आत्मग्लानि – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मालती जी को कोई बेटी नहीं थी। उन्हें घर की बहू बेटी जैसी ही दिखती थी।वो चाहती थी कि बहू को इतना प्यार दूं कि बेटी की कमी न रहे ••••

वो हमेशा ही बहू को बेटी के नजरिए से देखती और वो हमेशा सोचती कि अगर मेरी बेटी ऐसी होती तो क्या लड़के लड़की में भेद करती नहीं न•••

इसी कारण से बेटे की पसंद को अपना बनाया। और उनकी नेहा बहू  भी बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी। और मालती जी को उससे कोई शिक़ायत न थी ,इसी कारण नेहा के लिए बहू के रुप में नहीं बेटी के रुप में प्रेम था।

आज मालती जी सुबह – सुबह चाय बनाने गई तो उन्होंने सोचा- चलो, आज संडे है तो बहू बेटे के लिए कुछ स्पेशल बनाऊं।अब जैसे ही उन्होंने सोचा दाल पापड़ी बनाऊं।तभी पड़ोसन  निर्मला जी शक्कर लेने आई।तो  वो कहने लगी -अरे मालती तेरी नेहा बहू रोज तो आफिस चली जाती है ।आज  संडे को भी किचन में लगी हैं तू••• उसे कुछ नहीं कहती क्या!

तब मालती जी ने कहा -“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। मेरी बेटी जैसी ही है। इसीलिए कुछ नहीं कहती ••••”

फिर वो चली जाती है।तभी  मनोहर जी कहते हैं- -अजी सुनती हो••• मेरे लिए एक कप चाय बना दो, मैं लॉन  में पेपर पढ़ रहा हूं।

अब मालती चाय बना कर मनोहर जी को दे देती है। फिर किचन के काम में लग जाती है।

अब उनका बेटा मयंक किचन में आ कर कहता -” मम्मी आज हम लोग मूवी देखने चल रहे हैं। जल्दी से तैयार हो जाओ ,तभी चौंककर पूछती -क्या! इतना ही कह पाती है, तभी  वह चाय लेकर चला भी जाता है।

तभी थोड़ी देर बाद बहू  नेहा आती है और कहती -“अरे  मम्मी इन्होंने  बताया नहीं क्या कि हम लोग मूवी देखने चल रहे हैं, जल्दी से तैयार हो जाइए।”

पापा को मयंक बोलता है, पापा हम लोग खाना बाहर ही खाएंगे, बारह बजे का शो है । और  वह हाथ पकड़ उन्हें कमरे में ले जाता है। उसके बाद मम्मी का भी बेसब्री से हाथ पकड़ कर कहता है कि अब कुछ नहीं करो बस तैयार हो जाओ। तभी मालती जी पूछ बैठती है-” अरे बेटा ये कब तय हुआ?”

तब उन्हे मयंक ने बताता है मम्मी रात में ही नेहा से बात हुई ,तब उसने आन‌लाईन ही टिकट बुक कर ली। अच्छा मम्मी अब बस बहुत  हुआ••• बस जल्दी तैयार हो जाओ••••

दोनों मम्मी पापा तैयार होते हैं ,और बहू बेटे से कहते तुम लोग भी तो नाश्ता कर लो, तब बहू कहती- मम्मी हम लोग लेट हो रहे हैं चलिए न•• दाल पापड़ी बनी रखी रह जाती है। फिर शाम को सब खाए पीए लौटते हैं ।खैर••••

बेटा बहू की शादी हुए छह महीने ही हुए। नेहा बहू भी सास को बहुत मान देती है। इसी कारण मालती हमेशा खुश रहती है।

उनकी बहू नेहा नौकरी करती है, सुबह से आफिस चली जाती है, सीधे रात में घर आती है,इस तरह इनको संडे को  ही फैमिली टाइम  मिलता है ,सब बहुत खुश रहते हैं।

पर कहते हैं न, कान भरने वालों की कमी नहीं रहती, ऐसी पड़ोसन मालती जी की है।जब भी मिलती है, तब कुछ न कुछ समझाइश उन्हें दे जाती है।

एक दिन फिर शाम को पहुंची  तो मालती को काम करते देख कहने लगी- अरे मालती, तूने अपनी बहू को कितनी छूट दे रखी है, वो तो लगता है, किचन में जैसे आती ही न हो ! क्या उसने घर को होटल बना रखा है? सुबह होते ही वो आफिस चली जाती है, रात होते ही घर आ जाती है ,ऐसा भी क्या काम ••••कि बहू के सुख ही न मिले।

तब  मालती जी ने कहा -“मेरी बहू भी बेटे जैसा काम करती है, वो भी तो थकती होगी।एक बेटे को हम थका हुआ देखते हैं तो तुरंत पानी देते हैं कि नहीं ••••अगर बहू काम करके आए तो क्या उसे चौंका में लगा दूं?”

