एक प्रतिशत सच – तरन्नुम तन्हा

सभी कैंडीडेट्स के इंटरव्यू देकर चले जाने के बाद रिसेप्शनिस्ट ने मेरा नाम पुकारा, ‘मिस तरन्नुम’, तो मैं उठ खड़ी हुई। साड़ी की प्लेट्स ठीक कीं, अपनी फाइल सम्भाली और इंटरव्यू कक्ष का द्वार खोला।

“मे आई कम इन सर?” मैंने अंदर नज़र डाली तो तीन-चार जैंटलमैन अंदर बैठे हुए दिखे।

“कम इन,” उनमें से एक ने कहा तो मैं मेज तक गई और वहाँ पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।

“कॉन्फिडेंट”, उनमे से एक जैंटलमैन दूसरे की ओर देख कर ओर मुस्कुराए तो उनके सिर हिलाने पर तीसरे भी सर मुस्कुराए; एक एकदम तटस्थ बैठे रहे।

“मिस तरन्नुम, आपकी फ्रंट-ऑफिस प्रोफाइल हमने देखी, आपने बढ़िया स्कूल्स में काम किया है। आप स्मार्ट हैं और आपके बेहतरीन कम्यूनिकेशन स्किल्स मैंने ‘ऑनलाइन इंटरव्यू’ में देख लिए हैं। हम आपकी हर बात से सैटिस्फाइड हैं, बस एक सवाल है”।

“जी कहिए,” मैं कुछ सशंकित हो उठी क्योंकि कुछ अवांछित सवालों से पिछले कुछ इंटरव्यूज़ में दो-चार हो चुकी थी।

“आपने अपना पिछला स्कूल छोड़ने का कारण दिया है, फॉर बैटरमैंट,यानि बेहतरी के लिए आप स्कूल बदल रही हैं”।

“जी, सही लिखा है मैंने,” मेरे दिमाग में फौरन मेरी लिखी लाइन कौंध गई।

“लेकिन, जिस स्कूल को छोड़ कर आप हमारे स्कूल में आना चाह रही हैं, वह हमसे बड़ा और बेहतर स्कूल है। फिर आपका यह कारण देना जस्टिफाइड नहीं है,” उन्होंने एक बेहद तार्किक और सशक्त बिंदु निकाला था सही कारण तक पहुँचने के लिए।


उनकी बात सुन कर मैं चुप हो गई। इन्हें सच बताती कि उस स्कूल के मैनेजर के लड़के को नीच हरकत करने के कारण मैंने थप्पड़ मारा था, और पुलिस कम्पलेंट की थी? क्या इस पुरुष-प्रधान समाज में एक स्त्री सम्मानपूर्वक जीने की आशा करना ही छोड़े दे?

मुझे यूँ गुमसुम चुप देख कर एक अन्य जैंटलमैन बोले, “आप बेझिझक अपनी बात कहें, आपको जॉब तो 99% मिल गई समझें। बस हम कुछ जाँच करना चाहते हैं”।

“सर मैंने जो स्कूल को छोड़ने का कारण फॉर बैटरमैंट लिखा है, वह बिल्कुल सत्य है, क्योंकि बेहतरी का पैमाना सिर्फ पैसा ही नहीं है। स्कूल का बेहतर और सुरक्षित वातावरण भी होता है। उस स्कूल में एक प्रभावशाली शख्स ने मेरे साथ गलत हरकत की थी, जिसकी वज़ह से मैंने उसे थप्पड़ मारा था। फिर मुझे कॉल करके उसने परेशान करने की कोशिश की, तो मैंने पुलिस कम्पलेंट भी की थी। कोई स्कूल ये जानने के बाद मुझे जॉब नहीं देगा, मैं यह जानते हुए भी यह सच बता रही हूँ,” मैं जाने के लिए कुर्सी से उठ खड़ी हुई।

“आप खड़ी क्यों हो गईं तरन्नुम जी? बैठिए, आपको हम फ्रंट-डैस्क की बेहतरीन और जिम्मेदारी वाली पोस्ट देंगे, आप लेंगी?”

“जी!” मैं चौंक कर धम्म से कुर्सी पर बैठ गई।

“जी। हम आपको पीए टू प्रिंसीपल की पोस्ट देंगे, और सैलरी जितनी आपने माँगी है, उससे पाँच हजार रुपये ज्यादा, मंज़ूर है?”

हैरानी और खुशी के मारे जब मेरी आवाज़ ही न निकली तो मैंने सिर हिला कर और हाथ उठा कर उनका प्रस्ताव स्वीकार करना जताया तो तीनों जैंटलमैन मुस्कुराने लगे।

“आपका अपॉएंटमैंट आपके सच बोलने के कारण ही हुआ है। आपके पुराने स्कूल के मैनेजर ने थोड़ी देर पहले ही फोन पर बताया था कि आपने उनके स्कूल के खिलाफ पुलिस कम्पलेंट की हुई है और आपको अपने स्कूल में नौकरी देना सही नहीं होगा। लेकिन, हमें अपने स्कूल के लिए आप जैसे सच्चे और ईमानदार कर्मचारी ही चाहिएं, जो मिल-जुल कर एक ईमानदारी भरा वातावरण बनाएं।

“लेकिन आपने तो कहा था कि जॉब 99% मिल गई समझूँ”।

“बेशक, लेकिन अगर आप 99% के आश्वासन में 1% सच न बतातीं, तो हम आपको जॉब ऑफर नहीं करते,” अब तक तटस्थ बैठे रहने वाले जैंटलमैन पहली बार बोले।

सच का इतना बड़ा ईनाम मुझे जीवन में पहली बार मिल रहा था।

—TT (तरन्नुम तन्हा)

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