आस्तीन के साँप   : Top 10 moral stories in hindi

Moral stories in hindi :

बड़ी दीदी – पूनम अरोड़ा

माता पिता बचपन में ही चल बसे थे मीनू के।पहले बड़ी दीदी थी जिन्होंने उसकी परवरिश की और फिर उनकी शादी से पहले ही भाभी आ गई घर में, उनके ही सानिध्य में बड़ी हुई वह इसलिए ही वह उनके ज्यादा निकट थी। वह शुरू से ही पढ़ने में मेधावी तो थी ही और साथ साथ भाभी के साथ भी घर का पूरा काम कराती जिससे वो भी उससे खुश रहतीं ।पढ़ लिख कर मीनू को उसी काॅलेज में लेक्चरार की जाॅब भी मिल गई ,हर महीने मोटी सैलरी आती घर में, वो अपना हाथ खर्च रखकर बाकी सब भाभी को पकड़ा देती । घर के हालात बदल रहे थे क्योंकि भाई की तो बस गुजारे लायक ही थी तनख्वाह । घर का नवीनीकरण , फर्नीचर ,रहन सहन ,खान पान ,स्टेटस में बदलाव आने लगे उसकी सैलरी की बदौलत ।इतनी अच्छी पोस्ट और सैलरी के बावजूद वो घर के कामों मे भी अपना पूरा योगदान देती इसलिए भाभी भी खुश रहती उससे ।एक दिन मीनू ने बताया कि उसके साथ काॅलेज में साथ पहले पढ़ने वाले रोहित ने उसे प्रपोज किया है ।वह भी उसे लाइक करती है। वह बिहार का रहने वाला है , यहाँ पढ़ने के लिए आया था ,अब उसकी जाॅब भी लग गई है बंगलौर में।अगले हफ्ते ज्वाइन करना है ।जाने से पहले वो हमारे रिश्ते को नाम देना चाहता है ।भाभी आप उससे बात कर लेना । यह उसका नं है

ऐसा कहकर शर्मा कर चली गई ।

बात करने के बाद भाभी ने उसे बताया कि वो तो शादी के लिए राजी नहीं है तो सुनकर वह सन्न रह गई ।उसने फोन लगाया तो फोन बन्द आ रहा था रोहित का ,बाकी कोई नं उसे पता नहीं था ना ही घर का एड्रैस ।समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हुआ किससे पूछे?धीरे धीरे समय बीतता गया ।रिश्ते आते लेकिन पता नहीं कहीं “हाँ” नहीं होती ।सब हैरान थे आखिर क्या कमी है मीनू में सुन्दर ,सुशील ,कमाऊ ,कुशल फिर क्यों 32 साल की उम्र तक अविवाहित है ?औरों की तो छोडो खुद मीनू को भी समझ नहीं आता कि उसमें क्या कमी है ?धीरे धीरे वो इन्फिरअरिटी काम्पलैक्स का शिकार होती जा रही थी।

उस दिन एक सहयोगी टीचर के साथ शाॅपिग माल गई तो रोहित को पत्नी बच्चों के साथ अचानक देख कर अवाक रह गई । रोहित उसे देख कर पास आया और बोला” कैसी हो”? उसने गुस्से से मुँह फेर लिया तो वह बोला “गुस्सा तुम किसलिए हो , गुस्सा तो मुझे होना चाहिए जो तुमने मुझे धोखे में रखा ।वो तो तुम्हारी भाभी ने सब सच बता दिया कि तुम कभी माँ नहीं बन सकती, यह बात सोच कर शादी करना । तो क्या करता मैं?तुमसे शादी करके अपने खुद की संतान सुख से वंचित रहता ?”

