आशीर्वाद की लाज..!! – लतिका श्रीवास्तव  : Moral Stories in Hindi

दादी आज मेरा फाइनल मैच है… सर पर कैप लगाए और हाथों में क्रिकेट का बेट लिए हुए शानू ने पैर छूते हुए कहा …जोरदार वाला आशीर्वाद  दीजिएगा दादी प्लीज इस बार ट्रॉफी लेकर आना है…”

अरे बेटा दादी के आशीर्वाद से नहीं तेरे जोरदार खेलने से ही ट्रॉफी मिलेगी….सुधीर जी ने हंसते हुए कहा।

अरे मेरा शानू तो सचिन तेंदुलकर है सबके छक्के छुड़ा देगा ट्रॉफी तुझे ही मिलेगी देख लेना अंजली जी ने अपने पैरों पर दंडवत झुके शानू के  सर पर दुलार और आशीर्वाद भरा हाथ फेरते हुए गदगद स्वर में कहा तो शानू प्रसन्न हो चला गया था और वह मन ही मन ईश्वर से अपने दिए हुए आशीर्वाद की लाज रखने की प्रार्थना करने लग गईं थीं।

“…..मां ये आप लोगों के लिए है आप देख लेना पसंद है ना..!!तभी बाजार से लौटकर सीधे उनके कमरे में आते हुए बहू सुधा ने हल्की मुस्कान से कहा और उनकी प्रतिक्रिया बिना देखे ही सपाटे से तीन पॉलीथिन बेड पर रख कर चली गई…..!

मेरे लिए..!! क्या है बेटा…!!आश्चर्यचकित सुधीर जी और अंजली जी ने जल्दी से आकर बेड पर रखी तीनों पॉलीथिन में से एक पॉलीथिन खोला…. दो नई टॉवेल थी ब्लू उनके पसंदीदा रंग की रोएंदार जैसी वह चाहती थी… तत्क्षण ही उनकी आंखों के सामने अपनी फटी रंग उड़ी पुरानी टॉवेल आ गई…और व्हाइट टॉवेल सुधीर जी के लिए……दूसरी पॉलीथिन खोला …..उसमें एक आरामदायक स्लीपर थी ऐड़ी का दर्द कई दिनों से उन्हें परेशान कर रहा था पहन कर देखा ऐड़ी में बहुत आराम मिला…. जल्दी से तीसरा भी खोला उससे जो निकला वो ठगी सी रह गईं एक छोटा सा चौकोर जिप वाला बैग था और उसमें भी कुछ था .. जल्दी से ज़िप खोला तो उनके मोबाइल का नया चार्जर था कई दिनों से उन्हें अपना मोबाइल चार्ज करने में बहुत कठिनाई हो रही थी उनका ऐसा ही बैग पुराना हो गया था उसकी जिप भी खराब हो गईथी उसमे अपनी दैनिक जरूरत की सभी छोटी बड़ी चीजे व्यवस्थित तरीके से वह रखा करती थीं….!!

उनके दिल में आनंद की हिलोर घुमड़ आई.. मेरे बिना कहे सुधा कैसे समझ गई कितना ध्यान रखती है मेरी इन बेहद छोटी छोटी जरूरतों का..!! स्वभाव से ही संकोची और अपने में ही सिमटी रहने वाली अंजली जी कई दिनों से इन तीनों ही चीजो की आवश्यकता महसूस कर रही थीं.. उनकी टॉवेल स्लीपर और बैग तीनों भी बेकार हो गए थे पर वह किसी से कह नही पा रही थीं …. तीनों ही चीजे ….छोटी भले ही थीं पर उनकी दैनिक जिंदगी की अनिवार्यता थीं …. और सबसे बड़ी बात आज उनके बिना मांगे बिना कहे ही दिल की आत्मीयता में लिपटी हुई थीं ख्याल और संवेदना से तरबतर थीं..!!बहू भी बेटी हो सकती है आज प्रमाणित हो गया था बिना कहे ही इस तरह इतना ख्याल तो बेटी ही कर पाती है…..

ईश्वर सुधा को हमेशा सुखी रखे खुश रखे तेरे बच्चे भी बुढ़ापे में छोटी से छोटी बातों का बिना कहे ही ख्याल रखें… बरबस ही सुधा के लिए दिल से आशीष बरस उठी थी मन ही मन।

साथ ही सहसा उनके मस्तिष्क पटल पर बरसो पूर्व का भूला  बिसरा सा वो वाकया  कौंध गया..!

