ईमानदार कोशिश – लतिका श्रीवास्तव

आज फिर भोजन कक्ष में हंगामा बरपा था…भोजन से भरी थालियां जमीन पर औंधी पड़ीं थीं  दाल से भरे गंज में तिलचट्टे तैर रहे थे सब्जी से दीवाल पर चित्रकारी की गई थी   और रोटियां तो टेबल मैट बन गई थीं…..मृदुला जी जब तक वहां पहुंचीं खाना पकाने वाले त्रस्त होकर भाग चुके थे ।

भोजन की इस तरह से की गई बरबादी ने उनके क्रोध को बढ़ा दिया  था …इतनी अनुशासन हीनता उनके लिए असहनीय थी ।

मृदुला जी हैरान थीं अभी एक हफ्ते पहले ही उनकी नियुक्ति इस बाल सुधार गृह में संचालक के पद पर हुई थी इसके पहले भी कई बार कई जगह ये जिम्मेदारी निभा चुकी थी परंतु इस बार यहां के बच्चों को सुधारने की अपनी ये जिम्मेदारी कुछ ज्यादा ही दुष्कर प्रतीत हो रही थी…पिछली संस्था के प्रभास जी ने उन्हें यहां नियुक्त  होने पर खतरों से आगाह ही नही किया था बल्कि यहां ज्वाइन नहीं करने की सख्त ताकीद भी की थी उनका मानना था ये ऐसा खतरनाक सुधार गृह है जहां सुधारने की नहीं कठोरतम सजा देने की जरूरत है और किसी महिला के लिए ऐसी जगह नौकरी करना बहुत ज्यादा कठिन है इसलिए आने वाली असाध्य मुश्किलों को झेलने से बेहतर है अभी ही कोई बहाना करके इस ट्रांसफर को रुकवा लें …

लेकिन बचपन से साहसी मृदुला के लिए ऐसी भयावह बातें मैदान छोड़कर भागने वाली  नहीं बल्कि चुनौती मानकर डट कर मुकाबला करने वाली बन जाती थीं…..पता नहीं महिला अधिकारियों को दब्बू और कमजोर क्यों समझते हैं लोग..!यही बात उसे हर जोखिमपूर्ण कार्य करने के लिए उकसा देती है….इस बार भी यही हुआ सबके लाख समझाने धमकाने के बावजूद वो अपना बोरिया बिस्तर बांधकर  इसी सुधार गृह के एक कक्ष में जो कि लंबे समय से खाली और बेतरह गंदा पड़ा था आ कर जम गई थीं।

….उसके सामने ये पहली घटना हुई थी …सबने सलाह दी वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करा दीजिए ..एक पत्र लिख कर भिजवा दीजिए और ज्यादा कुछ करना हो तो पास के पुलिस थाने को भी सूचित कर दीजिए…बस हो गई आपकी जिम्मेदारी पूरी ..इससे ज्यादा आप कुछ कर भी नहीं सकतीं..!!

…उसने सहयोग और सलाह के लिए तुरंत अपने हेडक्वार्टर में फोन लगाया..”..हेलो …जी सर मैं मृदुला बोल रही हूं आज इस सुधार  गृह में काफी उधम हुआ है मैं चाहती हूं कुछ और सिक्योरिटी बढ़ा दी जाए …और दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता भी बढ़ाने की जरूरत है….