मीनू पर तो जैसे गाज गिर पडी !!!!भाभी !!जिसे उसने अपना सबसे अच्छा दोस्त माना ,माँ की तरह मान सम्मान दिया ,उन्होंनें मेरी सैलरी के लालच में मेरे साथ विश्वासघात किया ।सच में आज तक जिसे वो बाजूबंद समझती रही वो तो आस्तीन का साँप निकली।

#आस्तीन का साँप

पूनम अरोड़ा

बड़ा भाई पिता समान – संगीता अग्रवाल

 

” ये क्या कर रहे है आप मकान बेच सारा पैसा अपने भाई को दे रहे है जबकि आपको पता है ये मकान हमने लेकर ही इसलिए छोड़ा था कि कल को बच्चो की पढ़ाई मे कोई अड़चन ना आये !” स्वाति पति रौनक से बोली।

” स्वाति बच्चो की उच्च शिक्षा के लिए अभी दो साल का वक्त है हमारे पास अभी छोटे का व्यापार डूब रहा है तो उसे संभालना ज्यादा जरूरी है। फिर छोटा भी तो बच्चो का चाचा है वो खुद उनकी पढ़ाई मे रूकावट नही आने देगा खुद ही पैसा दे देगा वक्त से पहले !” रौनक बोला।

वक़्त बीतता गया और रौनक के बेटे ने बारहवीं पास कर ली अब उससे बी टेक करनी थी इधर रौनक के भाई का व्यापार बहुत अच्छा चल निकला था इसलिए रौनक को कोई फ़िक्र ही नही थी उसे पता था समय पर भाई पैसे लौटा देगा इसलिए वो भाई के पास गये।

” छोटे ऋषभ का बीटेक मे दाखिला करवाना है तो वो मेरे पैसे लौटा दे तू !” रौनक भाई से बोला।

” भैया अभी व्यापार मे थोड़ा घाटा चल रहा है मैं जल्द पैसे दे दूंगा आप फ़िक्र मत कीजिये !” भाई बोला।

वक़्त बीता और ऋषभ के दाखिले की अंतिम तिथि नजदीक थी पर रौनक का भाई पैसे देने को तैयार नही था। जबकि रौनक बार बर तकादे कर रहा था।

फिर एक दिन पता लगा उसके भाई ने तो पोश इलाके मे एक कोठी खरीदी है तब रौनक को एहसास हुआ उसका भाई भाई नही आस्तीन का वो साँप है जो अपने भाई के विश्वास के साथ साथ अपने भतीजे के भविष्य को भी डस गया। उसने किसी तरह अपना मौजूदा घर बेच बेटे को पढ़ने भेजा और खुद किराये का घर तलाशा । अब अपने पैसे गंवा कर रौनक किराये के घर मे रह रहा है और दूसरों के पैसे हड़प छोटा भाई परिवार सहित कोठी मे बसने की तैयारी मे लगा है ।

धन्यवाद

संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )

#आस्तीन का साँप

 

 आस्तीन का साँप  – प्राची लेखिका

आज अग्रवाल साहब अपनी लड़की के रिश्ते के लिए जा रहे थे। सारी तैयारी कर ली गई। शगुन में देने के लिए गिन्नी भी रख ली।चाचा को भी साथ ले लिया गया।

देखने दिखाने का कार्यक्रम चल रहा था। गोद भरने की तैयारी हो रही थी। लेकिन तभी कुछ कानाफूसी सी होने लगती है और लड़के वाले रिश्ते से मना कर देते हैं।

सभी लोग उदास मन से घर लौट आते हैं। अग्रवाल साहब की बेटी मान्या के दिल पर गहरी चोट लगती है।

दबी जवान से सुनाई भी पड़ता है कि लड़की के चाचा ने चुगली की है।

पर अग्रवाल साहब सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करते। उन्हें अपने भाई पर पूरा भरोसा था।

कुछ दिन बाद सुबह-सुबह चाचा मिठाई का डिब्बा लेकर उनके घर आते हैं। मिठाई निकालते हुए कहते हैं, “भाभी मुंह मीठा कीजिए। आप की भतीजी सौम्या का रिश्ता तय हो गया है।”

मान्या की मम्मी बधाई देते हुए पूछती हैं,”अच्छा भाई साहब बढ़िया है। कहाँ से हुआ रिश्ता?”

