आदमी – बेला पुनिवाला 

   तो दोस्तों, आज तक सब औरत के लिए ही बातें हो रही है, उनके मान, सम्मान, उनका हक़ और वह क्या – क्या सेहेन करती है, उस के बारे में बहोत कुछ सुना होगा आप लोगो ने। अच्छा चलो माना की ये बात सही, औरत प्रेम की पुजारन और समर्पण की देवी और भी बहोत कुछ जो किसी भी लेखक या कवि के शब्दो में भी ना समां पाए।

        लेकिन  दोस्तों, क्या आप लोगो ने कभी आदमी के बारे में कभी कुछ सोचा है ? वो क्या सोचते है ? वो क्या महसूस करते है ? उनको भी कितनी कठिनाइयों का  सामना करना पड़ता है, उन सब ज़िम्मेदार आदमी के लिए भी ये सब इतना आसान नहीं जितना हम समझते है,

       जैसे की…  कड़कड़ती  ठण्ड हो, तेज़ बारिश हो, या सूरज की पिगला देनेवाली धुप हो, उनको अपने काम पे जाना है तो जाना ही है,  उन पर पुरे घर को चलाने की ज़िम्मेदारी जो होती  है, वह अपनी बात औरत की तरह किसी को बता भी नहीं सकते, और अपनी तकलीफ किसी के साथ बाटते भी नहीं, और नाही  रोकर अपना दर्द कुछ कम कर करते है, वो अंदर ही अंदर घुटते रहते है।

         औरत की तरह शायद वह कभी भी अपने दोस्तों से खुल के बातें नहीं करते, और ना ही कभी पत्नी को सच सच बता पाते, पता ही नहीं चलता की उनके अंतर्मन में क्या चल  रहा होता है ? आज कल तो हर घर में जैसे kitty party का फैशन औरतो के लिए हो गया है, क्यूंँकि वो बेचारी पूरा दिन घर का काम करके थक जाती है, वो दूसरे घर से आई है, कितना  adjust करती है, और भी बहोत से बहाने मिल जाते है उनको बेचारी होने के, इसलिए  mind fresh करने के लिए जाती है, माना की ये गलत भी नहीं है, अपने लिए थोड़ा वक़्त निकालना भी ज़रूरी है,  मगर क्या कभी किसी आदमी ने सोचा है की चलो हम सब दोस्त लोग भी चलके पार्टी मनाते है, बहोत कम..ना…   




       इतनी मेह्गाई में वह घर कैसे चलाते है, ये तो वह ही जाने, महीने का हिसाब करने जाए तो हर घर में आमदनी कम खर्चा ज़्यादा ही होगा, फिर भी पता नहीं वह कैसे सब  manage कर ही लेते है, बाबूजी के घुटने का ऑपरेशन हो या माँ की डायबिटीस की गोलियांँ हो, या बीवी के कमर दर्द का खर्चा हो, या बच्चो की पढाई की फीस हो, या उनके लेपटॉप का खर्चा, या उनकी दोस्तों के साथ पार्टी का खर्चा, ऊपर से महीने का मेडिक्लेम हो, इन्शुरन्स हो, पॉलिसी हो, लाइट बिल, गैस बिल, टी,वी  केबल का रिचार्ज, हर एक के स्कूटर और कार में पेट्रोल का खर्चा, घूमने जाना, समाज में शादी – बयाह में जाने का खर्चा, होली, दिवाली, गणपति, नवरात्री, हर त्यौहार में शामिल होने का खर्चा,  ज़रा सोचा है,आप में से किसी ने, की  कैसे निकलता है ये सारा खर्चा ? बाकि बचा तो हर  ६ महीने में टी.वि., फ्रीज, a. c, service  का खर्चा अलग है।

          और शायद कभी कभी रात को ऑफिस से आने के बाद पत्नी आदमी से ये उम्मीद लगाए, की आदमी  उनकी खूबसूरती और  खाने की तारीफ करे या तो सोचे की, चलो कभी तो हम से थोड़ा इज़हारे इश्क़ भी कर लिया करो।  या फिर घर में आते ही, माँ और  पत्नी के बीच का झगड़ा, या कभी पत्नी की बच्चो को लेकर  फरियाद सुनना, या फिर बच्चो की फरमाइश, आदमी सोफे पे बैठ के पंखे की और देखते हुए ये सोचता होगा की आज तो मेरा मन करता है, की मैंने ये जो टाई पहनी है, उसी से पंखे पे लटक जाऊँ, मगर समझदार आदमी ऐसा  कुछ नहीं करता, उल्टा वो शांति से  सब की परेशानी सुनकर सब के प्रोब्लेम्स solve  करता है।

        हमें छाँव देने के लिए आदमी खुद कड़कड़ती धुप में चलते है, हमें रात को चैन की नींद मिले इसलिए वे खुद नाईट ड्यूटी भी कर लेते है।