………सुनो मैडम जी “….उसकी बात काटते हुए उधर से अधैर्यपूर्ण  जवाब आया……”वहां ऐसे कुछ सुधार नहीं किये जा सकते जैसे आपके इरादे दिख रहे हैं….सिक्योरिटी क्या पेड़ पर फल रही है कि आपने मांगा और हमने तोड़ कर भिजवा दिया ….आप अपना काम करिए…

……प्लीज सर ये बच्चे आपकी भी जिम्मेदारी हैं ऐसे मत बोलिए…मृदुला ने बीच में टोका तो वो और भी भड़क गए थे…भोजन की गुणवत्ता बढ़ाने की पैरवी कर रही हैं आप किनके लिए??ऐसे बिगड़ैल आवारा बद दिमाग बच्चों के लिए जिन्हें अपनी वाहियात हो चुकी जिंदगी में डंडे पड़ने के बजाय कम से कम दो वक्त की रोटियां तो नसीब हो ही रही हैं….आप ज्यादा मसीहा बनने की कोशिश ना करें..महिला है तो महिला जैसे ही रहिए… जैसा चल रहा है जो मिल रहा है चलाइए…. उन सब उद्दंड बच्चों को कमरे में बंद कर दीजिए पिटाई कीजिए उनकी ढंग से ….भूखा रखिए दो दिन….सारी अक्ल ठिकाने आ जायेगी….और हां यहां तक कोई कंप्लेंट नहीं आनी चाहिए नहीं तो आपका सस्पेंशन पक्का है…और फोन बंद हो गया था।

मृदुला सकते में थी ..!ये कैसा रवैया है!!मार पीट…इस सुधार गृह में..!!सुधार करने का ये तरीका बता रहें हैं वो लोग जिनकी भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होनी चाहिए!!आखिर इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने के लिए उसे भी तो ऊपर से अतिरिक्त सहयोग और सपोर्ट चाहिए ….!!ये उसकी अकेले की जिम्मेदारी तो है नहीं!! ये लोग अपनी जिम्मेदारी निभाने से किनारा कर रहे हैं बच रहे हैं और उसे भी अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से निर्वहन ना करने के लिए बहका रहे हैं..!!

दुरूह होती परिस्थितियां मानो मृदुला के लिए नवीन चुनौतियों से निबटने के सुअवसर लेकर आईं थीं।

कार्य तो मेरा है समस्या तो मेरी है मैं ही इसे सुलझाऊंगी..शिकायतें करने और बातें सुनाने के बजाय ….दृढ़ निश्चय करती मृदुला ने तत्काल चपरासी से सारे बच्चों को कतार बद्ध होने का आदेश दिया..ये सब बच्चे पांच वर्ष से लेकर पंद्रह वर्ष की उम्र तक के थे… कितनी कम उम्र है सबकी… जिन हाथों में समाज परिवर्तन नैया की पतवार होनी चाहिए उन्हीं के हाथों आज समाज की नैय्या डूब जाने का खतरा पैदा हो गया है….ये सुधार गृह बना कर जैसे सारी जिम्मेदारी खत्म हो गई है सबकी ….




…..कुछ बच्चों के अलावा सभी बच्चों ने तत्काल आदेश का पालन किया था उन सभी उपस्थित बच्चों का सहमा सहमा व्यवहार मृदुला की अनुभवी आंखों से छिप नहीं सका था…वो कुछ बोलती उसके पहले ही एक बच्चे ने … मैम ये लीजिए …कहते हुए सहमे हुए हाथों से एक मजबूत छड़ी उसकी तरफ बढ़ाई तो मृदुला का कलेजा द्रवित हो गया….उसने उस बच्चे के हाथ से छड़ी लेकर फेक दी और स्नेह से बोल उठी … नहीं अब से यहां कोई छड़ी नहीं…मैं तुम लोगों की मैम थोड़ी हूं मैं तो दीदी हूं तुम सबकी …भला दीदी भी कभी पिटाई करती है क्या!!! बच्चों से वो बहुत प्यार और सहृदयता से मिली ….जबरदस्त डांट और मार के आदी बच्चे अनपेक्षित रूप से मिल रहे  ऐसे मृदुल व्यवहार से आश्चर्य चकित रह गए कुछ बोल नहीं पाए….

