वो सुनहरे दिन – नीरजा कृष्णा

आज मधुरिमा को बाहर का भी बहुत काम था और ऐन वक्त पर मेड भी धोखा दे गई थी। बेचारी परेशान होकर जल्दी जल्दी काम निपटाने की कोशिश कर रही थी। वो बहू की अफ़रातफ़री समझ भी रही थीं और महसूस भी कर रही थीं। वो पूजा समाप्त कर उसके पास आईं और सब्ज़ी वगैरह काटने में मदद करने लगी। तभी बबलू मास्टर ‘मम्मा मम्मा’ करते पहुँच गए। वो चिढ़ कर बोली,”जब देखो मम्मा मम्मा करते रहते हो और मेरे पीछे पड़े रहते हो। आज मुझे बहुत काम है, आज तो मेरा पीछा छोड़ दो।”

पर नन्हा बालक कहाँ सुनने वाला ? वो लाड़ से उसके गले में बाँहें डाल कर झूल गया। झुंझलाहट में उसने उसे अपने से अलग करते हुए जोर से धक्का दे दिया… बेचारा एक गज दूरी पर गिर पड़ा था। बेतरह रोते बबलू को उन्होंने दौड़ कर उठाया और मधुरिमा को स्नेहभरी डाँट पिलाई,”ये क्या मधु, अपना सारा क्रोध इस मासूम बच्चे पर उतार रही हो। अब बच्चा तो अपनी माँ से ही लिपटेगा।”

वो आँसूभरी आँखों से बबलू को देखते हुए बोली,”मम्मी जी, आज कितना काम है और इस माया को भी आज ही गायब होना था। मैं भी क्या करूँ….ये शैतान भी तो मम्मा मम्मा करते हुए आगे पीछे घूमता रहता है…पीछा ही नहीं छोड़ता है।”


वो अपने पोते को सहलाते हुए आँखें बंद करके सोच में डूब गई थीं। इसी तरह तो उनका मयंक भी तो उनका आँचल पकड़े आगे पीछे घूमता रहता था। कभी कभी ज्यादा व्यस्तता में वो उसको धौल भी जमा देती थी।वो गुस्से में दूर भाग जाता था पर पुनः उन्हीं के पास आकर सटता था। कितने सुहाने दिन थे पर आज…. आज मयंक बड़ा हो गया है। वो भी एक बच्चे का पिता बन चुका है। अपने कामधंधे में व्यस्त हो चुका है। अब उनसे औपचारिक बातचीत ही होती है। उन्होनें एक बार उलाहना भी दिया था तो उसने पलट कर जवाब दे दिया था,”क्या माँ,तुम भी हद कर रही हो। अब मैं पहले की तरह तुम्हारे आगे पीछे कैसे घूम सकता हूँ। अब अपना ये शौक बबलू बाबू के साथ पूरा करो।”

वो एकदम से चुप होकर आहत नेत्रों से अपने मयंक को निहारने लगी थीं और वो भी उनको अनदेखा करके बाहर निकल गया था। आज उनकी बंद आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी थी, मधुरिमा घबड़ा कर पूछ रही थी,”मम्मी जी, क्या सोचने लगी थीं और आप रो क्यों रही हैं?”

वो चौंक कर सचेत हो गईं और झेंप कर अपने पल्लू से आँखें पोंछती हुई बोलीं,”अरे कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं। बस मयंक का बचपन याद आ गया था। तुम भी  बबलू का बचपन सहेज लो। बाद में उसकी इन्हीं शरारतों के लिए तरस जाओगी। बाद में यही ‘मम्मा’ सुनने को कान तरस जाएँगें।”

वो सहमति में सिर झुकाए थी, तभी अंदर से मयंक ‘अम्मा अम्मा’ कहता हुआ आकर उनके गले से लिपट गया था।

नीरजा कृष्णा

पटना

 

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