आप लोगों की इतनी हिम्मत कैसे – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज सुधा अपनी ननद के घर दस सालों के बाद पहुंचने वाली थी।वो बहुत छोटे गांव से थी। उसने बहुत ही मुश्किल बच्चों को पढ़ा लिखा कर नौकरी के काबिल बनाया।

उसके बच्चों  ने बाहर रहकर ही उच्च शिक्षा ग्रहण की थी।पर सुधा का रहन- सहन गांव में रहने के कारण नहीं बदला था।जबकि उसकी ननद बहुत बड़े शहर बंगलौर में रहती थी।उनका लाइफ स्टाइल भाभी से काफी अलग था।

पर बेटा काबिल होने के कारण उसके बेटे अभिलाष को  नौकरी के सिलसिले में बंगलौर जाना था, उसकी कंपनी में ट्रेनिंग थी।  उसके लिए कंपनी की ओर से होटल में रुकने की व्यवस्था थी।अभिलाष को लगा कि मां मेरी ट्रेनिंग के दौरान बुआ के साथ रह लेंगी। वैसे भी मां कहीं नहीं घूमी है ,बुआ  के साथ बंगलौर घूम लेंगी। और उनका मिलना भी हो जाएगा।

उसकी ननद की अपने भाई से औपचारिक बातें ही होती थी।

इस तरह सुधा अपने बेटे के साथ ट्रेन का सफर करके ननद के घर  पहुंच गई ।

ननद ने अभी चाय पानी ही दिया था।तभी उसे दूसरे कमरे से आवाज़ आती सुनाई दी।सुधा दीदी की बेटी रिंकी कह रही थी ,मम्मी मामी अपने यहां क्यों आई है, वो चाहती तो अभिलाष भैया के साथ होटल में भी रुक सकती थी। जहां अभिलाष भैया के लिए इंतजाम था। वे वहां क्यों नहीं रुकीं??

तब ननद बोली-” हां- हां फालतू में बिना वजह अपने यहां आ गई।

तभी रिंकू भी बोला- हां – हां मम्मी उनका फोन तो ही पापा ने रिसीव किया होगा। आपकी उनसे आने के बारे में बात नहीं हुई क्या??

तब वो  इतना सुनकर सोचने लगी ये हमारी वहीं ननद रानी है जो हर साल मायके में आकर पंद्रह -पंद्रह दिन रह कर जाती थी।आज मेरा पहली बार मौका पड़ा तो इनके मन में यह सब है,इन लोगों को मेरा आना अखर रहा है •••

कितना कुछ नहीं किया रानू दीदी के लिए “””

और आज ये सब  सोच रही है।

उनका  रिंकू और रिंकी की डिलेवरी के बाद आकर आराम करना , मायके में ठससे से रहना, और आज •••वह जब मायके में होती तो मैं उनके मन का कितना कुछ बना- बना कर खिलाती थी । इनके लिए वो गांव में आना,नानी के यहां हर फरमाइश को पूरा करवाना, छुट्टी का मजा लेना कितना आसान था।पर आज मैं जब पहुंची तो यह रवैया •••••

आज सासू मां की एक- एक बात याद आ रही थी।कि बेटी को देते ही हैं, लेने की उम्मीद भी मत करना।पर इनका मेरे बच्चों को कुछ देना दूर, ये तो हमसे प्रेम भी न करते हैं ••••

मैंने तो हमेशा फर्ज निभाये है पर सासूमां ने अपनी बेटी कोई नसीहत नहीं दी। प्रेम और विश्वास से ही आपसी रिश्ता चलता है।पर वो समझ चुकी थी। इतना सुनते ही वह बैठक में बैठ गई।

तभी ननदोई जी ने हाल में आकर  कहा- “अरे भाभी आपको यहां कुछ चाहिए हो तो रानू को कह देना ।”

जैसे तैसे रात का समय हुआ खाना पीना के बाद सब सोने की तैयारी कर रहे थे।तभी रानू दीदी ने ननदोई जी से कहा- ” सुनिए जी आप को एक बात बता दूं।कल मेरी किटी है ,आप भाभी को उसी होटल में छोड़ आना, जहां अभिलाष रुका है ,मैं नहीं चाहती कि वो भाभी अकेली हमारे घर में रहे।

तब बेटू रिंकू बोला- “मम्मी मामी तो गांव की है उन्हें शहरी तौर तरीके नहीं आते हैं ,इसलिए किचन में मत जाने देना। पता चले उन्हें  कुछ यूज करना न आए। और नुकसान कर‌ दे।”

तभी रिंकी भी बोली- ” हां भैया मामी खाना बनाए तो  कहीं अधिक अच्छा खाना बनाने के चक्कर में   अधिक तेल मसाले  न डाल दें।मुझे भी कोलस्ट्रॉल नहीं बढ़ाना ।पता चले मेरा डाइट प्लान की टाय टाय फिस हो जाए। पता चले  कि गांव जितना घी वाला ही आलू हलवा बना दें। छोटे की बात अलग थी।अब मैं डाइट फालो कर रही हूं। मां आप ही कल का खाना बनाने लगना।

तभी रानू  अपने  पति से बोली- ” हां जी आप समझ गये न कल भाभी को आप खाने‌ के बाद होटल छोड़ आना ‌बाकी मैं अपनी भाभी से बात कर लूंगी।”

अब तो‌ इतना सुनने बाद सुधा को‌ चैन नहीं पड़ रही थी। उन्होंने अपने बेटे को रात में सोने के समय फोन‌ मिलाया  और कहा – “बेटा अभिलाष तेरी कल कितने बजे की ट्रेनिंग  होगी ? क्या मैं तेरे साथ उस होटल में रुक सकती हूं।”तब बेटा बोला  -“अरे मां आप तो बंगलौर घूमने आई थी।तो क्यों पूछ रही है।जब मेरी ट्रेनिंग खत्म होगी तो आपको फोन करुंगा।”

