ये कैसी जिम्मेदारी है… – संगीता त्रिपाठी

“जिम्मेदारी..”ये शब्द अपने में अनेक भार लिये हुये है, कुछ हँस कर निभाते है कुछ मज़बूरी में निभाते है..। किसी को समय पर जिम्मेदारी मिलती है तो किसी को असमय….।

     जिम्मेदारी से मुझे अपने पड़ोस में रहने वाली सुषमा दीदी याद आ गई…। एक सुबह जब मेरी ऑंखें खुली तो सामने के घर में ट्रक से सामान उतारा जा रहा था, जिज्ञासा दबा ना पाई, माँ से पूछा तो माँ ने बताया, नये किरायेदार आ गये है ….।

    “उस भूतहे घर में… आप तो कहती हो वहाँ भूत रहते है .”मै बोली तो माँ हँस पड़ी,”नहीं रे वहाँ कोई भूत -वूत नहीं रहता…।”

     “फिर आप हमें वहाँ खेलने से मना क्यों करती थी “मुँह फुलाते मै बोली..।

     “तू अभी नहीं समझेगी, जा स्कूल के लिये तैयार हो जा..”मेरे प्रश्नों से माँ अपने को बचाते बोली।

            स्कूल से वापस आई तो बाहर लॉन में कई लोगों की आवाज आ रही थी, मुझे देखते ही एक महिला बोली “मिन्नी तुम्हारा नाम है “मै हाँ में सर हिला दी, माँ के पीछे छुप कर देखा एक बड़ी उम्र के पति -पत्नी और उनके दो बेटे और वही महिला जिन्होंने मेरा नाम ले कर पुकारा था..।

     “इनसे मिलो ये सुषमा आंटी है..”माँ ने उनसे परिचय कराते बोली..।

       “ये बिंदी -सिंदूर नहीं लगाई है तो आंटी कहाँ से हुई…”मेरी बाल सुलभ तर्क बुद्धि से सुषमा आंटी प्रभावित नजर आई ..,हँस कर बोली “तू मुझे दीदी ही कह लेना… पर अब तो दोस्ती कर लें..”

    फिर सुषमा आंटी जो मेरी माँ की उम्र की थी, आंटी से दीदी बन गई, मेरी बाल बुद्धि उन्हें आंटी मानने को तैयार नहीं था, और आंटी तो माँ जैसी दिखती थी, पर ये थोड़ी अलग थी..।अध्यापिका जो थी…।

        सुषमा दीदी मुझे अक्सर घर बुला कर कभी चॉकलेट तो कभी आइसक्रीम खाने को देती, जब मै खाती तो वो बड़े प्रेम से मुझे निहारती रहती…, मै पूछती तो कहती, अगर समय पर मेरी शादी हुई होती तो तेरे जितनी बड़ी मेरी बेटी होती.. “और उनकी आँखों में नमी आ जाती जिसे वे बड़ी चतुराई से पोंछ लेती…।




    “आपने शादी क्यों नहीं किया दीदी…, मै तो जल्दी ही शादी कर लूंगी, पढ़ाई से भी छुटकारा मिल जायेगा…”मेरे इतना कहते दीदी जोर से हँस पड़ती…।

     दीदी और मै बहुत समय साथ गुजारते, मेरी पढ़ाई -लिखाई वही देखती, मुझे अच्छा खिला कर, मेरी कंघी -चोटी कर उन्हें असीम तृप्ति मिलती थी,।

 उनके घर में उनके सब भाई -बहनों की शादी हो गई, जब छोटे भाई की शादी हुई तो दीदी ने राहत की सांस ली…, तब माँ को मैंने कहते सुना,”सुषमा अब तुम्हारी सारी जिम्मेदारी पूरी हो गई, अब अपने लिये सोचो, शादी कर लो…अभय कब तक इंतजार करेगा…”

    फीकी हँसी हँस कर दीदी बोलती “अब इस उम्र में शादी करते अच्छी लगूंगी क्या भाभी “

      तभी सुषमा दीदी के मम्मी -पापा बोल उठते “सुषमा हमारी बेटी नहीं बेटा है, हमारे बुढ़ापे का सहारा…”

       माँ होठों ही होठों में भुनभुना कर रह जाती…।

      समय बीता मै किशोरी फिर युवावस्था पर पहुँच गई, लेकिन दीदी के लिये मै छोटी वाली मिन्नी ही थी। बरसात की एक शाम, मै दीदी के संग छत पर बादलों की आँख -मिचौली देख रही थी