चाचा दांत निपोरते हुए कहते हैं,”भाभी जो मान्या के लिए लड़का देखा था ना। वह लड़का लंबा था। सौम्या की लंबाई भी अधिक है। मुझे तभी वह लड़का बहुत जम गया था।

कोई बात नहीं भाभी, मान्या के लिए और अच्छा घर ढूंढ लेंगे।”

मान्या की मम्मी उनकी बात सुनकर सोचने लगी #आस्तीन का साँप घर पर ही था।

जिसको पालकर उन्होंने अपने घर की खुशियों में ही आग लगा ली ।

स्वरचित मौलिक

प्राची लेखिका

बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

 

स्वार्थी भाई  – सुषमा यादव

 

बाबू जी छः भाईयों में सबसे छोटे थे। एक एक करके सभी भाई अलग हो गए,पर बड़े भाई साथ में ही रहते थे। वो कानपुर में रेल्वे में नौकरी करते थे। उनका परिवार बाबूजी के साथ ही रहता था। बाबू जी ने उनके दो बेटों और एक बेटी को पढ़ाया लिखाया। उनकी शादी भी करवाई। अब दोनों बेटे भी अलग रहने लगे। अपनी मां को नहीं ले गये। वो बाबू जी के साथ ही रहतीं थीं। अब मेरी शादी की तैयारी चलने लगी।

बड़े पिता जी रिटायर्ड हो कर घर आ गए। बाबू जी ने बड़ी मुश्किल से उनके परिवार और अपने परिवार का पालन पोषण किया था। उन्होंने कभी भी बाबू जी की पैसों से मदद नहीं की।

अब बाबू जी ने उनसे अपनी बेटी की शादी के लिए मदद करने को कहा तो उन्होंने कहा, तुम्हारी बेटी, तुम जानो। क्यों इतना पढ़ाया। बहुत दहेज देना पड़ेगा। मैं बंटवारा चाहता हूं। बाबू जी ये सुनकर अवाक रह गए। भैया, मैंने अपना सब कुछ आपके बच्चों मे खर्च कर दिया। मैं आज खाली हाथ हूं। पर उन पर किसी बात का असर नहीं हुआ, पंचायत बुलाई गई और सबसे बढ़िया खेत,बगीचा सब अपने हक में करवा लिया। बाबू जी ने कोई विरोध नहीं किया, उनके धोखेबाजी और स्वार्थ पर आंसू बहाते रहे।

बाबू जी ने रोते रोते कहा, मैंने तो इन्हें राम जैसा भाई माना था। हमारी राम लक्ष्मण की जोड़ी सब मानते थे। ये तो आस्तीन का सांप निकले। इन्होंने मुझे डस लिया, मुझे ही नहीं मेरे विश्वास, श्रद्धा, आस्था सबको सांप बन कर डस लिया। मैं तो बरबाद हो गया, मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

#आस्तीन का सांप।

धोखे कैसे कैसे – ऋतु अग्रवाल

“क्या,सुलभा! आज फिर सब्जी में नमक तेज है। शादी के वक्त तो तुम्हारी मम्मी ने बहुत बढ़-चढ़कर कहा था कि हमारी बिटिया खाना बनाने में बहुत निपुण है। शुरू में पाँच-सात दिन तो तुमने खाना बहुत स्वादिष्ट बनाया और अब कभी नमक तेज तो कभी मिर्च और तो और सूजी का हलवा भी तुमने हमें मीठा-नमकीन खिलाया। शायद ज्यादा तारीफ से तुम्हारा दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच गया है”कौशल्या जी की डाँट सुनकर सुलभा की आँखें भर आईं।

आज फिर सब भूखे ही उठ गए। सुलभा समझ नहीं पा रही थी कि आखिर खाने में मसाले यकायक तेज कैसे हो रहे हैं? वह तो खाना पकाने में पूर्णतया निपुण है।

