पीहर की खुशबु – नीलिमा सिंघल 

पीहर ये नाम आते ही हर लड़की का मन तड़पने लगता है पर निशा को कभी भी पीहर से लगाव नहीं रहा उसने पहले आए रिश्ते पर ही हाँ कर दी क्यूंकि वो इस पीहर रूपी जेल से छुटकारा चाहती थी,

चौंक गए ना आप सब,

निशा के लिए उसका पीहर बाबुल का घर कभी रहा ही नहीं था उसके लिए वो सिर्फ एक जेल थी जहाँ अपने मन की छोटी-छोटी बाते भी कहने से डर लगता था ,जब स्कूल मे थी तब भी और जब कॉलेज मे आयी तब भी उसके साथ की सभी सखियाँ अपने पापा के प्यार के बारे मे बताती थी अपनी माँ का लाड़ बताती थी तब निशा मन मसोस कर रह जाती थी क्यूंकि कोई दिन ऐसा नहीं जाता था जब उसको डांट ना पड़ती हो यहां तक कि उसके पापा तक उस पर हाथ उठा देते थे कॉलेज तक मे अपने मन के विषय नहीं ले पायी थी निशा ,साइंस स्ट्रीम से पढ़ना चाहती थी पर पापा ने मना कर दिया था, उसको उसके माँ पापा कभी समझ नहीं आए थी इसीलिए वो हमेशा गुमसुम खोयी खोयी रहती थी,

रवि का रिश्ता आया लड़का स्मार्ट था परिवार भी ठीक था बस लड़के के पापा नहीं थे,

उसका विवाह धूमधाम से हो गया और रवि की दुल्हन बनकर उसके घर आ गयी निशा, उसके अरमान थे सपने थे निशा को लगा अब वो जी लेगी अपनी मनपसंद जिंदगी और रवि और उसके परिवार वाले सभी खुले विचारों के थे।


उसकी किस्मत से वो सब निशा के लिए बहुत सही  निकले, 3 महीने पँख लगाकर उड़ गए निशा खुश थी सबको खुश रखने की कोशिश भी करती उसकी सास उसको बेटी से भी ज्यादा प्यार देती थी अक्सर उसका पक्ष लेते हुए अपने बेटे को ही डांट देती थी थी, निशा बहुत खुश थी,

निशा की नन्द को अपनी माँ का बदलता व्यवहार समझ नहीं आया वो अब आयदिन फोन करके अपनी माँ को ना जाने क्या क्या समझाने लगी उसकी सास का व्यवहार अब निशा के लिए बदलने लगा, अब वो निशा को सभी के सामने नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ती, निशा को ये परिवर्तन समझ नहीं आ रहा था, उसका दम घुटने लगा था रवि को कोई फर्क नहीं पड़ता उसके कुछ कहने से,

सभी इतना कैसे बदल सकते हैं निशा सोचती रहती,  साल दर साल बीत रहे थे। ।

निशा के पीहर से फोन आया जो उसकी माँ का था इस बार निशा ने बिना किसी काम का बहाना बनाय हुए माँ से बात की उसकी आवाज़ रुंध गयी बोलते बोलते, सामने से माँ ने कहा घर आजा बेटा थोड़े दिन के लिए बहुत याद आ रही है तेरी,

निशा का मन आज 7 सालों बाद पीहर जाने को व्याकुल हो उठा, उसको पीहर याद आने लगा अपना बचपन याद आने लगा माँ पापा कठोर थे पर ना खाने को रोकते ना ही खेलने को,

मायके की खुशबु पीहर की बाहों मे जैसे समा जाना चाहती थी आज निशा  ।।

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