आखिर मैंने घर में रहकर काम देख लिया तो क्या••

तब निर्मला जी खीझते हुए कहती हैं -मुझे क्या तू जाने और तेरी बहू, खैर••• मैं चलती हूं कहकर चली जाती है।

फिर कुछ दिन के बाद••••

निर्मला जी की बहू के गोद भराई होनी होती है तो निमंत्रण दे जाती है।देख मालती तुझे आना ही है कोई बहाना नहीं चलेगा।

अगले दिन••••

सब काम खत्म होने के बाद वे‌ निर्मला जी के घर चली जाती है।

तब बहू नेहा घर में ताला लगा देखती है वो सोचती है ,मम्मी जी कहां गयी! बताया भी नहीं ,न ही जिक्र किया कि कहीं जाना है। फिर वह मालती जी को फोन लगा कर कहती है- “मम्मी जी आप कहां है?घर में ताला लगा हुआ है। “

अरे बहू मैं निर्मला आंटी के यहां आई  हूं। उनकी बहू के गोद भराई है, तू वही रुक मैं आ रही हूं।वह तुरंत वहां से घर  चली आती है ।घर आकर आश्चर्य से  पूछती है- अरे !नेहा बहू तू जल्दी कैसे आ गई?

तब नेहा जवाब देती है-“मम्मी आज तबियत ठीक नहीं लग रही है, इसलिए जल्दी आ गई हूं।”

फिर मालती जी कहती हैं – ” हां बेटा तू आराम कर ले। दवाइयां ले ले।मैं तेरे लिए खिचड़ी बना देती हूं।”

और खिचड़ी बनाने लगती है और बेटे के लिए बैंगन का भर्ता, इस तरह वो सोचती नेहा बेचारी कितनी परेशान हो गयी।

अब उसी समय निर्मला जी उनका छूटा हुआ पर्स देने आती है और वो कहती -सुन मालती क्या हुआ जो इतनी जल्दी आ गयी, तू जल्दी -जल्दी में अपना पर्स भी भूल आई।वहीं देने आई हूं।

फिर मालती जी कहने लगती है- अरे नेहा घर जल्दी आ गई थी । और उसका फोन आ गया तो इसीलिए घर आना पड़ा।

तभी निर्मला जी कहती हैं-चाबी लेने बहू भी तो आ सकती थीं । मेरा घर पास ही में तो है।

अरे नेहा की  तबीयत ठीक नहीं है न••••

तब निर्मला जी कहती – ऐं… ये क्या बड़े नखरे है तेरी बहू के ,मालती अपनी बहू को खूब सिर चढ़ा रही है फिर देखना‌ कैसे तेरी बहू तुझे ही नाच नचाएंगी , फिर मुझे मत बताना…अरे बहू की लगाम कस कर रखना चाहिए नहीं तो इनके पंख आ जाते‌ है। और वो हवा में उड़ने लगती है।इसके बाद मालती कहती- नहीं निर्मला.. मेरी बहू ऐसी नहीं है।कुछ नहीं होगा। इतना सुन निर्मला को बुरा लगता है और वह चिढ़कर कहती- तो खूब कर उसकी देखरेख… मैं तो चली, और वे इतना कहकर वहां से चली जाती है

उसके बाद मालती जी को रात में याद आता है मैंने तो शगुन का लिफाफा दिया ही नहीं।ओह मैं जल्दी- जल्दी में भूल ही गई ।कल दे आऊंगी।

अगले दिन वो निर्मला जी के घर  पर शगुन देने  जाती है  तो वो देखती है कि बड़ी बहू पैर दबा रही है। दूसरी बहू  चाय -नाश्ता ला रही है ।अब उसे भी लगने लगता है••• निर्मला कितनी खुशनसीब है  कि बहूएं आगे पीछे काम कर रही है। और मैं घर में खुद अकेले ही काम करती रह जाती हूं।

अब दोनों में बातें होती हैं।तभी निर्मला जी अपना रौब दिखाते हुए कहती हैं- ” देखा मालती मैंने कैसे बहुओं की लगाम कस कर रखी है। उनकी मजाल नहीं कि मेरे सामने उफ़ करें।”

