बाड़ – सुनीता मिश्रा

“अरे मार ही डालेगा क्या बहू को,छोड़ पेट से है वो,बच्चे को चोट लगी तो दोनों के जान पर बन आयेगी।”जानकी बेटे पर बरस पड़ी।जो अपनी पत्नी से,जबरदस्ती उसके हाथ की सोने की चूड़ी उतरवा रहा था और निर्मला(उसकी पत्नी) चूड़ी उतारने नहीं दे रही थी।

जानकी का बेटा, मुन्ना बाबू।

खानदान मे एक लम्बे समय से केवल कन्या ही जन्म लेती आई थी।खानदान के पहिले चिराग मुन्ना बाबू,दादा दादी नाना नानी मां बाप सबके लाड़ मे पले ।जिस चीज पर उंगली रखी, हाज़िर हो गई।मुन्ना बाबू की आँख में आँसू न आने पाये,पूरा परिवार उनकी सेवा में रहता।

गोरे चिट्टे,सुन्दर नक्श,गोल मटोल मुन्ना बाबू घर भर की आँख का तारा,धन धान्य से भरे परिवार में  एक राजकुमार की तरह परवरिश पाते रहे।

पर कहते है न,अति सर्वत्र वर्जयेत ।अतिशय प्यार में वो ज़िद्दी होते गये।उनकी ज़िद के आगे घर के लोग हारते गये।आठवीं फेल होने के बाद स्कूल छोड़ दिया।


अब नहीं पढ़ना ,घोषणा कर दी उन्होने।दादा ने कहा-“कौन नौकरी करवानी है मुन्ना से,उसकी हवेली में नौकरों की लाईन लगी है।”

मुन्ना बाबू खुश।दादा के चरण स्पर्श कर लिये ।परिवार ने इस घोषणा पर मुहर लगा दी।

अब क्या राजदुलारे मुन्ना जी को किसका डर,सारे समय अपने जैसे बिगड़े लड़कों  के साथ मटर गश्ती करना,ताश पत्ती खेलना ,लड़कियों को छेड़ना।घर में शिकायतें  आने लगी।पर मुन्ना जी को आँच नहीं आने दी घर के लोगों ने।साफ बचा ले जाते उसकी गलतियों को।इस तरह प्रश्रय पा मुन्ना और ऊद्दण्ड ,आवारा होते चले गये।

सब दिन एक से नहीं होते।अपनी बदचलनी,आवारगी के साथ मुन्ना बाबू जवान होने लगे।उधर दादा,दादी भी दुनियाँ मे नही रहे।व्यसनी बेटे के व्यवहार से अब पिता भी दुखी होने लगे।और एक दिन पिता भी हृदयाघात से चल बसे ।

पिता की मृत्यु के बाद तो मुन्ना बिलकुल  आज़ाद हो गये।खैर, भय तो उन्हे पहिले भी किसी का नहीं था ,पिता के जाने के बाद माँ  से क्या डरना?वो तो उसके सारे अवगुन अपने आँचल मे छुपाती आई।

पूर्वजो की जमा पूँजी यार दोस्तो के साथ खर्च होती रही।मुन्ना जी की कमाई धेले की नहीं और खर्चे नवाबों   से।

रात के करीब दो का समय होगा,गहरा अंधेरा था।मुन्ना अब तक घर नहीं आया।जानकी ने कुछ हलचल सुनी अन्धेरे मे टोह ली।मुन्ना अपने तीन दोस्तो के साथ एक लड़की को ले घर केअंदर घुसे,दबी दबी सी चीख सुनाई पड़  रही थी।सबने मिल कर उस लड़की को एक कमरे के भीतर ले जाकर,कमरा बंद कर दिया।अंदर से दबी घुटी आवाजें आ रहीं थीं ।जानकी दरवाजा पीटते पीटते बेदम हो गई।

जब जानकी को होश आया तो कमरे का दरवाजा खुला था,मुन्ना समेत सब लड़के गायब थे।अंदर कमरे मे वो लड़की अर्धचेतन अवस्था मे कराह रही थी।जानकी ने देखा वो गरीब भोला कुम्हार की बेटी थी।


मुन्ना बदचलन है,आवारा है पर इतनी शर्मनाक हरकत करेगा ,जानकी ने नहीं सोचा था।उसने निर्णय लिया। भोला कुम्हार की बेटी निर्मला को अपने घर की बहू बना कर ले आई।इस बात को चार साल हो गये।मुन्ना के तीन साल की बेटी है और अभी निर्मला पेट से है।

मुन्ना की एक हैवानियत को तो जानकी ने इंसानियत का चोला पहिना दिया।पर मुन्ना की बिगड़ी आदतों  को न सुधार पायी।अब भी वो अपने शौक पूरे करने  के लिये निर्मला से गहने मांगता,जो जानकी ने बहू को दिये थे।और न देने पर निर्मला पर हाथ छोड़ता,जानकी के बीच बचाव करने पर वह माँ को भी चोट पहुंचा देता।

आज भी यही हुआ वो अमानुष की तरह निर्मला को मार रहा था,पता नही जानकी मे कहाँ से ताकत आई,बेटे को खींच कर अलग किया बहू से ,और जोर से धक्का दे दरवाजे से बाहर किया चिल्लाकर बोली–“निकल जा इस घर से,अब यहाँ कदम मत रखना।आज से इस घर से तेरा रिश्ता खत्म।”और दरवाजा बंद कर दिया ।

निर्मला के पास आकर उसे  सहलाती हुई बोली–“बेटी मै तेरी अपराधी हूँ,मुझे माफ कर दे।”

“माँ  गलती केवल आपकी नहीं, पूरे परिवार की है।बचपन से ही उन्हे सही रास्ते पर लाने की कोशिश की होती तो  ये स्तिथि न बनती ।”

“क्या कोशिश करते बहू वो तो बबूल का झाड़ है।उससे आम की उम्मीद न रख।जिन्दगी भर हमको चुभन के काँटे देने के लिये ही पैदा हुआ है वह।”

“उन्हे घर से निकाल देने से तो समस्या का निदान नहीं होगा।हम दोनों मिलकर  कोशिश कर के तो देंखे।वो आपके बेटे हैं ,मेरे पति हैं,इन बच्चों के पिता हैं,इस तरह उन्हे छोड़ देना ठीक नहीं ।बबूल में  भले आम न लगे पर बाड़ तो बन सकता है।”

सुनीता मिश्रा

मौलिक

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