“कोई बात नहीं, छोटी! कभी-कभी हो जाता है। फिर मैं हूँ न तुम्हारे साथ।अभी तुम नई हो,कभी-कभी घबराहट में ऐसा हो जाता है”बड़ी बहू विभा ने कहा तो सुलभा उसके गले लग कर बोली,”दीदी! बस आपका ही सहारा है। कल मैं सांभर डोसा बनाऊँगी।फिर देखना, कैसे सब की नाराजगी दूर होती है।”

अगले दिन सुलभा सांभर-डोसे की तैयारी कर कमरे में जाकर सुस्ताने लगी कि कौशल्याजी के चिल्लाने की आवाज़ आई। विभा घबराकर रसोईघर की तरफ भागी। देखा तो कौशल्याजी आग-बबूला हो रही थीं और विभा हाथ में मिर्च का खुला डिब्बा लिए खड़ी थी।

“अब समझ आया कि अचानक खाने में नमक-मिर्च ज्यादा कैसे होने लगा।” कौशल्याजी ने विभा के हाथ से मिर्च का डिब्बा छीनते हुए कहा।

“दीदी! आप—?” सुलभा भौंचक्की रह गई।” मैं तो आपको अपना सबसे बड़ा शुभचिंतक मानती थी पर जलन की भावना में आप इतना गिर जाओगी,यह मैंने नहीं सोचा था। आप तो आस्तीन का साँप निकलीं।”

 

मौलिक सृजन

ऋतु अग्रवाल

 

निःसंतान – डाॅक्टर संजु झा

 

शादी के पाँच वर्ष तक निःसंतान रहने पर निभा दम्पत्ति ने एक प्यारी सी बच्ची को गोद ले लिया।बच्ची के आगमन से उनके सूने जीवन की बगिया में बहार आ गई ।मानो सूखे रेगिस्तान में रिमझिम बारिश हो गई हो।निभा दम्पत्ति बड़े लाड़-प्यार से बेटी निम्मो की परवरिश कर रहे थे।

निभा के पति प्रशांत तो बेटी की छोटी-सी-छोटी इच्छा भी पूरी करते,इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि निम्मो जिद्दी होती चली गई। बराबर कोई बहाने बनाकर स्कूल न जाना उसकी आदत बन गई। स्कूल से शिकायतें आने पर उसके पिता स्कूल ही बदल देते थे।बेटी के निरंकुश व्यवहार से व्यथित होकर निभा टोका-टोकी करती,तो प्रशांत पत्नी को चुप कराकर बेटी का ही पक्ष लेते।

कहा गया है ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्।’अर्थात् अति सब जगह बुरी होती है।अत्यधिक लाड-प्यार से निम्मो की आदतें बिगड़ चुकी थीं।उसने पढ़ाई छोड़ दी और आवारा किस्म के लड़कों से दोस्ती कर ली।

एक दिन इसके पिता प्रशांत ने बेटी निम्मो को आवारा किस्म के लड़कों के साथ सिगरेट और शराब पीते हुए देख लिया।प्रशांत बेटी के कारनामों के कारण काफी उत्तेजित और गुस्से में थे।पत्नी निभा ने पति को समझाते हुए कहा -“जब बेटी को सही सीख देनी थी और अनुशासन में रखना था,तब तो आपने खोखला प्यार दिखाया।’अब पछताए होत क्या,जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।’

पत्नी की बातों ने प्रशांत के गुस्से में अग्नि में घी के समान काम किया। वे बेटी को देखकर गुस्से से उबल पड़े और उसे डाँटते हुए कहा -“निम्मो!हमारे निःस्वार्थ प्यार का तुमने नाजायज फायदा उठाया है!आज से तुम्हारा बाहर जाना और दोस्तों से मिलना बिल्कुल बंद!”

