने का इन्तेजाम कर लिया था.

वंदना को कहां पता था कि जिस घर मे वो सब की लाडली थी और जहाँ उसकी छोटी सी उदासी से पूरा घर उसके इर्द गिर्द जमा हो जाता था अब वो वहाँ मेहमान बन चुकी है.

जैसे जैसे समय बीत रहा था पड़ोसियों और आने जाने वाले मेहमानों के तीखे सवाल वंदना को अंदर ही अंदर कमजोर करते जा रहे थे.

उधर नरेश अपनी पूरी कोशिश में लगा था क्योंकि उसे भी अपनी पत्नि और बिटिया के सम्मान की चिंता थी.

पर खासकर बड़ी भाभी के पिछले दो दिनों से बदले रवैये ने वंदना को दुखी कर दिया था.वो अपना दर्द बताए भी तो आखिर किसे बताए.

अनुष्का को सुलाकर वो तकिये में मुँह छुपाये सुबक सुबक कर रो पड़ी थी. तकिया मानो तेज बारिश में भींग गया हो.

फिर पता नहीं कब उसकी आंख लग गयी थी. अचानक उसने अपने माथे पर किसी का प्यार भरा स्पर्श महसूस किया था. आंखे खोली तो सिराहने पर बड़ी भाभी बैठी थी.

“भाभी आप “, वंदना का आश्चर्य और भय से भरा प्रश्न था.

भय इसलिए कि दो दिनों से बदली बदली सी भाभी उसे बाहर जाने का आदेश तो देने नहीं आयी थी.

कुछ देर भाभी एकदम खामोश बस वंदना के माथे को सहला रहीं थीं .

“वंदना आज मैं बहुत दिनों बाद अपने विवाह के फोटो एल्बम के पन्ने पलट रहीं थीं.तुम  जिस भी फोटो में दिखी उसमे मेरा पल्लू पकड़े दिख रहीं हो.मैंने देखा कि सिर्फ सात साल की एक बच्ची जिसने अपनी माँ को छोटी उम्र में खो दिया था वो कैसे मुझमे अपनी मां को ढूढ़ रहीं थीं “

अब वंदना उठ कर भाभी के सीने पर निढाल सी हो गयी थी.

“मुझे याद है जब मैं नयी नयी इस घर मे आयी थी तो मेरी छोटी छोटी जरूरतों का कितनी मासूमियत से तुम ख्याल रखा करती थी और एक बार जब मुझे निमोनिया हुआ था तो तुम मेरे बिस्तर के पास ही चेयर पर सो जाया करती थी.”

भाभी का गला अब बोलते बोलते भारी हो चला था.

” दो दिनों से स्वार्थ का शैतान हावी होने लगा था मुझपर मेरी बच्ची. और मैं तुम्हारे भैया से तुम्हारी झूठी शिकायतें करने लगी थी.” भाभी  की भावनाओं का बांध अब दरक कर टूट चुका था.

” नरेश को अच्छे से काम सेट कर लेने दे  और एक पल के लिए भी मायके में रहने की ग्लानि अपने अंदर मत लाना.मैं तो दूसरे घर से विदा होकर आयी हूं पर तुमने तो जन्म लिया है यहां. और एक बेटी अपनी मां के लिए कब से बोझ बनने लगी थी .”

वंदना ज्यादा कुछ नहीं बोल पायी थी बस  “भाभी मां” बोलते हुए भाभी के गले से लीपट गयी थी.

सेतु कुमार

लोअर परेल

मुंबई

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