Moral stories in hindi : पारुल की शादी अभय से बहुत धूमधाम से हुई थी,पारुल पढ़ी लिखी,सुंदर और समझदार लड़की है। अभय और उसके परिवार में सब बहुत खुश थे।पारुल सब काम करती,सबसे तमीज से बात करती और कोई जिद,अभिमान भी नहीं दिखाती।
बस एक बात, उन सबको खलती कि पारुल बात बात में डरी सी रहती,कोई कुछ कह दे तो आंसूओ से रोने लगती।
अभय कई बार उससे प्यार से पूछता,तुम इतनी सहमी हुई क्यों रहती हो?क्या तुम्हें किसी ने कुछ कहा?
“नहीं तो”वो धीमे से कहती,”सुनिए,मुझसे कभी कोई गलती हो जाए तो मुझे माफ कर देना आप।”
हां.. हां..ये भी कोई कहने की बात है,तुम इतनी स्वीट हो कि तुमसे कोई गलती होगी ही नहीं,कह वो उसे प्यार से गले लगा लेता।
एक बार अभय ऑफिस जा चुका था ,उसकी मां, पारूल के कमरे के आगे से निकली तो अंदर से बहुत मीठी आवाज़ आई,कोई गाना गा रहा था
“तोरा मन दर्पण कहलाए
भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए।”
“अरे!ये कौन गा रहा है?”वो उत्सुकतावश कमरे ने जा पहुंची,देखा तो पारुल,तन्मयता से गा रही थी आंखे मूंदे,उनकी आहट होते ही वो चौंक के रुक गई और बोली,”मम्मी जी,सॉरी!वैसे ही गुनगुनाने लगी थी,अब नहीं गाऊंगी।”
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“क्यों नहीं गाओगी बेटा?तुम तो बहुत मीठा गाती हो,कहां से सीखा ये तुमने?”
पारुल,उनकी तारीफ के बाबजूद भी सहज नहीं हो पा रही थी।
ऐसे ही किसी और दिन,उन्होंने,पारुल की अलमारी में कुछ पेंटिंग्स देखी,वो खुश थीं और पारुल उन्हें,उनसे छुपा रही थी।
“तुम बात बात पर चीजें छिपाने क्यों लगती हो पारुल?”अभय की मां ने पूछा और पारुल ऐसे हो जाती जैसे कोई चोरी करते पकड़ी गई हो।
थोड़े दिन बाद, राखी का त्यौहार आया।पारुल का भाई शक्ति उससे राखी बंधवाने आया था।आज वो बहुत खुश थी,तरह तरह के पकवान बनाए थे उसने।
जब सब खाना पीना हो गया,पारुल सबके लिए कॉफ़ी बनाने चली गई, अभय ने शक्ति से पूछा,”अच्छा!एक बात बताओ तुम,ये पारुल हर वक्त डरी हुई क्यों रहती है?इसके साथ कोई हादसा हुआ क्या कभी?”
नहीं तो, वो चौंका,ऐसा तो कभी नहीं हुआ,आप किसलिए कह रहे हो ऐसा?”
फिर अभय ने उसे बताया कि जब वो गाना गा रही थी और पेंटिंग्स छिपा रही थी,जब वो इतनी अच्छी कलाकार है तो सब कुछ छुपाती क्यों है?
“वो जीजू!क्या बताऊं,जिसका मुझे डर था,आखिर वही हुआ।”
क्या?? अभय ने उत्सुकता से पूछा।
दरअसल,हमारे घर का माहौल इस बात के लिए जिम्मेदार है,पारुल,जब छोटी ही थी,तब से कभी बुआ जी तो कभी दादी और ताई जी ने उनके दिमाग में ससुराल का खौफ बैठा दिया।
“खौफ..मतलब?”अभय चौंका।
जी,जैसे,पारुल बहुत चुलबुली थी,जोर से हंसती तो दादी कहती, संभल के,धीरे धीरे हंसा कर,क्या मुंह फाड़ देती है, सास दिमाग ठीक करेगी इसका।”
“अरे!ये क्या बात हुई?”अभय को बहुत आश्चर्य हुआ।
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एक बार ये किसी म्यूजिक कंसर्ट में फर्स्ट प्राइज जीती थी तो बुआ जी ने मां को खूब लताड़ा,”भले घर की लड़कियां दूसरे मर्दों के आगे गाती नहीं है,इसे ससुराल भेजना है या नहीं?”
मां भी उनकी इज्जत में चुप रह जाती और ये मां की बेइज्जती देख रोने लगती।बस इसके दिमाग में ससुराल के नाम एक हौव्वा बैठता गया।
कैसे अजीब लोग हैं,ऐसे कोई करता है,अभय बोला।
तभी अभय की मां वहां आई,यही लग रहा था मुझे भी,बहुत से लोग,लड़कियों के दिमाग में गलत डर बैठा देते हैं कि “इसके दिमाग इसकी सास ननद ही ठीक करेंगी”या “ससुराल जाना है,कुछ तमीज सीख ले”।
“ससुराल कोई जेलखाना तो नहीं, सास भी अपनी मां की तरह ही होती हैं,जितनी इज्जत दोगे,प्यार पाओगे,संग संग रहकर कोई बात हो जाए तो वो कहीं भी संभव है ,उसमें ससुराल का डर क्या बैठाना उनके दिल में।”
“ऐसा भी होता है?”अभय भोंचक्का हो सब सुन रहा था,”कल को तुम्हारी भी शादी होगी तो तुम्हारी पत्नी को यही सब ट्रीटमेंट मिलेगा?”
मैंने तो मां को समझा दिया है,ज्यादा बुआ जी और ताई चाची जी जी बात सुनने की जरूरत नहीं है,अब समाज बदल रहा है,लोगों की सोच भी बदल रही है ,ये दकियानूसी सोच छोड़ दें वो।”
बेटा!,अभय की मां बोलीं,ये सोच तो हमेशा खतरनाक ही रही है,भला सास और ससुराल का नाम लेकर बेटियों को क्या डराना?जैसे उनके घर ने उनकी मां है वैसे ही ससुराल में उसके पति की मां।फर्क करना सिखाओगे तो वो फर्क करेगी ही,बाकी मां तो दोनो हैं।
तभी पारुल कॉफी बना लाई।
उसकी सास ने,उसे पास बुलाया और कहा, सुन पारुल! तू बेखौफ होकर गाया कर,बहुत मीठा गाती है बिटिया!खूब पेंटिंग्स बना,कलाकार को अपनी खूबी छुपानी नहीं चाहिए,यहां तेरी ससुराल में सब तेरी कला के कद्रदान हैं।
पारुल हौले हौले मुस्करा रही थी और अभय को प्यार से देख रही थी।आज बरसों से बैठा ससुराल का खौफ उसके दिल से जा जो रहा था।
#ससुराल
डॉ संगीता अग्रवाल
वैशाली