रिश्तों की डोर – संगीता त्रिपाठी   : Moral stories in hindi

  बरसों बाद आज रिश्तेदारी की एक शादी में नीता की मुलाकात देवरानी विभा से हुई..। नीता ने विभा को देख दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया पर विभा दौड़ कर आई और नीता के पैर छू बोली “कैसी हो दीदी “

  लोग नीता और विभा को ही देख रहे थे, ये देख नीता ने कहा “ठीक हूँ,तुम लोग कैसे हो.., बच्चे तो बड़े हो गये होंगे..”

तभी एक लंबा सा लड़का आ कर नीता को प्रणाम किया “बड़ी माँ आप मुझे पहचान रही है, मै नकुल…””

      “ओह… अच्छा, तुम तो बड़े हो गये हो “नीता ने कहा।

       “हाँ बड़ी माँ, प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा हूँ “कह कर नकुल किनारे बैठ गया..।थोड़ी देर में नकुल नीता की खाने की प्लेट लगा कर ले आया ., देख नीता आश्चर्य में पड़ गई, पूछ उठी “नकुल तुम्हे कैसे पता मुझे चाइनीज़ खाना पसंद है “

     “बड़े पापा ने बताया था.., बड़ी माँ बड़े पापा ने हम सब के लिये बहुत किया…”कहते नकुल चुप हो गया। नीता को कुछ समझ में नहीं आया। खाना खा कर, नीता वर -वधु को शुभकामनायें दें घर वापस आ गई…।

     नीता अमीर परिवार की घमंडी बेटी थी,भुवन का परिवार मध्ययवर्गीय था, जिसमें दो भाई और तीन बहन थी… पिता प्राइवेट कंपनी में काम करते थे, आय बस इतनी थी की घर के खर्चे किसी तरह पूरे हो जाते थे..। दो बड़ी बहन के बाद तीसरे नम्बर पर भुवन था, पिता का परिश्रम और घर की आर्थिक स्थिति को देख कर भुवन अपनी पढ़ाई पर बहुत ध्यान देने लगा। परिणाम स्वरुप हर क्लास में अव्वल आता था।

        भुवन का इंजीनियरिंग में सिलेक्शन हो गया था, वो अपने छोटे भाई, तरुण को भी पढ़ाई के लिये प्रोत्साहित करता था पर सबसे छोटा होने से तरुण सबके अतिशय लाड़ -प्यार में बिगड़ गया..। पिता बड़ी मुश्किल से दो बड़ी बहन की शादी कर पाये, उनकी सेवानिवृत का समय आ गया…।तीसरी छोटी बहन की शादी और घर का दायित्व भुवन पर आ गया ..।

      भुवन की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, एम. बी. ए. करने की चाह को, घर की जिम्मेदारी देख उसे दबाना पड़ा..। पढ़ाई खत्म होते ही उसे एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई .।अब भुवन के लिये रिश्ते आने लगे… भुवन की काबिलियत देख शहर के रईस राम लाल जी अपनी नकचढ़ी बेटी नीता का रिश्ता ले भुवन के घर गये।

नीता बहुत बदमिजाज और घमंडी थी, अपने आगे वो किसी को कुछ न समझती,इस वजह से उसकी कोई सहेली न थी,रामलाल जी बेटी को बहुत समझाते पर नीता अपनी आदतों से बाज न आती..।उसको लेकर रामलाल जी और उनकी पत्नी चिंतित थे…। नीता की रोज अपनी भाभियों से लड़ाई होती थी, जान -पहचान के बराबर के घरों में नीता को कोई बहू बनाने को तैयार न था..

       “आप हमारे घर रिश्ता लेकर आये ये हमारा सौभाग्य है, पर हम आपके यहाँ संबध रखने लायक नहीं है, अतः क्षमा करें…,”भुवन के पिता ने एक सिरे से इस रिश्ते को नकार दिया..।

        “देखिये मुझे पता है, कौन सम्बन्ध के काबिल है कौन नहीं…, आप न करके पछताएंगे… एक बार फिर सोच लीजिये, घर में सलाह मशवरा कर लें, मैं परसों फिर आऊंगा “कह कर हाथ जोड़ कर रामलाल जी चले गये..।

      रात भुवन के पिता जी जब खाना खाने बैठे तो इस शादी की बात छेड़ी…”लड़की में कोई ऐब तो जरूर होगा तभी तो हमारे जैसे साधारण घर में शादी कर रहे है,

  “जरुरी नहीं पिता जी, हर रईस घर की लड़की में कोई ऐब ही हो “भुवन ने कहा 

  रामलाल जी बोल रहे थे अच्छा दहेज देंगे..”पिता की बात सुन भुवन सोच में पड़ गया..।

 भुवन को समझ में आया शादी तो करनी ही है, उसे रूप -रंग की कोई चाह नहीं थी, हाँ घर की स्थिति सुधारने के यत्न में वो जरूर था..। पिता के मना करने के बावजूद भुवन ने हाँ बोल दिया..।

