आंखियो के कोर , “दर्द की दांस्ता ”  – रीमा ठाकुर 

आरू सुनो “

 

किसी की आवाज से आरु के पैर थाम गये! 

वो आवाज जानी पहचानी लगी “

 

उसने अपना मुहं ढक लिया और जिस दिशा से आवाज आ रही थी, उधर घूम गयी! 

वो जाना पहचाना चेहरा था! 

मंयक वो धीरे से बोली “

अब तक मंयक उसके नजदीक आ गया था! 

    मयंक   “””कल ही कुवैत से आया हूँ, सुबह तुमसे मिलने आया तो पता चला तुम घर पर नही हो, 

अंकल जी ने बोला, यहाँ कोमल से मिलने आयी हो, तो मै यहाँ आ गया, ! 

अच्छा हुआ तुम रास्ते में मिल गयी! 

नही तो तुम्हारे चक्कर मे, कोमल को भी झेलना पडता! 

 

तुम ठीक हो”

 

हा मे गर्दन हिलायी आरू ने “

 

मंयक   “””यार तुम्हारे लिए बहुत दु;ख हुआ! 

 

चारू, ,,, क्यूँ दु;ख हुआ, तुम जताना क्या   चाहते हो की मै कमजोर हूँ! ये हमदर्दी किसलिए, लगभग चीखते हुए बोली, आरू”””

मंयक,,, मेरा वो मतलब नही है, आरू, सॉरी “

आरू की आवाज से, काफी लोग इकट्ठा होने लगे “

 

क्या हुआ भाई, क्यूँ लडकी को परेशान कर रहे हो”

भीड से एक, युवक बोला “

 

मंयक “”” मै “” नही मै तो आरू से मिलने आया ” भला मै उसे क्यूँ परेशान करूंगा ” आरू मुझे माफ कर दो”

मंयक  हाथ जोड़कर बोला “

 

भीड में आरु को घिरा देखकर, सुभाष अंकल  दहशत में आ गये! 

जो की मंयक के साथ ही घर से निकले थे! 

और सब्जी वाले की दुकान पर भाव ताव के लिए रूक गये थे! 

जो की कुछ कदम की दूरी पर थे! 

आरू की चीख उनके कान में भी पडी थी! 


वो दौडकर पास आ गये, भीड को चीरते हुऐ बेटी के सामने पहुँच गये! 

आरू गुस्से से कांप रही थी! 

और मंयक हाथ जोडे आरू के सामने बैठा था! 

क् क्या  हुआ बेटा, मंयक के पास पहुंच कर सुभाष जी बोले, 

अंकल पता नही क्यूँ, आरू मुझपर गुस्सा हो गयी! 

 

सुभाष जी भीड के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गये! 

भाईयों, बहनों ये हमारे घर का मामला है, हम मिलकर सुलझा लेगें!  मै ” आरू का पिता, आरू को गले लगाते हुए ,बोले सुभाष जी “””

धीरे धीरे भीड छट गयी! 

मंयक उठो, आरू तुम भी घर चलो “

आरू बिना कुछ बोले घर की ओर बढ गयी! 

 

बेटा उस घटना के बाद से आरू न जी पा रही है न मर पा रही है! 

अंकल उससे मै इसलिए मिलने आया था ताकि उसका दर्द बांट सकूँ, उसे इंसाफ दिला सकूँ “

आरू ने भले मुझे ठुकरा दिया पर मै उससे आज भी उतना ही प्रेम करता हूँ! 

मै उसके लिए ही कुवैत से आया हूँ! उसके साथ कभी नही छोडूंगा “”

बेटा,,,,,,सुभाष जी रो पडे “

सुभाष जी के आंसू न देख पाया मंयक “

नैपकिन से सुभाष जी के आंखों के कोर में भरे सैलाब को रोकने की  कोशिश करने लगा’

सुभाष जी फूटफूट कर रो पड़े “

मंयक  “””” अंकल जी उठो घर चलो “

दोनों ने घर में कदम रखा ही था की कुछ आवाजें का में आ पडी , 

सुभाष जी की बहू कनक, आरू पर गुस्सा हो रही थी! 