         औरत के साथ – साथ आदमी भी एक साथ कितने सारे किरदार अपनी ज़िंदगी में निभाते है, जैसे की… एक बेटा बनकर अपने माता – पिता की देखरेख करना, एक भाई बनकर अपने भाई – बहन की रक्षा करना, एक पति और प्रेमी बनकर अपनी पत्नी को सम्मान और प्यार देना, एक पिता बनकर अपने बच्चो को संस्कार सीखाना, जो उनके पिता ने उनको सिखाया था,और उनको पढ़ाना, कभी कभी बच्चो के साथ बच्चा बनकर उनके साथ खेलना और जब बच्चे बड़े हो जाऐ, तब उनके साथ दोस्ती करना, चाहे कैसी भी परेशानी हो एक दोस्त बनकर अपने दोस्त की मदद करने के लिए हर पल तैयार रहना, एक पिता बनके अपने दिल पे पथ्थर ऱखके अपनी लाड़ली बिटियांँ  का कन्यादान करना, जिस बेटी को आज तक उन्होंने अपनी पलकों पे सजाऐ रखा था, ऑफिस में वक़्त ना मिलने पर भी अपने सहकर्मचारी की मदद करना, और भी बहोत कुछ….




            ज़िंदगी में इतने सारे किरदार निभाते – निभाते शायद आदमी भूल ही जाते होंगे की उनको ज़िंदगी से क्या चाहिए ? समजदार आदमी अपनी ओर से हर तरह की कोशिश करते है, घर में सब को खुश रखने की, सब की ज़रूरते पूरी करने की, और सब का ख्याल रखने की, और शायद वो ये सब  वह निःस्वार्थ भाव से करते है, शायद उनको इन सब के बदले में कुछ नहीं चाहिए। मेरे तजुर्बे के मुताबिक तो बस, उनको भी  मान – सम्म्मान दो, और प्यार से उनको कभी – कभी उनके द्वारा दी गई सुख – सुविधाओं के लिए  “THANK YOU”  कह दो, उतना भी  उनके लिए काफी होगा।

        हाँ लेकिन औरत और आदमी  में इतना फर्क रहता है, की आदमी को औरत की तरह अपना घर छोड़ दूसरे के घर जाकर उनके साथ उनके नियमो और सिद्धांतो के साथ रहकर adjust नहीं करना पड़ता। 

          दोस्तों, आप में से कोई ये भी सोचेंगे, की आज कल तो औरत घर, बच्चे और ऑफिस सब एक साथ संभालती है, और आज कल के मेह्गाई के ज़माने में दोनों का एक साथ काम करना भी ज़रूरी हो गया है, इस मुताबिक औरत भी तारीफ़ की हक़दार है, मुझे गर्व है ऐसी हर औरत पे जो ये सब काम एक  साथ कर पाती है, मगर उन में से कितनेा के घरो में उनके job  करने की वजह से प्रोब्लेम्स create  हुए होंगे, ये वो कभी नहीं बताएगी। 

        जहाँ तक मेरा कहना है, वहाँ तक समझदार आदमी, औरत के मान और सम्मान की जितनी कदर करता है, उतनी ही कदर औरत को भी उनके मान और सम्मान की करनी चाहिए, ये बात अलग है की आदमी ये बातें जताते नहीं।

        आदमी  कितनी सारी  ज़िम्मेदारियों के बिच दबा हुआ है, मगर वह कभी उफ़फ़ तक नहीं करता, और नाही कभी अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछे हटता है, क्या उसका भी मन नहीं करता होगा कभी, की चलो अब सब ज़िम्मेदारियों से छूट कर कही दूर चला जाऊँ, जहाँ कोई हिसाब ना हो, ना ही किसी को हिसाब देना है, ना ही किसी से हिसाब लेना हो, क्या उनके नसीब में एक ऐसी शाम नहीं की जहाँ कभी वह चैन से बैठ के अपने बारे में सोच सके।

               हांँ तो दोस्तों, शायद मेरी ये बात किसी औरत को पसंद  ना भी आए, तो  औरतों से भी  मेरा ये कहना है की, मेरे कहने का मतलब ये नहीं की आदमी  के मुकाबले औरत कुछ नहीं करती, मगर साफ़ साफ कहु तो, औरत की तरह आदमी की भी बहोत सारी ज़िम्मेदारियाँ है, जिसे वह बखूबी निभाता चला आया है, और निभाता रहेगा, समझदार आदमी और औरत गाड़ी के दो पहियों की तरह है, जिसमे से अगर एक पहियाँ डगमगा जाएगा तो दूसरा पहिया भी डगमगा ही जाएगा। ज़िंदगी की गाड़ी आगे बढ़ ही नहीं पाऐगी। इसलिए में सिर्फ ये कहना चाहती हूँ, की औरत और आदमी दोनों को समान रूप से ही देखा जाना चाहिए। नाही औरत लाचार है, नाहीं मर्द, मेरे नज़रिये से  देखो तो दोनों ही अपनी अपनी जगह सही है। औरत और आदमी दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना ही चाहिए।

बेला पुनिवाला 

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