अधूरे ख्वाब – इंदु कोठारी

अनुराधा  बहुत खुश थी , पर नींद आंखों से कोसों दूर ,मन में उथल-पुथल । उसने थोड़ी देर के लिए आंखें बंद करनी चाहीं ।कि तभी दूसरे कमरे से एक फिल्मी गाने की धुन…सुनाई पड़ी। रोहन अक्सर इसी गाने को गुनगुनाया करता था । ओह ! कितने सालों बाद आज बरबस ही यह धुन…उसको अपनी ओर आकर्षित कर रही थी।जब वह ग्रेजुएशन करने कानपुर गयी। तो उसे अभी वहां चार महीने ही हुए थे कि एक दिन अचानक तेज बुखार हो गया । सुष्मिता ने उसकी बहुत मदद की । लेकिन उसकी तीमारदारी करते करते खुद सुष्मिता भी बीमार पड़ गई।

अब सुष्मिता का भाई रोहन ही उन दोनों की देखरेख कर रहा था । वे दोनों भाई बहन साथ रहते थे। धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार होने लगा।और अब वे पूरी तरह स्वस्थ थीं। कुछ समय बाद रोहन तो वापस लौट गया। लेकिन अनुराधा का दिल अपने साथ ले गया था। जब भी वह आता तो अनुराधा से भी मिल लेता। धीरे-धीरे प्यार परवान चढ़ने लगा ।अब तो दोनों ही घंटों बातें करते और साथ साथ घूमने जाते। रोहन का आना-जाना लगा ही रहता‌ । रोहन का भी अब कहीं दिल नहीं लगता ।

वह आता और कुछ दिन रहकर वापस चला जाता। धीरे-धीरे समय बीतता गया और अनुराधा बी०एड०करने के बाद अपने घर लौट आई। खतों का सिलसिला जारी रहा । पर धीरे-धीरे उसमें भी कमी आने लगी ।और फिर अचानक रोहन की चिट्ठियां भी बंद हो गई। उसने रोहन की बहुत खोजबीन की पर उसका कहीं कोई अता पता नहीं था।जब भी घर पर शादी की बात चलती तो अनुराधा हर बार टाल देती । 

लेकिन मां बाप कब तक प्रतीक्षा करते । आखिर उन्होंने अपनी बिरादरी में ही एक अच्छा लड़का देखा और उसके हाथ पीले कर दिए । पति सरकारी नौकरी वाला था।घर में किसी चीज की कहीं कोई कमी नहीं थी। शादी के साल भर बाद वह मां बन गई ।एक प्यारी सी गुड़िया की । समय पंख लगाकर उड़ रहा था। फिर दूसरी और तीसरी । अब वह तीन तीन बेटियों की मां थी।



 लेकिन जैसे ही यह खबर पति तक पहुंची वह दो साल तक घर ही नहीं आया ।अब तो उसका तबादला भी हो गया।नये घर का अता पता भी किसी के पास न था। धीरे-धीरे घर के अन्य लोग भी उसकी उपेक्षा करने लगे। लेकिन घर में एक ससुर ही थे जो उसका खयाल रखते और बेटियों को लाड़ प्यार देते । सास को तो उसकी बेटियां फूटी आंख नहीं सुहाती। वेअपने बेटे के घर न आने के लिए बेटियों को ही कसूरवार ठहराया करती थी। धीरे-धीरे पति ने अपने मां बाप से भी दूरी बना ली। 

उसने अकेले ही बच्चों की परवरिश कर उन्हें पढ़ाया लिखाया। उसकी बड़ी बेटी पुलिस इंस्पेक्टर बन चुकी थी और छोटी बैंक मैनेजर । मंझली ने लड़का पसंद कर लिया था और मां से साफ शब्दों में कह दिया था कि वह किसी और से शादी नहीं करेंगी ।आज दादाजी और अनुराधा लड़के के घरवालों से मिलकर बात पक्की करने वाले थे। मेहमान आ चुके थे। 

जैसे ही अनुराधा की नजर लड़के के चेहरे पर पड़ी कि उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं। आज हूबहू जैसे रोहन ही उसके सामने खड़ा हो। वही कद काठी शक्ल सूरत यकीन करना मुश्किल हो रहा था।उसके साथ उसकी मां और मामा आये थे। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो पता चला कि लड़के का पिता कुछ सालों पहले केदारनाथ आपदा में लापता हो गए थे। 

उनका अभी तक कोई पता नहीं चल पाया। अनुराधा उनका नाम जानने को व्याकुल थी ,पर पूछ नहीं पा रही थी। धीरे-धीरे बातचीत हुई और पता चला कि वह रोहन का ही बेटा है। अनुराधा कहीं खो गई और सोच रही थी कि काश आज रोहन सामने होता तो वह जरुर पूछती कि मेरा कसूर क्या था? वहीं कहीं खो सी गई . ‌कि  अचानक उसकी तंद्रा टूटी ….बेटी ने मां के कंधे पर हाथ रख कर कहा मां मेरी पसंद कैसी लगी?

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