आत्मग्लानि – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : भोला झुक्की के बाहर बैठा सुबक रहा था। उसकी बड़ी बहन माया उसके बगल में बैठी उसका सिर सहला रही थी। स्कूल जाने के नाम पर बाबू मारता है और स्कूल में मैडम देखते ही गुस्सा हो जाती हैं। कहकर भोला मुॅंह दबाए निःशब्द रो रहा था।

भोला और उसकी बहन सड़क पर करतब दिखाते थे। अपने शरीर को तरह तरह से मोड़ कर कभी हाथों के अंदर से तो कभी पैरों के अंदर से निकालते रहते थे। रस्सियों पर खुद को साध कर आड़े तिरछे चलते हुए कभी चौराहे पर, कभी लाल बत्ती पर खड़ी गाड़ी के अंदर बैठे लोगों का मनोरंजन करते थे और बदले में किसी ने पाॅंच दस रुपए दे दिए तो झोली फैला कर ले लेते। रात में करतब का अभ्यास करना, सुबह विद्यालय का रुख करना और दोपहर में राह, रास्ते पर करतब दिखाकर चार पैसे लाकर बाबू के हाथ में देना भाई–बहन की यही दिनचर्या थी। 

कहाॅं कहाॅं से ये गंदे शंदे बच्चे विद्यालय में इकट्ठे हो गए हैं। नहाता नहीं रे क्या सुबह। सरकारी विद्यालय की छब्बीस साल की पांचवीं कक्षा की अध्यापिका रोहिणी भोला से कह रही थी और भोला चुपचाप सिर झुकाए कॉपी हाथ में लिए रोहिणी के कटु वचनों को झेल रहा था।

एक दिन उस रास्ते से निकलती रोहिणी की दृष्टि रस्सी पर चलते बालक पर पड़ी। वो उसे देख चौंक पड़ी थी। ये तो पांचवीं कक्षा का छात्र भोला था। कैसे कैसे बच्चों को पढ़ाना पड़ता है मुझे, भुनभुना उठी थी रोहिणी। उसके बाद से भोला और उसकी बहन के प्रति उसका नजरिया बदल ही गया था। बात बात पर उन्हें नीचा दिखाना रोहिणी के व्यवहार में शामिल हो गया।

गृहकार्य नहीं कर सकते तो विद्यालय आते ही क्यों हो, रोहिणी भोला पर चीख रही थी। ऐसे बच्चों से तुमलोग भी दूर रहा करो, रोहिणी अन्य बच्चों के सामने भी भोला को अपमानित करने से नहीं चूकती थी। लेकिन भोला था कि सिर झुकाए सब कुछ सुनता रहता था और अगले दिन फिर से विद्यालय में उपस्थित हो जाता था। 

ऐ इधर आओ, सभी बच्चों को खाना लेने दो, फिर तुमलोग लेना। दोपहर के खाने के लिए प्लेट लिए पंक्ति में लगे भोला और उसकी बहन माया को पंक्ति से बाहर निकालती हुई रोहिणी कहती है। विद्यालय की अन्य शिक्षिका रोहिणी के इस व्यवहार पर ध्यान नहीं देती हुई हॅंस कर टाल देती थी, जिस कारण उसे और शह मिल जाया करती। 

एक रात दावत से घर लौटते समय रोहिणी की गाड़ी खराब हो गई और रात के अंधेरे में रास्ता सुनसान देखकर रोहिणी गाड़ी के दरवाजे को बंद कर घर की तरफ जल्दी जल्दी पैर उठाने लगी, इधर उधर देखती भयभीत हुई हाॅंपती हुई वह लगभग दौड़ने लगी थी।

मैडम जी आपकी गाड़ी खराब हो गई क्या, जाने कहाॅं से भोला और माया अवतरित हो कर रोहिणी से पूछ रहे थे। उन्हें देखते ही रोहिणी के शरीर में प्राण लौट आए थी और उसकी धोकनी की तरह चलती साॅंसें सामान्य होने लगी थी। उस समय रोहिणी भोला और माया की पारिवारिक पृष्ठभूमि विस्मृत कर मुस्कुरा रही थी क्योंकि इस समय रोहिणी के लिए दोनों डूबते को तिनके का सहारा की तरह थे।

मैडम जी, अब डर की कोई बात नहीं है। हम दोनों आपको घर तक पहुॅंचा कर ही वापस आएंगे। रोहिणी के एक ओर भोला और एक ओर माया इस तरह चल रहे थे मानो दोनों उसके अंगरक्षक हो।

मैडम जी, हम दोनों रात में इसी सड़क पर अपने करतब का अभ्यास करते हैं, नहीं तो बाबू स्कूल नहीं जाने देगा और माॅं कहती है अगर मैडम जी लोग की तरह अच्छी जिंदगी चाहिए तो मन लगाकर पढ़ना होगा। इसीलिए मैडम जी हम दोनों भाई–बहन सुबह विद्यालय आते हैं, दोपहर में पैसे कमाते हैं और रात को अभ्यास करते हैं। मस्ती में झूमते हुए भोला रोहिणी के पूछने पर कि इतनी रात सड़क पर क्या कर रहा था, के उत्तर में कहता है। 

मैडम जी बन जाएंगे न हम दोनों भी आपकी तरह, स्वप्निल ऑंखों से ताकता हुआ भोला रोहिणी से पूछता है और रोहिणी उनकी बातों को सुनते हुए हूं हां करती अपने बचकाने व्यवहार को लेकर आत्मग्लानि से गड़ी जा रही थी। शिक्षिका बनकर भी मैं मूर्ख ही रही और समय के थपेड़ों को सहते ये बच्चे विनम्रता की कसौटी पर कसते जा रहे हैं, दोनों के जिम्मेदारी भरे व्यवहार को  देख रोहिणी की सोच रही थी और उसकी आत्मा उसे धिक्कार रही थी। 

घर के अंदर जाती रोहिणी उछलते कूदते जाते भोला और माया को देख एक जागरूक शिक्षिका बनने का संकल्प ले रही थी, अब यही उसके आत्मग्लानि से उबरे का एकमात्र उपाय था।

आरती झा आद्या

दिल्ली

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