*बुलाती हैं जड़ें* – सरला मेहता

राणा विजयबहादुर यूँ तो इंग्लैंड से पढ़लिख कर साहब बन कर आए थे। किंतु सुकून उन्हें अपने गाँव में जाकर मिला। और पुश्तैनी ज़मीन पर खेती को प्राथमिकता दी। 

बेटा रणवीर भी कई बार कह चुका है, ” दाता हुजूर ! आप भी शहर चलो और देखो आपके पोते पोती कितना आगे बढ़ चुके हैं। क्या धरा है आपके इन खेतों में ? “

” राणा जी दहाड़े, ” चुप रहो। मेरी जान बसती है यहाँ। “

पोता शमशेर का वैसे भी पढ़ाई में मन नहीं लगता था। पापा के डर के मारे कुछ बोल नहीं पाता। इस बार तो उसने सारी हदें पार कर दी। अपने मन की बात पापा से कह दी, ” मैं जाऊँगा दादाजी के पास गाँव। और उनके साथ खेती करूँगा। “

रणवीर सोचता है कि वैसे भी इसका पढ़ाई में मन कहाँ लगता है ? चलो कुछ तो करेगा वहाँ जाकर। वरना लौटकर बुद्धू को घर तो आना ही है। 

और चल देता है शमशेर अपनी जड़ों की ओर। राणा जी अपने पोते को सारे खेत खलिहान दिखाने ले जाते हैं। लेकिन यह क्या जुते हुए खेत खाली पड़े हैं। सब ओर मरघटी शांति छाई है। इक्का दुक्का परेशान से किसान खेतों की मेड़ ठीक कर रहे हैं या झाड़ झंखाड़ उखाड़ रहे हैं। 

बुद्धू सा शमशेर पूछ बैठता है, ” दादा जी ! ये लोग इतने उदास क्यों दिख रहे हैं। “

राणा जी समझाते हैं, ” बेटा ! देख नहीं रहे हो, धरती माँ के सीने पर कितनी दरारें पड़ी है। इस बार वर्षा रानी तो मानो रूठ ही गई है। किसानों ने अपने खेत तैयार कर लिए हैं। कब मेघा बरसे और ये बीज डाले। “

शमशेर को कुछ याद आता है, ” हाँ दादा जी ! मैंने कहीं पढ़ा है An Indian agriculture is a gamble of rain. भारतीय कृषि वर्षा का जुआ है। “

” हाँ बेटा ! लोग बारिश लाने के लिए पूजा-पाठ, टोटके आदि तो खूब करते हैं। लेकिन जंगल काटकर ये अपनी ही रोजी रोटी को कुल्हाड़ी मारकर बरबाद रहे हैं। “

शमशेर कहता है, ” मैं भी यही देख रहा हूँ दादा जी। दूर दूर तक पेड़ों का नामोनिशान नहीं है। फ़िर बारिश कहाँ से आएगी ?


यहाँ कोई पोखर ताल भी नहीं दिख रहे हैं। गाँव की एकमात्र नदी को भी कूड़ेदान बना कर रख दिया है। “

दादा पोता परस्पर मशविरा कर बेकार बैठे किसानों को मजदूरी पर रखते हैं। ताबड़तोड़ गाँव के सब कुओं से गाद निकलवाते हैं। मोटर चला कर कुछ खेतों को गीला कर बीज बोने लायक बना देते हैं। 

गाँव वाले भी अपनी गलतियों पर पछताते हैं। सारे जुट जाते हैं नदी तालाब की सफ़ाई में। सब यह भी प्रण करते हैं कि अब और बोरिंग कर धरती को घायल नहीं करेंगे। हाँ, बरसात के पहले पानी को रोकने का इन्तजाम अवश्य करेंगे।

         शमशेर के नेतृत्व में गाँव वाले दम लगा के होइशा करते हुए जी जान से जुट जाते हैं। बस फ़िर क्या था। जो भी थोड़ी बहुत बारिश हुई, वह पानी व्यर्थ ना बहकर संग्रहित हो जाता है। राणा जी अपने भंडारण से गाँव वालों के लिए अनाज की पूर्ति दिल खोलकर करते हैं।

समय बीतते गाँव में अच्छी वर्षा होने लगती है। फ़िर भी अन्य दिनों में सिंचाई की सहायता से फसलों के लिए पौधे तैयार कर लेते हैं।

इंद्रदेव की कृपा हो या ना ही। कुँओं के पानी की सिंचाई से हरे भरे पौधे लहलहा रहे हैं। ग्रामीण बालाएँ घुटनों तक अपने रंग बिरंगे घाघरे लुगड़े खोंसे पौधे जमीन से निकालकर रोप रही हैं। वे अपने में ही मगन गा रही हैं, वर्ड्सवर्थ की सोलिटरी रीपर सी। शमशेर गीत की भाषा समझ नहीं पाता है। किंतु कानों में रस घोलते स्वर उसे अपना माउथ आर्गन बजाने को मजबूर कर देते हैं।

    राणा जी की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं। पोता शमशेर शर्माते सहमते हुए पूछता है, ” दादाजी ! आपकी होने वाली पोताबहू कृषि वैज्ञानिक है। लेकिन दलित वर्ग की होने से पापा नाराज़ हैं। आप कहे तो क्यों न उसे ब्याहकर मैं यहॉं ले आऊँ ? “

” बेटा ! नेकी और पूछ पूछ।  स्वागत है मेरी बहू का। ये महिलाएँ देखो, कोई जातिपाँति में भेदभाव नहीं करती हैं। फ़िर इन्हीं का उगाया अनाज ही तो मैं तुम्हारे लिए शहर भेजता हूँ। “

और दादा पोते के कानों में शहनाइयाँ गूँजने लगी।

 

सरला मेहता

इंदौर म प्र

स्वरचित

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