उस दिन अंजली जल्दी जल्दी शॉपिंग कर रही थी लंबी लिस्ट थी बेटी के स्कूल में वार्षिकोत्सव होना था उसका परी नृत्य था बेटे की भी फरमाइश घरेलू सामान भी ढेर सारा लेना था कई दुकानों में चक्कर लगा कर थक चुकी थी ..”भैया एक फ्रूटी देना हमेशा की तरह अपनी फेवरेट शॉप में कहती वहीं बैठ गई थी फ्रूटी पीते हुए एक डिब्बे पर नजर पड़ी और जैसे वही रुक सी गई…दादी का डिब्बा…!!. अरे ऐसा ही डिब्बा तो दादी का था जिसमे वह अपने छोटे छोटे  सामान रखती थीं उनकी जान था  वो डिब्बा और अंजली का भी!!अंजली की उत्सुकता बढ़ाने वाली चीजें जो रहती थी उसमें ….कई रंग बिरंगे धागे की रील ,छोटी छोटी भजन की पुस्तिकाएं, लेवनचूस, क्रोशिया के फूल, खट्टीमीठीगोलियां  … सुईधागे ,बटन , बोरोलीन ,कंघी ,छोटा आइना … दादी की नजर बचा कर अक्सर वह उसे खोल कर देखा करती थी।एक दिन पता नही कैसे वह बैग गायब हो गया … दादी बहुत परेशान हुई थीं बहुत ढूंढी दुखी हुईं उसने भी ढूंढा पर वह कहीं मिला ही नहीं ।

“भैया ये डिब्बा कितने का है दिखाइए जरा ” दुकानदार से कहती अंजली ने वह बैग तुरंत खरीद भी लिया और उसमे याद कर कर के दादी के वे सभी छोटे सामान जो वहां  मिल सके खरीद कर डिब्बे में भर दिए और पैक करवा के ले आई।

घर आते ही उसने दादी को सरप्राइस दिया ।

उसे अभी तक याद है डिब्बा देख कर दादी कितनी ज्यादा खुश हो गईं थीं और उसमे रखे सामान को देख कर तो खुशी के मारे रोने ही लग गईं थीं..!ईश्वर तुझे हमेशा सुखी प्रसन्न रखे तेरे बच्चे भी बुढ़ापे में तेरी छोटी छोटी बातों का ख्याल रखें तुझे कभी परेशान ना होना पड़े… मेरा दिल तृप्त हो गया आज बेटा …..मन भर आशीर्वाद देती चली गईं थीं उसे अपने से लिपटा कर….और अंजली जैसे उस दिन उनके  दिल से अबाध बरसते आशिर्वादो की अनवरत फुहारों  में तरबतर हो गई थी।

दादी के दिल से निकला वह आशीर्वाद ही आज उसकी बुढ़ापे जिंदगी में वही दिली खुशियां लेकर आया है आज बेटी जैसी बहू द्वारा लाए गए अपने सामने बिखरे इन छोटे छोटे प्यार भरे ख्याल भरे उपहारों को देख कर वह समझ गई थी।

आज के इस बुजुर्गो के प्रति असंवेदन शील जमाने में अपनो द्वारा किए ऐसे ख्याल दादी के दिली आशीर्वाद का ही प्रतिफल है।

ये छोटे छोटे प्यार और ख्याल सिंचित उपहार दादी के आशीर्वाद को साकार कर उन्हें एक बार फिर से दादी के उसी आशीर्वाद से तरबतर की अनुभूति करा रहे थे।

दादी … दादी…ये लीजिए आज की मेरी ट्रॉफी आपके नाम सब आपके जोरदार वाले आशीर्वाद से ही संभव हो पाया .. जोश और उत्साह भरा शानू का स्वर सुन कर अंजली जी अपने विगत समय से वर्तमान समय में वापिस आ गईं…..देखा तो सामने खड़ा था शानू और चमकती हुई ट्रॉफी सहित उनके पैरों पर फिर से दंडवत हो रहा था।

ईश्वर करे जिंदगी में  तुझे हमेशा ऐसी ही ट्रॉफियां मिलती रहे  ऐसे ही प्रसन्नता मिलती रहे अपने माता पिता का नाम रोशन करता रहे  बेटा….. मन भर आशीर्वाद देती अंजली जी गदगद थीं ..!! ईश्वर आशीर्वाद की यूं ही लाज रखते रहना..!!

वास्तव में आशीर्वाद तो बरबस ही दिल से निकल आता है और दिल तक पहुंच जाता है !

लतिका श्रीवास्तव

 

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