तब वह बोली काश हम समझ पाते कि  तेरी बुआ हमें अपना मानती ही न है।वो तो पापा के कारण हम इतना कर गए यदि तेरे पापा आते तो समझते कि उनकी बहन‌ कैसी है।उनको हमारा आना अखर रहा है।वो नहीं चाहती कि मैं उनके घर रुकूं।

मां मेरे साथ रुकना असंभव है यहां •••ठीक है बेटा मेरी तू टिकट  लौटने की करा दे। मैं अपने गांव अपने आप से चली जाऊंगी। क्योंकि तुझे सात दिन और लगेंगे।

फिर अगले दिन वह खाना खाकर  तैयार हो जाती है  तब ननद पूछती -भाभी आप कहीं जा रही हो क्या?उसके बाद वह अपनी ननद से कहती -” दीदी आपको मेरा यहां आना अच्छा न लगा। मैंने आप लोग की कल की बात सुनी और लगा कि मैं फालतू ही अपना समझकर आपके पास चली आई।  मैंने  कहां सोचा था कि मेरा आपसे मिलना भी हो जाएगा।और यहां इतने बड़े बैंगलोर में घूमना ही  हो जाएगा। पर हमें कहां पता था कि आप तो हमें अपना मानती ही नहीं है ••••मेरे प्रति अपनापन ही न‌ है।आपको हमारी वजह से कोई परेशानी नहीं होगी। इस बार न सही,अब मेरा बेटा ही अगली  बार घुमा देगा। वो‌ तो आप लोग  कहती थी कि मेरा बंगलौर ऐसा वैसा है।बस बंगलौर घूमने की हसरत मन में हो गई। इसलिए सोचा आप लोग मेरे अपने हैं आपके साथ घूम लूंगी।पर मेरे समझने ही मेरी ही गलती हो गई।आप दिल से बहुत छोटी रह गई।

काश पहले वो तेरे भैया तुझे समझ पाते तो वो मुझे कभी न भेजते। आज समझ आ गया कि हम लोग गांव से है।पर बेटे को पेट काट- काटकर बड़े लोगों के साथ उठने बैठने लायक बना दिया है।वो भी हमें एक दिन घुमा ही देगा।मेरी शाम की लौटने की ट्रेन है।

अब आप हमसे  भी आगे की कोई उम्मीद मत रखना। जब तक सासुमा थी, तब तक आपने मायके में खूब अधिकार जताया और अब करने की बारी आई तो हम पराए हो गए।

इतना ही कहना  सुनकर रानू दीदी बोलने लगी।भाभी आप कैसी बातें कर रही है।वो तो हमारी किटी बड़ी होटल में थी, तो आप वहां क्या करती।आप ने‌ कभी किटी खेली तो है नहीं, और तो और घर में अकेली बोर हो जाती।

तब वह बोली- दीदी जहां अपनापन होता तो परायापन नहीं लगता। मैं हक से यहां रहती आप भले ही अपनी किटी में चली जाती।

आप  हमेशा मायके आती रही, आपने वहां जन्म लिया तो वो घर हमने पराया न लगने दिया।पर आज यहां आकर समझ आ गया है कि आप तो हमें अपना मानती ही नहीं है ••••अगर मैं कानों न सुनती तो विश्वास ही नहीं होता।खैर अच्छा हुआ जो हुआ अब हमें भी अपनी तरफ से पहल नहीं करनी पड़ेगी।क्योंकि ताली दोनों हाथों से बजती है।आपके भाई को भी पता चले कि आप की हमारे प्रति कैसी सोच है।

तब रानू दीदी ने कहा -नहीं भाभी आप रुको मैं आपको जाने न‌ दूंगी।तब सुधा भाभी ने कहा- “दीदी औपचारिक होने की जरूरत नहीं है।जो कहना था,वो आप और आपके बच्चे के मुख से काफी सुन चुकी हूं आखिर आपकी हिम्मत कैसे हुई जीजा जी से कहने की मुझे अभिलाष के साथ होटल भेज देने की ,मैं सब सुन चुकीं हूं।अब हमसे रुका न जाएगा।दीदी माना कि आपके पास पैसा बहुत है, पर दिल बहुत छोटा है ,देखना पैसा ही हर समय काम नहीं आता एक दिन देखना आपको रिश्तों की भी कद्र होगी। हमारे पास भी भगवान की दया से सब कुछ है । हमारे बच्चों ने साथ दिया तो शहरी तौर तरीका आ जाएगा।”

इस तरह वह बंगलौर घूमने की इच्छा लिए ही गांव लौट गयी। और ननद ने कुछ नहीं किया

।इस तरह कैसे मायके में हक जमाने वाली ननद ने ही उसे पराया कर दिया।

दोस्तों- अपने खास रिश्तों को सहेजने की आवश्यकता होती है। क्योंकि बुरे वक्त में अपने ही काम आते‌ है।पर आपसी रिश्तों में जहां प्यार , विश्वास और अपनापन न हो तो वहीं उनको‌ खत्म कर देना चाहिए।

मौलिक और अप्रकाशित रचना 

अमिता कुचया

2 thoughts on “आप लोगों की इतनी हिम्मत कैसे – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi”

  1. यह बहुत आम बात है।कहीं मेहमान बन कर जाने से पहले ही यह समझ लेना चाहिए कि हर किसी का मन एक सा नहीं होता।
    पैसा रंग दिखाता है तो किस अपने भी बोझ लगने करते हैं।

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