वक्त से डरो – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ” क्या मम्मी जी…जब देखो..कोई न कोई चीज़ आप तोड़ ही देती हैं।चुपचाप एक जगह क्यों नहीं बैठ जाती…।” अपनी सास को तीखे स्वर में कहती हुई तान्या ने फ़र्श पर गिरे काँच के टुकड़ों को साफ़ करने के लिये नौकर को आवाज़ दी।

     निखिल भी उसी वक्त ऑफ़िस से आया था।अपनी माँ को समझाने लगा,” तान्या ठीक ही तो कहती है मम्मी।अब तुम्हारी उम्र हो रही है।लगता है तुम्हें भी एक कमरे में बंद करके रखना पड़ेगा जैसे तुम दादी को रखतीं थीं।” और सुमनलता जी अवाक् होकर बेटे को देखने लगी।

       शहर के बड़े बिजनेस मैन की बेटी थीं सुमनलता।अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने वाली सुमन देखने में जितनी सुंदर थी,  बोलने में उतनी तेज़-तर्रार..।मन-पसंद काम न होने पर तो वह पूरा घर सिर पर उठा लेती थी।दो बड़े भाईयों की लाडली और माता-पिता की दुलारी सुमनलता के तेवर देखकर अक्सर ही उनकी दादी उनके पिता से कहतीं, ” इतना जो बेटी को सिर पर चढ़ा रखा है तो कौन ब्याह करेगा इस नकचढ़ी से।” तब उसके पिता हँसकर कहते,” अम्मा…, बेटी को जाने न दूँगा..दामाद को ही घर-जवाँई बना लूँगा।” 

        सुमन ने जब कॉलेज़ में दाखिला लिया तभी उनके पिता के ऑफ़िस में मनोहर की नियुक्ति हुई।स्वभाव का सरल और काम में अनुशासित मनोहर जल्दी ही उनके पिता को भा गया।जैसे-जैसे समय बीतता गया…मनोहर के काम में निखार आता गया और उसकी पदोन्नति भी होती गई।

      एक दिन सुमनलता के पिता ने मनोहर से उसके घर-परिवार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि एक बड़ी बहन है जो विवाहित और विधवा माँ है।

   ” और पत्नी – बच्चे…।” 

  ” जी.., अभी शादी नहीं हुई है।” मनोहर ने कहा तो सुमन के पिता की तो बाँछे खिल गई।बेटी के लिए मनोहर उन्हें उपयुक्त वर लगा।उन्होंने उसे शाम को चाय पर बुला लिया।

       हिचकिचाते हुए मनोहर सुमनलता के घर गया।आलीशान घर देखकर तो वह दंग रह गया।तब सुमन ने मनोहर को देखा था।हैंडसम मनोहर उन्हें एक ही नज़र में भा गया।उनके पिता भी तो यही चाहते थें।कंपनी से मिले घर में जब सुमन के पिता मनोहर की माताजी से मिलने गये तो उन्होंने बहुत आवभगत की।बातों-बातों में ही उन्होंने कह दिया कि वे अपनी इकलौती बेटी का विवाह मनोहर से करना चाहते हैं।

       सुनकर मनोहर की माँ हिचकिचाते हुए बोलीं, ” आप तो बड़े लोग हैं।आपकी बेटी हमारे घर में कैसे…।”

तपाक-से सुमन के पिता बोले,” आप हैं ना..,सब सीख जायेगी।” फिर एक शुभ मुहूर्त में सुमनलता मनोहर की पत्नी बन गई।

       दहेज़ में उनके पिता ने बंगला-गाड़ी सहित चार नौकर भी दे दीजिये।मनोहर बहुत खुश।दोनों पति-पत्नी ने एक महीने तक घूमना-फिरना और खूब शाॅपिंग की।उसके बाद मनोहर ऑफ़िस जाने लगे।कुछ दिनों के बाद सुमनलता ने अपनी सहेलियों को घर बुलाना शुरु कर दिया जो ताश खेलती, नाचती-गाती और कभी-कभी शराब भी पीती।