सबको एक एक कागज़ देते हुए मृदुला ने उनसे अपने दिल की सारी शिकायतें  आकांक्षाएं और हॉबीज  लिखने का आग्रह किया  जो बच्चे लिख नहीं सकते थे उन्हें राइटर उपलब्ध करवा दिया और चुप चाप अपने कक्ष में आकर लेट गई

थोड़ी देर के बाद दो बच्चे सभी के लिखे हुए कागज लेकर उसके पास आए और उसे लेटा हुआ देख कर बहुत ही तमीज से दरवाजे पर आहिस्ता से  खटखट की..उनकी तमीज देख कर मृदुला को लग गया कि कुछ अच्छे बच्चे हालात के मारे यहां आए हैं…हां हां आ जाओ बेटा अंदर आ जाओ उसने बैठते हुए उन्हें अपने पास ही बुला लिया ….थोड़ी ही देर में वो दोनों अपनी दीदी से काफी खुल गए … बातों बातों में मृदुला को दो महत्वपूर्ण बातें पता चलीं …..पहली ये कि सब नहीं केवल चार बच्चे ऐसे थे जो बहुत उपद्रवी और खुराफाती थे वही सारे बच्चों को भड़काते थे और जबरदस्ती ऐसी बेहूदा हरकते करवाते रहते थे …!और दूसरी बात ये कि इसी सुधार गृह के कुछ कर्मचारियों के कारण भोजन व्यवस्था बिगड़ी हुई है वो दलाली करते हैं खराब क्वालिटी का सस्ता राशन अपने तय दुकानदार से खरीदते हैं बच्चों के भोजन के लिए आबंटित धनराशि से अपनी जेब भरते हैं…जब कोई बच्चा खाने का विरोध करता है तो उसकी बुरी तरह पिटाई कर देते हैं…l

मृदुला ने सारे बच्चों की लिखी हुई बातें पढ़ीं….अधिकतर बच्चों की शिकायत खराब खाने को लेकर थी और कुछ ने हिम्मत करके उन चार बदमाश बच्चो की नामजद शिकायत करते हुए उन्हें यहां से बाहर करने की बात लिखी थी…अधिकतर बच्चों ने गीत नृत्य अभिनय पतंगबाजी क्रिकेट खेलने की इच्छा जाहिर की थी…!

मृदुला को अब ऐसा प्रतीत होने लगा था कि समस्या इतनी भी गंभीर नहीं है कि समाधान के विकल्प खत्म हो गए हों!!

उसी समय जाकर मृदुला ने भोजन सामग्री की जांच पड़ताल की तो बच्चों की शिकायत सत्य प्रमाणित हुई ..नीचे से ऊपर तक सबकी बंदरबांट चल रही थी….तत्काल संबंधित जिम्मेदार कर्मचारियों को बुलाकर सख्ती दिखाई और ऊपर तक शिकायत कर सस्पैंड करवाने की धमकी कारगर सिद्ध हुई उन लोगो ने अपनी गलती कबूली  माफी मांगी और मृदुला की बताई उचित दुकान से सही गुणवत्ता वाली खाद्य सामग्री उचित दामों में खरीद लाए…रात्रि में मृदुला स्वयं बच्चों के साथ भोजन करने बैठ गई…आज पहली बार शांति और सुकून से स्वादिष्ट भोजन उन मासूम बच्चों ने पेट भर के खाया सबके चेहरों पर संतोष और सुकून भरी मुस्कान थी।

मृदुला ने उन बदमाश बच्चों को ही सुव्यवस्थित भोजन करवाने की जिम्मेदारी सौंप दी…कुछ बच्चों को सांस्कृतिक कार्यक्रम की  और कुछ बच्चों को खेल सामग्री की जिम्मेदारी सौंप दी …अपनी अपनी जिम्मेदारी मन लगाकर निभाते उन बच्चों में तेजी से सकारात्मक सुधार होने लगा था और मृदुला की जिम्मेदारी भी मानो नए पंख लगाकर नवीन उड़ान के लिए सक्रिय हो उठी थी।

#जिम्मेदारी 

लतिका श्रीवास्तव

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