विश्वास ही तो चाहिए..!!- लतिका श्रीवास्तव: Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : थोड़ी भी अपने पिता की इज्जत की चिंता है तो जा चुल्लू भर पानी में डूब मर…..आज तेरे जैसे कपूत के कारण पुलिस थाने जाना पड़ा मुझे!!मैं एक सिद्धांतवादी शिक्षक जिसने जिंदगी भर गुमराह बच्चों को राह दिखाई आज उसी का बेटा गुमराह हो गया है….जिसकी ईमानदारी की मिसाल पूरा विभाग  देता  है..उसीका बेटा महज एक साल की नौकरी में घूस लेते पकड़ा गया  जेल चला गया ….क्या यही सिखाया था मैंने तुझे….डूब मरने के दिन तो मेरे हैं क्या मुंह लेकर जियूंगा अब इस समाज में!!

विजयशंकर जी अपने इकलौते पुत्र शशांक को जमानत पर छुड़ाकर घर लाने के बाद क्षोभ और क्रोध में बिफर रहे थे।

क्या जरूरत थी तुझे ऐसा अधम कृत्य करने की !!अरे तेरी नीयत में खोट आया कैसे!!रुपए की जरूरत थी तो मुझसे कह के तो देखता रिश्वत लेने की बात दिमाग में कैसे आ गई!!

रुक्मिणी ..रुक्मिणी .. आ  देख ले अपने पुत्र को …ले आया हूं छुड़ाकर मैं ..बहुत नाज़ था ना तुझे अपने पुत्र की काबिलियत पर …नाम रोशन करेगा एक दिन..लो हो गया नाम रोशन…..दरवाजे से ही पत्नी को आवाज लगाते हांफने लग गए थे वो।

अरे भाईसाब अपने आपको संभालिए …कैसी विडंबना है..आजकल की युवा पीढ़ी अमीर बनने के शॉर्ट कट तरीके ढूंढती है मां बाप की इज्जत मर्यादा की चिंता इन्हें कहां..लानत है तुम पर शशांक!!!आग में घी डालते हुए पड़ोसी सुबोध जी जिनका बेटा शशांक के ऑफिस में उसका मातहत था तत्काल ऐसे सुअवसर पर अपना पड़ोसी धर्म निभा ने पहुंच गए थे साथ ही कई और पड़ोसी भी बिजली की तेजी से पहुंचने लग गए थे।

भाई सुबोध इसकी हरकत से अपने ऊपर इतनी  शर्म आ रही है मुझे कि डूब मरूं कहीं जाकर ऐसा लग रहा है…पड़ोसी की बनावटी ही सही पर  हमदर्दी भरी सांत्वना उन्हे सबके सामने फिर से अपने बेटे की करतूत पर शर्मिंदा कर गई थी

बेहद हताश  बेहाल शशांक अपने साथ ऑफिस में घटे इस सर्वथा अप्रत्याशित हादसे से स्तंभित था उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करे क्या कहे…मेरे विरुद्ध साजिश की गई है! लेकिन मेरे खुद के पिता को ही विश्वास नहीं है मुझ पर तो बाकी दुनिया  का क्या!!वास्तव में मुझ जैसे पुत्र को तो डूब मरना चाहिए ..

चारों ओर से लोगों से घिरा उनके ताने सुनते शशांक की आंखों के सामने अंधकार छाने लगा था…अतिशय ग्लानि और कुंठा से उसका दिल जलने लग गया था ये सोचकर कि..मां का सामना मैं कैसे करूंगा… नहीं मैं घर के अंदर ही नहीं जाऊंगा … कि तभी उसे मां आती दिखाई पड़ गई उसकी हिम्मत नहीं हुई अपनी मां को मुंह दिखाने की …वो सुबोध अंकल से नजरे चुराकर तेजी से सिर झुकाकर दरवाजे से ही पलटने वाला था

नहीं मेरा बेटा निर्दोष है ये रिश्वत कभी नहीं ले सकता मेरा बेटा कभी कोई गलत काम नहीं कर सकता मुझे अपने लाल पर पूरा भरोसा है . ….डूब के मरे इसके दुश्मन जो मेरे बेटे और मेरे पति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के षड्यंत्र में लगे हैं. 

रुक्मिणी ने किसी की परवाह ना करते हुए सबके सामने सिंहनी की तरह दहाड़ कर कहा और सुबोध जी और सभी तमाशाइयों को परे हटाते हुए शशांक को अपने गले से लगा लिया तू कहीं नहीं जायेगा बेटा तूने कोई गलत काम नहीं किया है मैं सारी दुनिया से लड़ लूंगी तू उन धोखे बाजों की साजिश का पर्दा फाश करना उनके सिर शर्म से झुकाना अपना सिर नहीं।

मां के इस अटूट विश्वास को देख शशांक की आंखें सजल हो उठीं …. हां मां …बस इतना ही कह अपनी मां के गले से लिपट पड़ा वो…अचानक उसे अपने भीतर कहीं तेज रोशनी दिखाई पड़ने लगी थी जिसकी चमक से वो अब अपने चारो ओर घिरते अंधेरे को भेद सकता था  

#डूब मरना  

स्वरचित 

लतिका श्रीवास्तव

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