कनक,,,,,, देखो ननद रानी, यदि आपको सहन नही होती तो बाहर जाती क्यूँ हो”

आरू,  तो क्या डरकर बैठ जाऐ “

कनक,,, हा तो कौन सा आपके घर से न निकलने से पहाड़ टूट जाऐगा “

कुछ समय पहले लफंगों की लाइन लगी थी! 

अब गुंडो की, कौन कब तक सुरक्षित रहेगा भगवान जाने! 

 

बहू,,,,, खांसते हुए सुभाष जी ने घर में प्रवेश किया! 

हा तो बाबू जी हम कौन सा, गलत बोल रहे है! 

 

पहली बार ससुर के सामने मुहं खोला था कनक ने “

 


सुभाष जी, ने कुछ न बोला “

बहू सही तो कह रही थी! 

वो आरू का हाथ पकड अदंर चले गए! 

 

और मंयक दबे पांव वापस आ गया! 

सच ही तो कहते हैं, लडकियों को कितनी बाते सुननी होती हैं! 

फिर , आरू के साथ  जो हुआ है, 

तिल तिल मर रही है, बेचारी! 

मंयक घर पहुँच चुका था! बिना किसी की ओर देखे, सीधे कमरे मे चला गया! 

माँ पीछे से आवाज देती रही! 

 

वो पंलग पर दीवार  से सिर टीकाकर बैठ गया! 

साल भर पहले की घटनाएं उसके मस्तिष्क में चलचित्र की तरह उभरने लगी “

 

मोहल्ले में सबसे सुंदर आरू थी! 

वो आरू से एकतरफा प्यार करने लगा था! 

पर आरू शरत से प्यार करती थी “

उसे ये बात पता थी! 

इसलिए वो बीच में कभी नही आया! 

एक बार उसने मौका देखकर आरू को बोलना चाहा पर बोल न पाया! 

आरू को बहुत सी बार शरत के साथ आते जाते देखता था! 

 

उसी के घर के पास रहता था! दीपांशु जिसे पंसद न था की आरू शरत के साथ घूमे फिरे ”  वो  दो तीन बार आरू को छेड चुका था! 

दीपांशु था तो, छोटा मोटा गुडां” और फिर विधायक का साला भी था! उसी रिश्ते की आड़ में दादागिरी करता था! 

विधायक का साला होने की वजह से कोई उसके मुहं नही लगता था! 

उस शाम शरत के साथ आरू को देखकर आगबबूला हो गया, दीपांशु “

दीपांशु,,,,,,ये आरू  ये शरत में ऐसा क्या है, चल मेरे साथ जन्नत दिखाऊंगा,  वो अल्कोहल के नशे में था! 

मोहल्ले का लडका था, इसलिए आरू डरी नही, वो उसके सामने आकर खडी हो गयी! 

 

आरू,,, अब बोल क्या है, विधायक का साला है तो क्या जीने नही देगा “

दीपांशु,,,,,, ये आरू, देख “

हाथ पकड़ लिया दीपांशु ने “

एक झन्नाटेदार थप्पड़ की आवाज गूंज गयी फिजां मे , 

फिर कुछ हाथापाई के बाद, थाने तक ममला पहुँच गया! 

बहुत बदनामी भी हुई, ! 

दीपांशु को विधायक जी की डांट भी पडी, और आरू के थप्पड़ की गूंज उसके कानों में दिन रात गूंजती रही! 

 

फिर दीपांशु के मन में बदले की भावना ने जन्म ले लिया “

 

इस घटना के बाद, मंयक कुवैत चला आया! 

 

अचानक शरत ने रिश्ता तोड लिया,  ये खबर उसे फोन पर कोमल से मिली थी! 

 

फिर अचानक से काफी दिनों बाद ये खबर,  उसका हृदय दृवित हो गया था! 