          पूजा-पाठ करने वाली मनोहर की माँ को बहू का यह रवैया पसंद नहीं आया। कुछ दिनों तक चुप रहने के बाद एक दिन उन्होंने सुमन को कह दिया,” बहू…अच्छे घर की बहू-बेटी को यह सब शोभा नहीं देता है।” फिर क्या था..सुमनलता ने पूरा तांडव मचाया।मनोहर को बोली कि तुम अपनी माँ को बोल दो कि मेरी लाइफ़ में वो दखल न दें वरना…।” इतने दिनों में मनोहर अपनी पत्नी को समझ चुके थे।इसलिये उन्होंने अपनी माँ को ही समझा दिया कि वे बहू के किसी भी काम में दखल न दे और न ही टोका-टाकी करें।

         उस दिन मनोहर की माँ बहुत रोईं थीं।समय बीतता गया।मनोहर एक बेटे के पिता भी बन गये।सुमनलता ने अपने बेटे को जनम अवश्य दिया था लेकिन उसका पालन-पोषण आया की गोद में होता था।सुमनलता को अपनी पार्टियों और शाॅपिंग से फुरसत कहाँ।

      निखिल का दसवाँ जन्मदिन था।मनोहर ने घर में बहुत बड़ी पार्टी रखी थी।उनके पूरे ससुराल का डेरा यहीं था,ऐसे में उन्होंने अपनी बड़ी दीदी को भी बुला लिया।आखिर वह निखिल की इकलौती बुआ थी।बरसों बाद बेटी से मिलकर मनोहर की माँ बहुत खुश थी जो सुमनलता की मम्मी को ज़रा भी नहीं सुहाया।

        पार्टी के अगले दिन मनोहर की सास ने शोर मचा दिया,” मेरा कंगन चोरी हो गया।” उसी वक्त दीदी वापस जा रहीं थीं तो सुमनलता ने उनका बैग सबके सामने खोल दिया।कपड़ों के बीच में मम्मी का कंगन देखकर वो ज़ोर-से चिल्लाई, ” मनोहर…देखो.. तुम्हारी दीदी…।कंगन पहनने की इच्छा थी तो माँग लेती…चोरी करने की क्या ज़रूरत थी।” 

      मनोहर को भी न जाने क्या हो गया था..उन्होंने पत्नी की बात को ही सच माना।उस दिन रोती हुई उनकी दीदी गई तो फिर कभी नहीं आईं लेकिन जाते-जाते इतना कह गई,” सुमनलता..वक्त से डरो…जो इल्ज़ाम मुझपर लगाया है, एक दिन तुम पर भी…।”

        बेटी पर लगे चोरी के इल्ज़ाम का सदमा मनोहर की माँ बर्दाश्त नहीं कर पाईं।बीमार रहने लगी और एक रात ऐसी सोईं कि फिर कभी नहीं उठी।मनोहर को जब सच चला कि दीदी के सामान में कंगन उसकी सास ने रखे थे तो उन्हें आत्मग्लानि हुई।दीदी से माफ़ी माँगनी चाही पर उन्होंने मुँह मोड़ लिया था।

        सुमनलता जी अपनी सहेलियों में व्यस्त रहतीं,जवान निखिल अपने दोस्तों में और मनोहर…वे बेचारे अपने घर में ही अनजान बन कर रह गये थे।

         निखिल ने एमबीए करके अपने नाना के ही बिजनेस को ज़्वाइन कर लिया जिसे अब उसके दोनों मामा संभाल रहें थें।सुमनलता जी अपने जैसे ही संपन्न घराने की लड़की तान्या के साथ बेटे का ब्याह करा दिया।

       तान्या अपनी सास की ही तरह आधुनिक विचारों वाली लड़की थी।अब सास-बहू दोनों ही एक जैसे कपड़े पहनती और साथ में पार्टी करती जो मनोहर जी को पसंद नहीं आता।वे पत्नी को समझाते कि हर काम समय पर ही अच्छा लगता है पर पत्नी ने उनकी बात पर कभी कान नहीं दिया।

         समय के साथ मनोहर जी का शरीर शिथिल होने लगा।सुमनलता जी भी बेडौल होने लगी तो बहू ने उन्हें साथ ले जाना छोड़ दिया।बुरा तो लगा, फिर मन को समझा लिया कि चलो…अब पति के साथ समय बिताऊँगी।शरीर से कमज़ोर और बीमार मनोहर जी की जीने की इच्छा खत्म हो चुकी थी।बस..एक दिन रात को सोये-सोये ही उन्होंने दुनिया छोड़ दी।

