विस्मृत नहीं होती है दोस्ती – अर्चना कोहली ‘अर्चि’

कस्तूरी के जाने के बाद दिल्ली शहर में मन नहीं लगा, चल पड़ी किसी ओर शहर की तरफ़। वैसे तो अपने गृहनगर भी जा सकती थी, पर वहाँ पर कोई भी तो अपना नहीं रहा था। माता-पिता  तो दो वर्ष पहले ही किसी हादसे में उसे छोड़कर जा  चुके थे।

 

कस्तूरी, उसकी प्रिय सहेली, जिससे उसकी मुलाकात अपने ऑफिस के समीप एक बरसाती रात में हुई थी। 

 

याद है, उसे आज भी वह रात्रि, जब एक दिन ऑफिस से निकलते समय अचानक ही मौसम ने करवट बदली। स्वच्छ आसमान में सहसा ही काले-काले बदरा घिर आए और झमाझम बरखा शुरू हो गई । स्टॉप पर उस समय इक्का दुक्का लोग ही थे। तेज़ बरखा के कारण खाली ऑटो मिल ही नहीं रहा था। 

 

तभी एक कार मेरे समीप आकर रुकी। उसमें तीन लड़के बैठे हुए थे। शक्ल से ही मवाली लग रहे थे। ड्राइंविंग सीट पर बैठे लड़के ने मुझे लिफ्ट देने की पेशकश की। मैंने इनकार कर दिया। वैसे भी शराब की गंध से पता चल रहा था, उन्होंने शराब पी हुई है। मेरे इनकार करने पर  दो लड़के कार से उतरे और जबरदस्ती मुझे कार के अंदर ले जाने लगे।

 

मैं डर से चीखने-चिल्लाने लगी। मुझे चीखते देख वे बोले, कोई नहीं आनेवाला। “चुपचाप कार में बैठ जा नहीं तो”•••

 

वहाँ खड़े लोगों ने देखकर भी अनदेखा कर दिया। एक तो बरसात, ऊपर से लोगों की मर गई मानवता से मेरी आँखों में नीर भर आया। तभी पीछे से आती एक और कार समीप आकर रुक गई।

 

कार से एक लड़की बाहर निकली। लड़की की उम्र करीब मेरे बराबर ही थी। उसने मुट्ठी में भरी मिर्ची उनकी आँखों में डाल दी। कार में बैठे लड़के को भी नहीं छोड़ा। यह सब इतनी जल्दी हुआ था कि लड़कों को सँभलने का मौका ही नहीं मिला। फिर कस्तूरी ने मुझे कार में बिठाया और पता पूछकर सुरक्षित मेरे घर भी पहुँचा दिया। रास्ते में उसने मुझे हिदायत भी दी, आजकल ज़माना बहुत खराब है। अपनी सुरक्षा का सामान भी साथ लेकर चलना चाहिए। अगर कस्तूरी न होती तो शायद इज्ज़त के साथ-साथ मेरी जान भी जा चुकी होती।

 

घर पहुँचकर भी मैं इस हादसे से इतना घबराई हुई थी कि उसे ठीक से धन्यवाद भी नहीं दे सकी। मेरी हालत देखकर उसने मुझे पानी पिलाया। फिर कभी ज़रूरत हो तो फोन कर लेना, यह कहकर अपना विजिटिंग कार्ड देकर चली गई।

 


अगले दिन मैंने कस्तूरी को धन्यवाद देने के लिए फोन किया। मुझे उससे बात करके बहुत अच्छा लगा। पता नहीं, उसकी आवाज़ में क्या कशिश थी, बार-बार उससे बात करने का मन करता। उसकी बातों से भी लग रहा था, उसका भी यही हाल है।

 

धीरे-धीरे फोन पर होनेवाली सामान्य बातचीत मित्रता में बदलने लगी। अब हम कभी बाज़ार में, कभी कॉफी होम में तो कभी पार्क में मिलने लगे। यह संयोग ही था, हमारी रुचि और विचारों में भी बहुत साम्य था।

 

दो महीने के छोटे-से अंतराल में ही एक सामान्य सी मुलाकात प्रगाढ़ दोस्ती में बदल चुकी थी। सच ही कहा है, दोस्ती अमीरी-गरीबी धन-दौलत से बहुत ऊपर होती है।

 

धीरे-धीरे हमारे दिलों की परतें खुलने लगी। हम अपने सुख-दुख-खुशी की बातें भी बताने लगें। तभी मुझे पता चला, वह एक कॉल गर्ल की बेटी है। विवशता में उसकी माँ  मयूरी को यह काम करना पड़ा। एक साल पहले किसी बीमारी में माँ का देहांत हो गया, तब कस्तूरी निकल पड़ी थी, नए आशियाने और काम की तलाश में।

 

मां के दिए पैसों से कस्तूरी ने सुंदर-सा एक आशियाना लिया और एक ऑफिस में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी ज्वाइन कर ली। उसके कॉल गर्ल की बेटी होने की बात सुनकर भी मेरी और कस्तूरी की दोस्ती में कोई दरार नहीं आई। लेकिन शायद भगवान की मर्जी कुछ और थी।

 

मेरा जन्मदिन आनेवाला था। कस्तूरी ने मुझे उपहार में दोस्ती का प्रतीक पीले मैगनोलिया के पुष्पों का एक गमला दिया। उस समय ऐसा लगा, मानो कस्तूरी की महक ही तन-मन में बस गई हो। क्या मालूम था, यह मेरी और कस्तूरी की आखिरी मुलाकात थी।

 

अगले दो दिन नेटवर्क की समस्या के कारण उससे बात नहीं हो सकी। तीसरे दिन समाचार-पत्र में पढ़ा,  कल शाम ट्रक और कार की भिड़ंत में मौके पर ही एक लड़की की मौत हो गई। लड़की का नाम कस्तूरी था। घबराहट में कस्तूरी को फोन मिलाया।  किसी महिला इंस्पेक्टर ने फोन उठाया। शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी। मैंने ही कस्तूरी की अंतिम यात्रा पर भेजने का सारा इंतजाम किया। आखिर हम दोनों ही तो एक दूसरे का सहारा थीं।

 

मेरे नए घर के लॉन में आज भी केवल पीले मैगनोलिया के सुगंधित पुष्प ही लगे हुए हैं। बरखा की रिमझिम फुहारों में झूमते और लहराते  मैगनोलिया किसी का भी मन मोह लेते हैं। उस समय उनका अद्भुत सौंदर्य ही दृष्टिगत होता है। आखिर हो भी क्यों न! उसमें मेरी प्रिय सखी की यादें जो सिमटी हुई हैं। इसी कारण एक पल के लिए भी वह मेरी यादों के गुलदस्ते से विस्मृत नहीं हुई।

 

अर्चना कोहली ‘अर्चि’

नोएडा (उत्तर प्रदेश)

मौलिक और स्वरचित

 

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