निम्मो ने उस समय तो कुछ नहीं कहा,बस आँखें तरेरकर अपने कमरे में चली गई। एक दिन बात निभा दम्पत्ति की लाश कमरे में मिली।पुलिस अनुसंधान से पता चला कि निम्मो ने ही दोस्तों के संग मिलकर उनका गला घोंट दिया था।

इस लोमहर्षक घटना से सभी जानकार स्तब्ध थे।कुछ लोग कह रहे थे कि इतने दिनों तक निभा दम्पत्ति ने आस्तीन में साँप पाल रखा था,जिसने समय पाकर उन्हें डँस लिया।

समाप्त।

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)

#आस्तीन का सांप

भरोसे की चोरी  – लतिका श्रीवास्तव

रंजन ऑफिस की महत्वपूर्ण फाइल तेजी से निपटा रहा था कि उसका फोन जोर से बज उठा..हेलो हां हां प्रकाश जी ….क्या कह रहे है!!

प्रकाशजी अपने पड़ोसी की बात सुन कर रंजन का दिमाग झन्ना गया था कि आपके घर के सभी दरवाजे खुले हुए हैं कुछ गड़बड़ सा लग रहा है कह रहे थे।

उसने तत्काल रेनू जो वहीं पास के दूसरे ऑफिस में जॉब करती थी फोन लगाया..रेनू घर की चाबी किसके पास हैं??

गोलू के पास है रंजन क्यों क्या हुआ?? अवि तो ठीक है ना??रेनू को अपने चार वर्ष के पुत्र अवि की चिंता होने लगी!!

तुम ऑफिस के बाहर आओ मैं कार लेके आ रहा हूं घर चलना है..!रंजन ने बस इतना ही कह फोन रख दिया।

चिंतित से दोनों जैसे ही घर के पास पहुंचे घबराए हुए प्रकाश जी दो और पड़ोसियों के साथ बाहर ही मिल गए…धड़कते दिल से सब घर के अंदर गए तो जैसे धमाका सा हो गया उनकी आंखों पर।

घर का पूरा सामान तहस नहस था तीनों गोदरेज अलमीरा खुली पड़ी थीं सारे सूटकेस बिखरे पड़े थेअंदर का पूरा सामान बाहर पड़ा था

एक क्षण को तो रेणु के पैर जम से गए… तुरंत उसने अंदर अपनी अलमारी देखी गहनों का पूरा बॉक्स गायब था। एक शादी में पहनने के लिए लॉकर से अपने सारे गहने निकाल लाई थी जिन्हें वापिस लॉकर में ले जाकर रखना दो दिनों से टलता जा रहा था.. “हाय मेरे सारे गहने चोरी हो गए रंजन” उसने चीख कर कहा तो रंजन ने भी अपनी अलमारी देखी पूरे पचास हजार रुपए जिन्हे वो फर्नीचर वाले को देने लाया था गायब थे….!

दोनों के पांव तले जमीन खिसक गई थी….

गोलू ..गोलू कहां है रंजन ने जल्दी से पूछा तो प्रकाश जी ने कहा रंजन जी वही गोलू तो चोर है आस्तीन का सांप जिस थाली में खाया उसी में छेद कर गया आप लोगो के भरोसे की चिता जला दी उसने…!

क्या…! गोलू ने चोरी की अपने ही घर में।रेनू अवाक थी।

गोलू को वे घर का नौकर नहीं घर का सदस्य मानते थे…उसी गोलू ने घर में घुस कर घर में ही सेंध लगा दी !!!!

गोलू को रेनू की सहकर्मी ने उसके घर काम पर लगवाया था मुश्किल से छह महीने ही तो हुए थे अभी गोलू को उनके घर काम करते हुए पर आते ही अपनी कार्यकुशलता ईमानदारी और तत्परता से सबका दिल जीत लिया था …रेनू और रंजन दोनो का जॉब था इसलिए वो ऐसा ही नौकर चाहते थे जो इसी साल से स्कूल जा रहे उनके बेटे अवि की देख भाल करे उसको स्कूल बस में बिठाने और दोपहर में बस से घर लाने खाना खिलाने घर बाहर सब काम जिम्मेदारी से कर सके …गोलू पर विश्वास करते गए निर्भर होते गए ….!

