आत्मग्लानि – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : -कैंसर की पीड़ा भोग रही रेणुका चौथे स्टेज पर पहुंच गयी है ।डाक्टर ने जवाब दे दिया है ।बेड पर पड़ी पड़ी उब गई है वह ।कहने को अब कुछ भी नहीं बचा है ।सोचते हुए अतीत में पहुंच गयी है रेणुका ।माता पिता की दुलारी तो बहुत थी वह ।उनके अधिक प्यार ने थोड़ा जिद्दी भी बना दिया था उसे ।अपने आगे किसी को समझती ही नहीं थी ।

माँ चिंता करती ” कैसे ससुराल में निभेगी?” पिता पीठ थपथपा देते ” सबकुछ ठीक होगा ।पढ़ाई लिखाई में कोई खास मन नहीं लगा तो सोलह साल में ब्याह कर दिया पिता ने ।और कुछ खास भले ही न हो, सुन्दरता में कोई कमी नहीं थी।भगवान ने रूप अपार दिया था ।ससुराल में  सासूमा की आंख का तारा बन गई थी ।सास इतराती ” है पूरे मुहल्ले में मेरी रेणुका जैसी “?

दिन बीतने लगे ।सास घर के सारे काम करती ।रेणुका सिर्फ खाती और दिन भर टीवी देखती या सो जाती।फिर दो साल के बाद एक एक कर तीन बच्चों की माँ भी बन गई थी ।दो बेटे, एक बेटी ।पति की अच्छी नौकरी थी सारी सुख सुविधा मिली हुई थी ।बच्चे पढ़ाई में ठीक ठाक थे।फिर अचानक ससुर जी का देहांत हो गया ।सासूमा अब रोने धोने में लगी रहती ।

पति के गुजर जाने के बाद अब उनका स्वास्थय भी गिरने लगा था ।अतः अब उनसे घर का काम काज नहीं होता ।पति, तीन बच्चे, और सास की देखभाल, रसोई, घर के सारे काम करती वह भी थक जाती ।तो सारा गुस्सा सास पर निकालती ।जिस सास की आंख का तारा थी अब वही सास उसकी आंख की किरकिरी हो गई ।बच्चों को भी दादी से अधिक मिलने की मनाही थी ।

पति भी आफिस से आते तो सीधा अन्दर कमरे में चले जाते ।बाहर कमरे में सासूमा बेटे के लौटने की राह देख कर अंत में सो जाती।भीतर सब लोग एक साथ खाना खाते ।बाहर कमरे में सासूमा अकेले पड़ी रहती ।और उनकी थाली वहां मिल जाती ।सास की कोई भी बात काटने में रेणुका पीछे नहीं रहती।आज बिस्तर पर पड़ी रेणुका पीछे देख रही है ।बेटे की शादी हो गई, वह बहू के बस में हो गया ।बेटी दामाद के बस में हो गई ।सभी अपने में मगन हो गये।छोटा बेटा किसी बंगाली बाला के चक्कर में पड़ा है ।

किसी को रेणुका के तरफ देखने की फुर्सत नहीं है ।अपनी ही परछाई कह रही है ” कहो रेणुका? तुमने भी तो कभी माँ से बेटे को अलग किया था? तुम्हारा पति भी तो अपनी माँ को नजर अंदाज कर सीधा तुम्हारे पास चला जाता था ।” अब क्यों दुख हो रहा है? कभी तुमने अपनी सासूमा की इज्जत नहीं की तो अब क्यों खोज रही हो? जैसा किया था तो अब वैसा ही तो भोगना पड़ता है ।

रेणुका की आँखे बंद हो रही है ।शायद आखिरी वक्त आ गया है ।रेणुका ने ईश्वर के आगे हाथ जोड़ दिये ।” हे ईश्वर, मेरे अपराध को क्षमा करें, मेरे बच्चे सुखी रहें, मेरा अंत आपका नाम लेते ही हो” रेणुका ने लम्बी सांस ली और एक तरफ ढलक गई ।दोनों बेटे दौड़ कर आए।” अम्मा चली गई “”अम्मा की आत्म ग्लानि ने उनको जाते जाते शायद क्षमा कर दिया ।

उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित, मौलिक, अप्रसारित ।

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