       कुछ दिन बाद नीता भुवन की दुल्हन बन उसके घर आ गई..।पुराना पुश्तैनी घर और लोग नीता को रास न आये , अगले दिन पगफेरे के लिये गई, तो फिर लौट कर ससुराल न आई..। भुवन को साफ कह दिया उस सड़े घर में मै नहीं रह सकती हूँ तुमको मेरे साथ रहना हैं तो मेरे घर आकर रहो.., नीता भूल गई घर की बड़ी बहू होने के नाते, रिश्तों की डोर को मजबूत करने का दायित्व भुवन के साथ -साथ उसका भी है।

  “ठीक है, जब तक छोटी की शादी नहीं हो जाती तब तक मै अपने घर में रहूँगा फिर तुम्हारे पास आ जाऊंगा..।”भुवन ने कहा।

  कुछ समय बाद भुवन की छोटी बहन की शादी तय हो गई, पर एक शहर में रहने के बावजूद नीता सिर्फ शादी वाले दिन मेहमानों की तरह आई और चली गई..। बहन को विदा कर वादे के मुताबिक भुवन नीता के साथ आ कर रहने लगा….।

 कुछ दिन बाद भुवन का ट्रांसफर पास ही दूसरे शहर हो गया,नीता जाने को तैयार न थी पर पिता के समझाने पर, हम तुम्हारे साथ है, जो जरूरत होगी पूरा करेंगे..दो घंटे का ही रास्ता है, जब मन करें आ जाना….।”पिता के समझाने पर नीता भुवन के साथ वहाँ जा कर अपनी गृहस्थी बसाई…।

    दूसरे शहर जा, जब सैलरी मिली तो भुवन अपने पिता को पैसे भेजने के लिये जाने लगा क्योंकि घर तो भुवन के पैसों से ही चलता था….नीता नहीं चाहती थी भुवन अपने घर पैसा भेजे…

,नीता बोली तुम मुझे दे दो मै दें आऊंगी…, बहुत दिनों से मायके भी नहीं गई, वहाँ भी हो आऊंगी “भुवन को लगा नीता अब सुधर रही है.., अपना दायित्व समझ रही..।

    नीता की बात पर विश्वास कर भुवन ने सैलरी का एक भाग दे दिया। अब हर महीने नीता भुवन के घर में पैसे देने की बात कह उससे पैसे ले लेती।

 

  कुछ समय बाद पिता के जिस धन पर, नीता इतराती थी, वही धन व्यापार में घाटा होने पर डूब गया, नीता के दोनों भाई को नौकरी करनी पड़ी,इसी गम में पिता चल बसे…। नीता और भुवन रामलाल जी के काम में वहाँ पहुंचे तो भुवन शाम को अपने घर चला गया, वहाँ घर की खराब हालत, और माता -पिता को बीमार देख हैरान हो गया..।

  “तरुण मैं हर महीने पैसे भेजता था, फिर माँ -पापा को डॉ. को क्यों नहीं दिखाया, अब तो तुम विवाहित हो गये हो, सुधर जाओ “आक्रोश से भुवन बोला

  “कौन सा पैसा भैया…. पिछले एक साल से कोई पैसा आपने नहीं भेजा, मेरी दुकान अच्छी नहीं चल रही, किसी तरह खाने का जुगाड़ हो जाता है,”तल्ख़ आवाज में तरुण बोला..।

    “बकवास मत करो, नीता हर महीने पैसे ले कर तुम्हे देने आती “भुवन ने गर्म होकर कहा..।

     “भाभी इस घर में कभी नहीं आई, ना कोई पैसे दिये, पापा की खांसी बढ़ गई तो मै आपके घर गया था, आप ऑफिस में थे भाभी ने मुझे घर में घुसने नहीं दिया ना मेरी बात सुनी, साथ ही धमका दिया “खबरदार जो भुवन को कुछ बताया “..। तरुण ने उदासी से कहा।

     अब सब कुछ शीशे की तरह साफ हो गया…. भुवन ने अपने माँ -पिता को डॉ. को दिखाया, तरुण को पैसे दे बोला, अब मै सीधा तेरे अकाउंट में पैसे भेजा करूँगा…।” कह भुवन तरुण को गले लगा लिया।कैसी बिडंबना है वो ऐशो आराम से रह रहा और उसके माता -पिता और भाई आर्थिक तंगी से जूझ रहे…।

  वापस लौटने पर जब भुवन ने नीता से पैसों के लिये पूछा तो नीता बिफर पड़ी “तुम्हारा भाई झूठा है, सब पैसे उड़ा कर तुमको मेरे विरुद्ध भड़का रहा है, तुम्हारे घर के लोग हमें खुश देखना ही नहीं चाहते इसलिये उल्टी -सीधी लगा रहे है…।

  “क्यों झूठ बोल रही मम्मी, पापा आपको जो पैसे देते थे, उससे आप नानी के साथ जा गहने खरीदीती थी, जब नानी आपको समझाती थी, तब आप नानी से भी झगड़ा करती थी…, एक बात जान लो माँ, अपना किया ही वापस आता है…”बड़े होते बेटे ने नीता को कहा..।