अवि कहां है …..!गोलू उसे भी ले गया क्या हाय मेरा बेटा ….रेनू मानो विक्षिप्त सी हो गई थी कि अचानक देखा मासूम अवि नन्हे हाथों से भारी स्कूल बैग घसीटता चलाआ रहा था… मम्मी गोलू भैया क्यों नहीं आए मुझे लेने मैं कितनी देर तक उनका इंतजार करता रहा देखो कितना भारी बैग है ये …गोलू भैया कहां हो आप …!अबोध अवि नहीं जानता था जिसे वो भैया कहता ही नहीं भैया मानता भी था वही गोलू आस्तीन का सांप बन कर उन्हे डस गया था।

लतिका श्रीवास्तव

#आस्तीन का सांप

 

सम्बन्ध विच्छेद – डा. मधु आंधीवाल

भाई बहन का प्यार एक अटूट बन्धन होता है पर कभी कभी इनमें भी स्वार्थ वश कटुता आ जाती हैं । रमाकान्त अपनी लाड़ली मृगया के लिये रिश्ता तलाश रहे थे । रमाकान्त के दिल का टुकड़ा थी मृगया । दुनिया के स्वार्थ से अनजान । आज सौम्या को देखने इंजीनियर प्रखर और उसके मम्मी पापा देखने आ रहे थे । घर में काफी गहमा गहमी थी । रमाकान्त ने भी अपने भाई और बहन बहनोई सुशीला और मणिकान्त को बुला लिया था । प्रखर और उसके मम्मी पापा आ चुके थे । सौम्या को जब उन लोगों से मिलवाया वह लोग सन्तुष्ट नजर आये और यह कह कर चले गये कि घर जाकर जवाब देगें । रमाकान्त को पूरा विश्वास था कि एक दो दिन में हां हो जायेगी क्योंकि वह शादी भी लड़के की मांग के अनुसार कर रहे थे क्योंकि सौम्या उनकी इकलौती सन्तान थी ।

दो दिन बाद रमाकान्त की बहन सुशीला का फोन आया भैया आज सबको हमारे यहाँ दोपहर को आना है और सबका भोजन भी यहीं है। सुशीला रमाकान्त की इकलौती बहन थी उन्होंने अधिक नहीं पूछा और बोले हम जरूर आयेगे । जब दोपहर में वहाँ पहुँचे उनको बहुत दुख हुआ यह देख कर कि सुशीला और मणिकान्त ने अपनी बेटी रूपल जो सौम्या की हम उम्र थी । इन दो दिनों में ही प्रखर और उसके मम्मी पापा को अपनी बातों में उलझा कर रूपल से सम्बन्ध तय कर दिया । आज उसकी अंगूठी की रस्म थी ‌। रमाकान्त उसी समय अपने परिवार को लेकर लौट आये वह अपनी बहन बहनोई का ये छल कपट भरा व्यवहार सहन नहीं कर पाये और उन्होंने अपनी बहन से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया । उनको नहीं पता था कि उनकी बहन और बहनोई “आस्तीन के सांप निकले ” ।

यह मेरे परिवार की सच्ची घटना है।

स्व रचित

डा. मधु आंधीवाल

अपनों पर कर भरोसा क्या पाया… – रश्मि प्रकाश

“कमल ये गगन बहुत दिनों से गाँव गया है आया नहीं… जरा जाकर तुम साइट पर चेक करना सब काम ठीक से हो रहा है कि नहीं…. उसको पैसे भी दिए थे वहाँ मज़दूरों को देने के लिए वो भी पता कर लेना ।” वीरेन जी ने अपने छोटे भाई से कहा

“ ठीक है भैया जाकर देख लेता हूँ ।” कह कमल निकल गया

“आप तो अपने घर वालों के खिलाफ एक बात सुनने को तैयार नहीं रहते पर मुझे आपके ये चचेरे भाई गगन कुछ सही नहीं लगते…देखना एक दिन पछताना ना पड़े ।“ पत्नी सुमिता जी ने वीरेन जी से कहा