     “दीदी आपने शादी क्यों नहीं किया…अब तो बता दो आप कहती थी ना तुम बड़ी हो जाओगी तो बताउंगी….”मैंने उनसे जानना चाहा..।

     “मिन्नी, बीमारी की वजह से पापा की नौकरी छूट गई थी, मै सबसे बड़ी लड़की थी, तब पापा ने मुझे बुला कर कहा था, “तू मेरा बड़ा बेटा है, इस परिवार की जिम्मेदारी अब तेरी है…, मै उस समय स्नातक कर रही थी, फिर मैंने बी. एड. किया और स्कूल में पढ़ाने लगी, बी. एड के दौरान मै छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी,




एक दुकान में अकाउंट संभालती थी, इस तरह घर का खर्चा चलाती थी।…, मेरे अंदर भी जोश आ गया, मै इस परिवार की बड़ी संतान हूँ, मेरा ही दायित्व है सबकी देखभाल का…, तब तक मुझसे छोटा भाई भी नौकरी पर आ गया इस तरह हम दोनों ने बाकी दोनों भाई -बहन की पढ़ाई पूरी करवाई, फिर माँ को दामाद की नहीं,बहू की साध हो गई तो छोटे भाई की शादी कर दी, उसकी पत्नी की माँ से बनती नहीं थी, वो अलग हो गई,… अब तो छोटा भी अलग हो गया.., मुझे संतुष्टि है मैंने अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से पूरा किया …।”उदासी से सुषमा दीदी ने बताया…। ऊपर आसमान में काले बादलों ने अंधेरा कर दिया, बूंदा -बाँदी होने लगी तो मै और दीदी नीचे आ गये ..।

   मेरे मन में दीदी की बात अटक गई, चाहते हुये भी मै नहीं पूछ पाई “और आप किसकी जिम्मेदारी है .., आपके वो भाई जो दीदी -दीदी करते थे, नौकरी और शादी करते ही अलग हो गये., क्या अब उनकी जिम्मेदारी आप नहीं हो….”।

       बाद में माँ ने बताया “सुषमा के ऊपर जिम्मेदारी डाल उनके माता -पिता निश्चिंत हो गया…, जब भाई का विवाह हुआ तो दीदी के स्कूल में साथ पढ़ाने वाले टीचर ने, उनके माँ -बाप से उनका हाथ माँगा तो उन्होंने कहा “अब इस उम्र में सुषमा शादी करती अच्छी लगेगी क्या…”सारे भाई -बहन उनके विरुद्ध हो गये, माँ ने ने सुषमा दीदी को बहुत समझाया पर वे परिवार के विरुद्ध नहीं जा पाई….,कुछ साल इंतजार करके अभय ने भी शादी कर ली…।फिर एक -एक कर दीदी के माता -पिता भी चले गये, दीदी अकेली रह गई, किसी भाई -बहन ने उन्हें अपने साथ चलने को नहीं कहा..।जिम्मेदारी पूरी कर आज दीदी अकेले हो गई…, जिम्मेदारी की वेदी पर अपना यौवन, अपने ख्वाब, अपने सारे अरमानों की आहुति दे दी उन्होंने…।

    कुछ समय बाद मेरी भी शादी हो गई, विदा के समय मै दीदी के गले लग जार -जार रोई…, दीदी के आँसू थमने का नाम ना ले रहे थे, बेटी को उन्होंने जन्म नहीं दिया पर उनका मातृत्व मुझे से ही पूरा हो रहा था…। ये मै भूल नहीं सकती थी…।

      एक सुबह माँ का फोन आया, दीदी सीरियस है और तुझे याद कर रही, भागी -भागी जब तक मै पहुँचती, दीदी चली गई… फफक कर रोते हुये मैंने दीदी के चेहरे को देखा, वहाँ असीम शांति थी… दीदी का अगला जन्म सुखमय हो… यही कामना मन में थी..।

     शांति -पाठ वाले दिन कोने में खड़े एक शख्श की ओर इशारा कर माँ ने बताया ये वही है, जिनसे दीदी शादी करना चाहती थी पर परिवार ने होने ना दिया, दीदी की सैलरी सबकी अतरिक्त इनकम जो थी…।दोस्तों कहते है संतान नालायक होती है, पर कभी -कभी जिम्मेदार संतान के सुख को माँ -बाप अपने स्वार्थ के चलते अनदेखा कर देते है …।

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