   “नीता झूठ के पाँव नहीं होते है… याद रखों झूठ एक दिन खुलता ही है और कर्म भी एक दिन वापस आता है, कल को तुम्हारी बहू भी आनी है..”भुवन ने दुख से कहा..।

 अब भुवन चुपचाप भाई को पैसे भेज देता और जब मौका मिलता जाकर माँ -बाप से मिल आता..।

    भुवन अपने कार्यालय में खूब परिश्रम करता, वो तरक्की के सोपान पर चढ़ रहा था, अब भुवन के पास बड़ा घर, गाड़ी सब कुछ था…, लेकिन अब भुवन नीता पर विश्वास नहीं करता था, भाई तरुण से पूछ कर उसे पैसे भेजने लगा।

कुछ समय बाद भुवन के माता -पिता भी नहीं रहे… छोटा भाई तरुण अपने परिवार के साथ पुश्तैनी घर में रह रहा था..।नीता जब मायके जाती भुवन भाई के घर आ जाता..।

   अरसे बाद जब रिश्तेदारी में शादी का निमंत्रण मिला तो भुवन अपने को रोक न पाया, भुवन के जाने की बात सुन ना जाने नीता को क्या हुआ बोली मै भी चलूंगी..। और भुवन के साथ जाने की तैयारी कर ली, वहाँ जाकर वो अपने घर और भुवन अपने घर चला गया…।

   उसके बुरे बर्ताव पर भी,शादी में नीता को देवरानी और उसका बेटा मिलने आया, ये नीता को कहीं छू गया… जबकि नीता ने बड़ी होकर भी अपना दायित्व कभी नहीं निभाया…।

एक दिन शाम को कॉलबेल बजी देखा नकुल मिठाई का डिब्बा हाथ में ले खड़ा था..। देख कर नीता ने कुछ नहीं कहा, पर बेटे प्रतीक ने, नकुल को अंदर बैठाया…।

       आज पहली बार दोनों भाई आपस में मिले, नकुल की आँखों में आँसू थे तो प्रतीक की ऑंखें भी गीली थी… ये देख कर ऑफिस से लौटे भुवन की भी आँखों में आँसू आ गये। आज दिल को ठंडक मिली, वे अपनों को हाथ पकड़ कभी इस घर में बुला नहीं पाये, नीता की नाराजगी की वजह से, आज उनके बेटे ने एक कदम बढ़ाया रिश्तों की डोर को मजबूत करने के लिये…।आखिर खून रंग ले आया…।

    “बड़े पापा, आप की वज़ह से मै अपना मुकाम पा लिया, सिविल सर्विसेज में मेरा सिलेक्शन हो गया “नकुल ने भुवन के पैर छूते कहा…।भुवन ने नकुल को गले लगा लिया..।

    “थोड़ा अपने इस नालायक भाई को भी टिप्स दे दो भाई “प्रतीक ने कहा..।

      “जरूर “कह नकुल चलने को हुआ

   .”बिना मुँह मीठा किये चले जाओगे “पीछे से नीता की आवाज आई…

      नीता ने नकुल का ही नहीं सबका मुँह मीठा कराया .. भुवन को बोली “सॉरी, रिश्तों को समझने में मैंने बड़ी देर कर दी…।

       नीता ने देर तो कर दी पर उसका खामियाजा भुवन को भुगतना पड़ा था, अपने नाते -रिश्तेदारों से दूर होकर….।

          ऐसा क्यों होता है सखियों… ज्यादातर पति पत्नी के भय से अपने माता -पिता की मदद नहीं कर पाते, भुवन तो चोरी -छिपे कर लेते थे, पर हर व्यक्ति नहीं कर पाता…. एक पत्नी पति के रिश्तों को क्यों संभाल नहीं पाती, क्यों भूल जाती, जिस तरह उसे अपने माँ -बाप, भाई -बहन से प्यार है, उसी तरह पति को भी अपने रिश्तों से प्यार होगा …, झूठ बोल कर पति को उसके परिवार से विमुख करना कहाँ की समझदारी है…। अपने सुझाव जरूर देना सखियों….।

                             ……. संगीता त्रिपाठी 

#दायित्व

7 thoughts on “रिश्तों की डोर – संगीता त्रिपाठी   : Moral stories in hindi”

  1. संगीता जी आपकी कहानी मेरे दिल को छू गयी ।मेरा‌मन भी यही कहता है कि
    यों नहीं हम प्यार का संसार सजाते। क्यों वैमनस्य को पाल कर अपना अन्तर्मन कलुषित करते हैं।

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  2. यह तो अच्छा रहा कि पत्नी के बहकावे में आकर पति अपने मात पिता और भाई को भूला नहीं ।पत्नी को गलती समझने में कई साल लग गये ।वो भी, मरता क्या न करता ।

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  3. Kahani Ghar Ghar ki Issey bhi buri hai kahani kuch Gharon ki m bhi perdition hoon buri kahani se Bhagwan sbhi ko sad budhhi de aurat hi Ghar ko swarg Bana sakti Hai isme koe shak nahi

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