वो खुद को न रोक सका और भागा भागा अपने शहर आया था! 

 


उसकी आँखे सजल हो गयी! 

 

बेटा अधेंरे में क्यूँ बैठा है, अम्मा की आवाज थी! 

क्या हुआ तुझे “

स्वीच ऑन करते हुए अम्मा बोली, 

मै पीछे से आवाज दे रही थी, तुने सुना नही”

 

भक से बल्ब जल उठे, पूरे कमरे में रोशनी फैल गयी! 

मंयक अपने आंसू छिपा न सका, 

अम्मा दोडकर उसके पास आ गयी! 

लल्ला क्या हुआ! 

मंयक कुछ न बोला “

बता तो ” अम्मा  ने उसे गले लगा लिया “

अब बता “

 

अम्मा आरू, बहुत दुखी है! 

हा बेटा उसके साथ बहुत बुरा किया हरामियों ने “

पर भगवान को शायद यही मंजूर, बहुत नेक बच्ची थी! 

माँ मै उससे प्यार करता हूँ! 

मंयक तू ये क्या कह रहा है,    अम्मा मै जी न पांऊगा’

 

बेटा तूने उसका चेहरा देखा ” अम्मा बोली “

नहीं, मैने उसके चेहरे से नही उससे प्यार किया है! 

 

निभा पाऐगा जीवन भर,   अम्मा गंभीरता से बोली “

हां,, मंयक दृढता से बोला, 

फिर ठीक है, मै कल ही सुभाष भाई सा से बात करती हूँ! 

 

अगली सुबह  अम्मा आरू के घर पहुँच गयी! 

अपनी बात सुभाष जी के सामने रखी, 

सुभाष जी,,,,, बहन जी मुझे लगता है, मंयक एक बार उसे देख ले “

 

अम्मा,,,, इसकी जरूरत तो नहीं है! पर आप शायद सही कह रहें है! 

 

कमरे मे हल्की रोशनी फैली थी! 


आरू की पीठ दरवाजे की ओर थी! 

आरू इतनी कम  रोशनी क्यूँ ” मंयक ने आरू के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा “”””

आरू,,,,,,मुझे अब उजाले से डर लगता है! 

क्योंकि जो चेहरा उजाले में निखरता था, अब अंधेरे से भी मुहं छुपाता है! 

सिसक उठी आरू “

मंयक के हाथ उसके गाल तक पहुँच गये! 

उसका खुरदुरा चेहरा मंयक की ऊंगलियों को स्पर्श कर रहा था! 

बस अब तुम्हारी लडाई मेरी आरू “

पर कुछ नही, इंसाफ तो होगा, कल कोर्ट मैरिज “

एक हप्ते बाद हम दोनों हनीमून पर कुवैत जाऐगें, बस तुम अब चिंता मत करो, सब मुझपर छोड़ दो, 

तुम्हारे लिए एक सप्राइज है, जो मै तुम्है दूंगा ” 

बस तुम हा कर दो, 

मंयक उसके खुरदुरे गालो को चूमते हुए बोला “

फिर एक महिने बाद, 

जब  आरू ने अपने शहर में कदम रखा तो सब हैरत में थे! 

आरू के चेहरे पर अब कोई निशान न था! 

वो  सबकी आखों में आंख डालकर चल रही थी! 

मंयक ने उसकी आंखो में देखा, 

आंखियो के कोर में अब आंसू नहीं जीवन के सपने थे! 

अभी उसे, तेजाब डालने वाले, उन अपराधियों को इंसाफ के कटघरे में खडा करना था! 

आरू ने  मंयक का हाथ पकड़ लिया, और पग फेरे की रस्म मे घर के अंदर प्रवेश कर गयी! 

जहाँ कनक आरती की थाल लेकर दरवाजे पर खडी मुस्कुरा रही थी! 

 

समाप्त 

रीमा महेंद्र ठाकुर ,कृष्णा चंद्र”

राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत”

 

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