“ तुम भी ना बेकार ही सोचती रहती हो..अरे अब चाचा ने कह दिया कि इसे अपने साथ रखकर काम सिखाओ तो क्या मना कर देता.. वैसे भी हमारा संयुक्त परिवार है…एक दूसरे का साथ देने से ही प्यार रहेगा ना… अब हम शहर आ गए हैं तो गाँव में सबको उम्मीद रहती कि हम सबकी मदद करे… गया होगा घर माता-पिता से मिलने आ जाएगा ।” खाना खा कर वीरेन जी आराम करने लगे

कुछ देर में कमल ने आ कर वीरेन जी को जो बताया वो सुनकर उनका सिर चकराने लगा

“ भैया गगन भैया ने तो इस बार किसी को पगार नहीं दिया वो कई बार ऐसे ही करते हैं समय पर उन मज़दूरों को पगार नहीं देते और सबसे झगड़ा करते रहते वो उधर भोला के ढाबे पर जाकर खा पीकर आ जाते उसके भी पैसे नहीं दिए सब जगह आप पर उधारी चढ़ा रखी है..और तो और वो जो चंपा काम करती उसकी जवान होती बेटी के साथ बदतमीज़ी भी किया करते थे… सब कह रहे हम तो बड़े साहब को बहुत मान देते इसलिए उनके भाई की गलती बर्दाश्त कर रहे थे नहीं तो सब मिलकर उनको थूर देते।” कमल ने एक ही सांस में सब कह दिया

“लगता है हमने अपने ही घर में आस्तीन का साँप पाल रखा था जिसने हमें ही चूना लगा कर निकल गया…..हमेशा मेरे सामने सिर झुकाए खड़ा रहता था… हर बात धैर्य से सुनता … शुरू में सब काम ईमानदारी से कर रहा था मेरा भरोसा क्या बढ़ा वो मुझे ही चूना लगाने लगा…जरा फोन तो पकड़ाओ… गाँव फ़ोन कर पता तो करें ।” वीरेन जी ने सुमिता जी को देखते हुए कहा

“ हम कह रहे थे पर आप कहाँ सुनते हमारी बात…अब तो हमको भी यक़ीन हो रहा… आप जो पैसे देते थे वो हम यही गद्दे के नीचे रख देते थे बहुत बार पैसे कम मिले… हम सोचते हमसे ही खर्च हो गए होंगे पर …ना वो तो गगन जी निकाल लेते थे एक बार देख लिए तो कह रहे थे कुछ पेपर खोज रहे भैया बोले देखो तकिये के नीचे ही होगा ।” सुमिता जी फ़ोन पकड़ाते हुए बोली

“ हैलो चचा गगन कहाँ है जरा बात तो करवाइए?” वीरेन जी ने अपने चाचा से कहा

“ अरे बेटवा तुमने तो हमार गगनवा को शहरी बना दिया… आजकल वो यही कही काम पर जाता है… कह रहा था भैया ने बहुत पैसा दिया है अब वहाँ का काम ख़त्म हो गया है नया काम शुरू होगा तो जाएँगे… तुम हमका खबर कर देना हम भेज देंगे उसको।” चाचा की बात सुन वीरेन जी को समझते देर ना लगी कि ये गगन कोई काम वाम नहीं कर रहा ज़रूर किसी गलत संगत में पड़ गया है।

“ठीक है चचा ।” कह कर वीरेन जी ने फ़ोन रख दिया

“ अब क्या करना है भैया?” कमल ने पूछा

“ कुछ नहीं आस्तीन के साँप को अब यहाँ नहीं बुलाना है…और हाँ कमल तुम भी चाहते हो मेरे साथ इस काम में हाथ बटाना तो पहली सीख यही है कि कभी भी अपने को दगा देने की मत सोचना….क्योंकि तुम मुझे दग़ा दोगे तो तुम्हें भी दगा देने वाला कोई ना कोई बैठा मिलेगा कम से कम ग़रीबों के साथ ऐसा व्यवहार कभी नहीं … अब कल से मैं खुद ये सब देखूँगा।” वीरेन जी कह कर गगन की चालबाज़ी पर क्रोधित हो कर भी सामने प्रकट नहीं कर पा रहे थे क्योंकि वो कहाँ सोच पाए थे कि मेरे ही अपने इस कदर आस्तीन का साँप निकल जाएगा