इतना सुनते ही उसके हाथ से साड़ी में अचानक ही चाय गिर जाती है ,तब वो बोलती है मालती चल‌ मैं तेरी साड़ी धुला देती हूं,उस तरफ वाश बेसिन लगा है,अभी धो ले नहीं  तो निशान नहीं जाएंगे।तभी किचन के पास वाले बेसिन के पास पहुंचती है तो वो दोनों बहुओं के मुख से बुराई सुनती है, और वे सुन के धक रह जाती है।वो सुनती है•••• कैसे अम्मा जी अपना हुक्म चलाती रहती है ,ऐसा आखिर कब तक झेलना पड़ेगा दीदी।

तब उसकी बड़ी जेठानी कहती हैं-“ये अरे • पता नहीं  हमें  कब तक झेलना पड़ेगा।इन के सामने कुछ बोलना याने आफत मोल‌ ले लेना है।

अब इतना बहुओं की बातें मालती के सामने सुन कर निर्मला जी को आत्मग्लानि होती है। तब निर्मला जी अपनी नजरें झुका लेती है।अंदर‌ ही अंदर सोचने लगती मैंने बहुओं की लगाम कसने मालती से क्या कुछ नहीं कहा ,तब मालती को लगा क्या कहूं।अब निर्मला को।खैर••••

अब दोनों वापस आकर बैठक में बैठती है तभी मालती जी छोटी बहूं को बुलाकर लिफाफे देने लगती है।तब छोटी बहूं सासूमां को लिफाफा पकड़ाने लगती है ,तब वे कहती -अरे छोटी तुझे ये शगुन‌ का लिफाफा मिला है इस पर तेरा हक है। इतने में बड़ी बहू और मंझली बहू भी वहां आ जाती है।अरे मां जी कैसी बातें कर रही है,आप तो ऐसी नहीं है आप तो हम लोगों को मिले शगुन रख लेती थी। कहती थी हमें भी व्यवहार करना पड़ता है,आज कैसे मां जी ??तब निर्मला जी कहती अरे बहुओं जो‌ मैंने किया बहुत ग़लत किया।जो हर चीज पर तुम लोगों पर रोक टोक लगाती आई हूं। मैं ही कितनी ग़लत थी।आज तुम लोग की बात न सुनती तो मुझे एहसास ही न होता कि तुम लोग मेरे प्रति कैसा भाव बनाए हुए हो।इस तरह निर्मला जी मालती जी के सामने ही अपनी बहुओं से माफी मांगती है।

फिर मालती जी से निर्मला जी कहती- तुम अपनी जगह सही हो मालती आज मुझे पछतावा हो रहा है कि अगर‌ मैंने अपनी बहुओं के साथ ग़लत न किया होता , उन्हें प्यार से रखती तो वो भी मेरा सम्मान करती, न कि ऊपरी दिखावा तुम्हारी वजह से मेरी आंख खुल गई।आज तो मुझे आत्मग्लानि महसूस हो‌ रही है कि मैं तेरी सोच की तरह मैं अपनी सोच क्यों न बना पाई। अब मालती जी ने समझा कर कहा- ” बहुएं हमारे घर का हिस्सा है ,हम उन्हें प्यार देंगे तब तो हमें भी सम्मान मिलेगा। अभी भी कुछ न बिगड़ा बस तू सुधर जा। बहुओं पर हुक्म न चलाया कर । उन्हें अपनी जगह पर रख कर सोच। फिर देखना तेरी बहुएं तुझे दिल‌ से सम्मान देंगी।न कि तेरे सामने ऊपरी दिखावा।”

इतना सुनकर निर्मला जी कहती-” हां हमें अपनी सोच ही बदलनी होगी, तब सब ठीक होगा।

और निर्मला जी अपने स्वभाव बदलाव लाने‌ का वादा कर लेती है।

तब मालती जी  को लगा हां, मेरी बहू तो कम से कम मन में मैल तो नहीं रखती ।

आज उसकी बहुओं जैसी  सोच तो नहीं मेरी बहू नेहा की नहीं है। मेरी बहू तो बेटी से कम न‌ है। मैं तो भरपूर बेटी जैसा ही प्यार दूंगी। ताकि ऐसे भाव भी उसके सपने में न आए।

दोस्तों -हम बहुओं को बेटी नहीं समझ सकते हैं , लेकिन घर का हिस्सा मान कर ही अपनापन दें तो कम से कम बहुओं को सास के सामने दिखावा न करना पड़े।हम बहुओं को जितना प्यार देंगे तो हमें उतना ही सम्मान मिलेगा।

स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना 

अमिता कुचया

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