ये कैसी सोच? – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

बधाई हो मिसेज गुप्ता!शालिनी ने बराबर वाले फ्लैट वाली अपनी पड़ोसन रेखा गुप्ता को मुबारकबाद देते कहा।

बहुत धन्यवाद जी!मिसेज गुप्ता मुस्कराते हुए बोली। आइए!एक प्याला चाय तो पीते जाइए।मुंह भी मीठा कीजिए,आप तो फंक्शन में आ ही नहीं पाई।

जी…जरूर…आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली,मेरा भी दिल था कि आपसे बातचीत करूं,

शालिनी को ड्रॉइंग रूम में बैठाकर,रेखा अंदर गई और लौट के आई तो उनके हाथ में प्लेट में मेवे के लड्डू थे,लीजिए!खाइए प्लीज।

लड्डू खाते हुए,शालिनी बोली,बहुत स्वादिष्ट हैं,और रिशा बिटिया खुश है अपनी ससुराल में?उसके पति विजित कैसे स्वभाव के हैं?

मै तो बहिन!गंगा नहा गई,बहुत ही अच्छा दामाद मिला है मुझे,मेरी बेटी को पलकों पर बैठा के रखता है,इतना प्यार करता है कि पूछो मत।रेखा खुशी जाहिर करते बोली।

और घर मे कौन कौन है? शालिनी ने जिज्ञासा से पूछा।

अरे!घर में कोई और नहीं है ये ही तो सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है…रेखा चहकी।

क्यों सास ससुर,ननद,देवर,जेठ,जेठानी…कोई नहीं क्या?शालिनी आश्चर्य से बोली।

मेरी रिशा ने शादी से पहले क्लियर कर दिया था विजित के सामने…पढ़ी लिखी,मॉडर्न लड़की हूं,जॉब करती हूं,फिर मुझसे सास ससुर के बंधनों में नहीं रहा जायेगा,हर समय की टोकाटाकी,रोक टोक मुझे पसंद नहीं।

और वो मान गए?शालिनी  ने अचरज से पूछा।

मानते क्यूं नहीं?उनसे ज्यादा कमा रही है मेरी रिशा !फिर कोई नयजयज डिमांड तो नहीं कर दी उसने?रेखा बोले जा रही थीं और शालिनी उनकी अच्छी तकदीर की कायल हो रही थीं।

और तो और,रिशा शोर्ट्स पहन कर रहती है अब,कुकिंग भी संग मिलकर करते हैं दोनो अगर उनकी हेल्पर न आए..

अच्छा!!शालिनी को जलन सी हुई,बड़ी तकदीर की धनी है रिशा तो?

आप कहना नहीं किसी को,रिशा के खाने के बर्तन भी विजित ही उठा लेते हैं,कहते हैं,तुम्हारा नाजुक बदन लचक न जाए,बैठी रहो,गोरे पांव जमीन पर रखोगी तो मैले हो जायेंगे।रेखा रोमांचित थीं बताते हुए।

शालिनी भी शरमा सी गई सुनते हुए,अपने शुरू के दिन याद हो आए थे उन्हें शायद…

चलो! आधा किला तो आपने जीत लिया ,अब एक प्यारी सी दुल्हन और ले आओ अपने बेटे शिखर के लिए,फिर घर कंप्लीट हो जायेगा,रिशा के जाने के बाद सूना लगता होगा ना?

हां!सच ही कह रही हो तुम!अब तो शिखर की शादी हो जाए फिर जिंदगी की सारे मुसीबतें खत्म!बहुत दुख और तकलीफें रही नहीं तो,इनके जाने के बाद,कितने कष्ट उठाकर पाला मैंने दोनो बच्चों को।

क्यों नहीं,देख रही हो कोई लड़की?मिली कोई?शालिनी बोली।

मिलती तो हैं पर बात कहीं जम  नहीं रही।

क्यों भला?शालिनि बोली।

बस क्या बताऊं?जॉब करती है लड़की तो काम नहीं करना चाहती और घरेलू है तो सारा दिन पति की कमाई पर ऐश करना चाहती है।

ओह!ये प्रोब्लम तो है आजकल,शालिनी सोच रही थीं मन में, कैसी दोगली औरत है,बेटी के लिए दामाद करे तो इसके भाग्य अच्छे,वो ही बात आने वाली बहू करे तो समाज  खराब!अपने लिए कुछ और, और दूसरों के लिए बिल्कुल कुछ और??तभी तो सब इतने दुखी हैं।

कुछ कहा शालिनी?रेखा चौंकी।

नहीं…च्लती हूं,मिलूंगी अब फिर जल्दी ही।

हां..इस बार शिखर की शादी में जरूर आइए।

बिलकुल…आऊंगी,कहते हुए शालिनी ने विदा ली।

तीन महीने बाद,अचानक शालिनी को रेखा फिर मिल गई।

अरे!बीमार हैं क्या?कितनी कमजोर हो गई हैं?पहचान ही नहीं आ रही आप तो?बेटे की शादी कर ली?शायद हैदराबाद गए थे आप लोग,वहीं की है?

हां!कल उन्हीं के पास से आ रही हूं,अपना घर,अपना ही होता है,यहां की याद आ रही थी तो चली आई, बुझे स्वर में बोली रेखा।

और बहू कैसी है?शालिनी पूछने से न रोक सकी खुद को।

क्या बताऊं बहन,तकदीर फूट गई मेरी तो..

रेखा उदास होते बोलीं।

क्यों अच्छी शादी नहीं की क्या उन लोगों ने?इज्जत नहीं करती बहू?जॉब तो करती होगी?कई प्रश्न पूछ डाले शालिनी ने।

गहरी सांस लेते बोली रेखा,जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरों की बुराई क्या करूं?

शिखर उसके नखरे ही उठाता रहता है सारा दिन…न मां का लिहाज,न शर्म,मेरे सामने ही ऐसी हरकतें करते हैं दोनो,कभी गोद में उठा लेगा कि जमीन पर पैर न रखा करो,गंदे हो जायेंगे…और उन महारानी को हर चीज बिस्तर पर चाहिए।

प्रेगनेंट है क्या बहू?शालिनी ने पूछा।

हां…तो नया क्या है इसमें? हमने नहीं पैदा किए बच्चे?बस ये समझो बहन,जिसकी तकदीर में दुख ही लिखा हो वो क्या करे?

वैसे भी इस संसार में सुख कम दुख ही ज्यादा मिलते हैं।

शालिनी अपने घर लौटते हुए सोच रही थी कि क्या रेखा सही कह रही थी या इसकी सोच ही दूषित है।अपनी लड़की के लिए जब दामाद यही सब करता है तो अच्छा क्यों लग रहा था अब यही काम खुद का बेटा,उसकी पत्नी के लिए कर रहा है तो कांटे चुभ रहे हैं।अगर इस तरह की दोगली मानसिकता रखेंगे तो समाज में सुख कम और दुख ज्यादा ही दिखेंगे बाकी ऐसा नहीं है भगवान ने सब व्यवस्था ठीक बना रखी हैं,जैसा करोगे वैसा ही फल काटोगे, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय?अपनी दृष्टि बदलनी पड़ेगी फिर चीजे उतनी बुरी नहीं होती जितनी हम उन्हें बना लेते हैं,अगर बेटी की ससुराल में उसके सास ससुर से परहेज है तो ये कैसे सोच लिया कि आपकी बहू बेटा,आपकी इज्जत करेंगे?

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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