दोस्तों बहुत बार अपने ही करीबी आपकी आँखों पर प्रेम के भरोसे की ऐसी पट्टी बाँध देते हैं कि हम आँख बंद कर भरोसा करते और वो हमारे इसी व्यवहार का फ़ायदा उठाकर हमारे लिए आस्तीन का साँप निकल कर आते हैं ।

मौलिक रचना

रश्मि प्रकाश

# आस्तीन का साँप

आस्तीन का साँप – के कामेश्वरी 

जीवन जी इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर थे । उनके साथ ही कॉलेज में पढ़ाने वाले महेश जी के साथ उनकी अच्छी दोस्ती थी । दोनों का एक-दूसरे के घर आना जाना लगा रहता था ।

जीवन की एक बेटी और दो बेटे थे । बेटी संचिता बहुत ही होशियार थी। वह बारहवीं के बाद मेडिकल के एन्ट्रेंस में अच्छे नंबरों से पास हो गई थी । उसका एडमिशन हैदराबाद के उस्मानिया यूनिवर्सिटी में हो गया था । उतने दूर उसे अकेले कैसे भेजना है जीवन जी सोच रहे थे तो महेश जी ने कहा कि चिंता मत कर मेरा दोस्त राजीव वहाँ रहते हैं मेरे करीबी हैं उन्हें हम बिटिया का गार्डियन बना देंगे । राजीव भी ऑलमोस्ट उन्हीं की आयु के थे वे इंजनीयर थे और अपनी एक छोटी सी कंपनी खोल ली थी । संचिता को लेकर जीवन और महेश राजीव के घर पहुँचे । उनकी पत्नी हॉउस वाइफ थी । उनकी एक बेटी थी । संचिता को उनका घर दिखाया और पिता ने कहा कि हर महीने मैं इनके यहाँ मनीआर्डर भेजूँगा तुम यहाँ से पैसे ले लेना ।

संचिता को हॉस्टल में छोड़ कर वे दोनों वापस चले गए थे । संचिता हॉस्टल में रहती थी परंतु हर महीने राजीव के घर आकर पैसे लेकर जाती थी । राजीव भी खुद हॉस्टल जाकर उसका हाल-चाल भी पूछ लेते थे । छुट्टियों में अपने परिवार के साथ इसे भी घुमाने ले ज़ाया करते थे ।

इस आने जाने में ही ना जाने कैसे उन दोनों में प्यार हो गया था । संचिता के माता-पिता को इसकी भनक भी नहीं पड़ी । एक बार राजीव की बेटी ने देख कर माँ को बताया था तब से संचिता का उनके घर आना बंद कर दिया गया था तब राजीव ने कहा तुम अगर राजी हो तो हम शादी कर लेते हैं । संचिता तो यही चाहती थी । वह हाउसर्जन कर रही थी। दोनों ने मंदिर में जाकर शादी कर लिया था ।

राजीव ने घर लिया और संचिता को हॉस्टल से निकाल कर घर में रखा ।

उसके पिता को जब पता चला तो वे टूट गए थे। उन्होंने महेश से कहा महेश तुम्हारा दोस्त तो आस्तीन का साँप निकला देखो तो मैंने उसे मेरी बेटी का गार्डियन बनाया तो वह मेरा दामाद ही बन बैठा है । बेटी से उन्होंने रिश्ता तोड़ लिया । अपने दोनों बेटों के साथ ही जीवन बिताने लगे थे ।

दोस्तों ऐसे लोग मिल जाए तो इनसानियत से विश्वास ही उठ जाएगा ।

स्वरचित

के कामेश्वरी

साप्ताहिक विषय- आस्तीन का साँप

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