       उसी समय से बहू ने सास से मालकिन का हक छीन लिया और घर के आधे हिस्सों पर उनकी उपस्थिति को प्रतिबंध लगा दिया।आज न जाने कैसे सुमनलता जी उधर चली गई, मेज से टकरा गईं और कीमती शो पीस टूट गया तो बहू-बेटे ने उन्हें….।

    ” बड़ी मालकिन…कमरे में जाइये ना…हमें फ़र्श…।” हरिया बोला तो उनकी तंद्रा टूटी। हाँ…जाती हूँ..।” कहते हुए वो अपने घुटने पर हाथ रख कर धीरे- धीरे अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

        तान्या का जन्मदिन था, मायके से उसकी मम्मी और भाई आये हुए थें।घर में बड़ी पार्टी चल रही थी,सभी लोग नाच-गा रहें थें मगर सुमनलता जी को अपने कमरे में ही रहने की सख्त हिदायत दी गई थी।उनका मन बहुत दुखी थी, शायद अपने पिछले कर्मों का पछतावा भी।देर रात पानी पीने के लिये वो रसोई में जाने लगी तो उन्हें सुनाई दिया कि तान्या कह रही है,” निखिल…मैं तो तंग आ गई हूँ तुम्हारी मम्मी से।चुपचाप बैठती ही नहीं हैं।सहेलियों के सामने आकर मेरी इंसल्ट कराती रहती हैं।अब तो तुम इन्हें वृद्धाश्रम भेज ही दो।”

    ” हाँ,  तुम ठीक कहती हो लेकिन ये ऐसे नहीं जाने वाली।इन्हें भी बुआ की तरह ही कोई इल्ज़ाम..।” इसके आगे वो सुन न सकी।ननद के साथ किया गया अपना कुकृत्य उन्हें याद आ गया।’ हे भगवान!’ अब यही बाकी रह गया है।ऐसे बेइज्ज़त होने से तो अच्छा है कि मैं खुद ही मैं चली जाऊँ।अपना सामान लेकर सुबह जब वो जाने लगी तो उनका पैर टेबल के पाये से टकरा गया और उनका हैंडबैग गिरकर खुल गया।उनकी कंघी-पाउडर के बीच तान्या की मम्मी का नेकलेस चमक रहा था।तान्या चिल्लाई,” छि: मम्मी जी…., मेरी मम्मी की नेकलेस चुराने की क्या ज़रूरत थी…माँग लेती तो…।” सुमनलता जी अवाक् थी कि ये कैसे हुआ।आखिर वक्त ने उनपर भी चोरी का इल्ज़ाम लगा ही दिया जो बरसों पहले उन्होंने अपनी ननद पर लगाया था।

          दरअसल पार्टी की गहमागहमी का फ़ायदा उठाकर तान्या की मम्मी ने ही दिन में नौकर से ये काम करवा दिया था।सुमनलता जी चोरी के आरोप का सदमा बर्दाश्त कर न सकी।वो एकाएक अट्टहास लगाने लगीं।हा-हा…चोरी…हाँ मैंने चोरी…।” कहकर ज़ोर-ज़ोर-से वो हँसने लगीं और बेहोश हो गईं।

       डाॅक्टर ने निखिल को बताया कि सदमे के कारण सुमनलता जी अपना मानसिक संतुलन खो बैठी हैं परन्तु घबराओ नहीं…वो जल्दी ही ठीक हो जायेंगी।

                                    विभा गुप्ता

  #इल्ज़ाम                     स्वरचित 

                अक्सर हम बिना सोचे-समझे किसी पर झूठा इल्ज़ाम लगा देते हैं।ये भी नहीं सोचते कि उसपर क्या बीतेगी।लेकिन जब उस व्यथित व्यक्ति के हृदय से हाय  निकलती है तो परिणाम बहुत बुरा होता है।जैसा कि सुमनलता जी के साथ हुआ।अतः किसी पर भी दोषारोपण करने से पहले हमें एक बार सोचना अवश्य चाहिये।


 

(betiyan Fb S)

 

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