ज़िम्मेदारी नहीं फ़र्ज़ है। – रश्मि सिंह

रागिनी-पापा कितना टाइम और लगेगा, हमनें सब तैयारियाँ कर ली है, और पापा, नानी भी हमारे साथ अभी चलेंगी।

शेखर (रागिनी के पापा)-बेटा आवाज़ नहीं आ रही है, कुछ नेटवर्क प्रॉब्लम है, बस एक घंटे में पहुँचने वाला हूँ।

रागिनी- ठीक है पापा जल्दी आइए साथ में ख़ाना खाएँगे।

ये है रागिनी, शेखर और उमा की छोटी बेटी। नटखट, चंचल और बेफिक्र। कभी किसी चीज़ की चिंता नहीं बस अपनी माँ की दुलारी। सात दिन बाद बड़ी दीदी मोहिनी की शादी है, सबको कल गाँव जाना है, शेखर जी गाँव में सब तैयारियाँ कर परिवार को लेने आ रहे है। शादी की ख़ुशी सबसे ज़्यादा रागिनी को है। नये कपड़े, नाचना गाना, जूता चुराई की रस्म और सभी रिश्तेदारों से मुलाक़ात।

उमा-देख तो रागिनी किसी नये नंबर से फ़ोन आ रहा है।

रागिनी-हो सकता है दीदी के ससुराल से किसी का हो।

रागिनी (फ़ोन पर)-हेलो कौन।

फ़ोन के दूसरी तरफ़-हम पिपरी रेलवे स्टेशन से बोल रहे है, क्या आप शेखर सिंह को जानती है।

रागिनी-हाँ वो मेरे पापा हैं।

फ़ोन के दूसरी तरफ़-आप जल्दी से पिपरी रेलवे स्टेशन आ जाइए।

ये बात सुन सब समझ नहीं पाते है कि मामला क्या है। उमा जी अपने भाई के साथ स्टेशन जाती है।

कुछ देर बाद सविता (रागिनी की मामी) के फ़ोन पर सागर (रागिनी के मामा) का फ़ोन आता है।

सविता फ़ोन पर बात कर कुछ देर बैठ जाती है फिर संभलते हुए रागिनी से कहती है कि रागिनी हिम्मत बांधकर सुनो जीजा जी अब नहीं रहे, ट्रेन दुर्घटना में वो हमे छोड़ चले गये, तुम रोना मत क्योंकि अब तुम्हें सारी ज़िम्मेदारियाँ सम्भालनी है।

रागिनी कुछ देर ऐसे हो जाती है जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो फिर ज़ोरों से चिल्लाती है पापा, वापस आ जाओ मत जाओ वहाँ। पर दूसरे ही पल दीदी मम्मी और भाई का ख़्याल आते ही अपने को सम्भालते हुए मम्मी के पास  जाती है। आज एक ही क्षण एक बेफिक्र बच्ची ज़िम्मेदार बन गई।




मोहिनी (रागिनी की बहन) का रो-रोकर बुरा हाल है बार बार वो बस यही कह कहकर बेहोश हुए जा रही है कि मेरी शादी ना होती तो ऐसा कुछ नही होता। सब उसे समझा रहे है।

दूसरी तरफ़ सागर (रागिनी के मामा) पोस्टमार्टम के बाद शेखर जी के शव को गाँव ले जाने की तैयारी कर रहे है। पूरा परिवार जा तो उसी दिन रहा था पर अब शेखर पूरे परिवार को नहीं बल्कि पूरा परिवार शेखर  के शव को ले जा रहे थे।

गाँव में पूरा कोहराम मचा हुआ था शादी का घर, पूरी तैयारियों के बीच ऐसा मातम। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। शव की अंत्येष्टि के बाद सब दोबारा शहर रवाना होने वाले थे पर मोहिनी के ससुराल वालों ने ये विवाह उसी दिन उसी मुहर्त में करने को कहा क्योंकि शेखर जी बड़ी बेटी की शादी को लेकर बहुत उत्साहित थे और तैयारियाँ भी सब हो चुकी थी।

गाँव में भी सबने कहा बहुत अच्छे लोग है मोहिनी के ससुराल वाले, वो जैसा कह रहे है वैसा ही करिए।

शादी का दिन आ गया और ऐसा लग रहा था सब काम शेखर जी की निगरानी में हो रहे हो। बारात आने को है, रागिनी सभी तैयारियों में लगी हुई है उसे सजना संवारना कुछ याद नहीं।

आलोक (शेखर के दोस्त) खाने का इंतज़ाम देख रहे थे, अचानक रसगुल्ले पर नज़र पड़ी तो रोना आ गया, क्योंकि शेखर अभी हाल में ही एक शादी में गया था जहां  रसगुल्ला देख कर बोला था कि अपनी बिटिया की शादी में भी इसी साइज के रसगुल्ले बनवाऊँगा।

शेखर और भगवान के आशीर्वाद से विवाह संपन्न हुआ, मोहिनी की विदाई हुई और रागिनी के लिए एक नये सफ़र का आग़ाज़।

मोहिनी की विदाई के बाद रागिनी को समाज का सामना करने में बहुत तकलीफ़ होती थी, उसे ऐसा लगता था कि वो समाज की हीन वर्ग से है जिसके पापा नहीं है क्योंकि पापा का ना होना उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

रागिनी के जीवन में अब चंचलता का स्थान धैर्य, साहस और शांति ने ले लिया है, कई बार उसे लगा अब वो ज़िम्मेदारियों नहीं निभा पाएगी पर एक अनदेखी ताक़त ने हमेशा उसका साथ दिया और वो अपनी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभा रही है और अब तो उसके साथ उसके हमसफ़र का साथ भी है जो उससे हमेशा कहता है-

ज़िम्मेदारी नहीं ये फ़र्ज़ है तुम्हारा,




कभी भी इससे मत करना किनारा।

जब भी दुखी और कमजोर समझोगी ख़ुद को,

हमेशा हाथ थामे दिखेगा ये हमसफ़र तुम्हारा।

आदरणीय पाठकों,

आज रागिनी ये रचना लिखते हुए बिलख बिलखकर रो रही है। एक कहावत है समय का दिया घाव समय भरता है, पर कुछ घाव कभी भरे नहीं जा सकते और ना ही उसकी पूर्ति कोई कर पाता है। आज रागिनी अपने परिवार के साथ बहुत खुश है पर पापा की कमी उसे हमेशा खलती है, और ये गाना तो उसे पापा की याद ज़ोरों से दिलाता है-

सात समुंदर पार से, गुड़ियों के बाज़ार से,

अच्छी सी गुड़िया लाना।

गुड़िया चाहे ना लाना,

पापा जल्दी आ जाना, पापा जल्दी आ जाना।।

इस रचना के माध्यम से बस आप सभी से निवेदन है अपने मम्मी पापा से ढेर सारा प्यार करिए, उनकी बात कभी मत काटिए क्योंकि वो हमेशा सही होते है, उन्हें कभी अपने से दूर मत करिए और किसी को हक़ भी मत दीजिए कि वो आपको आपके मम्मी पापा से दूर करें। मम्मी पापा अमूल्य निधि है, इन्हें अपने मन रूपी तिजोरी में सहेज कर रखिए🙏🏻🙏🏻

धन्यवाद🙏🏻

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

#ज़िम्मेदारी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!