उसने हमारी ख्वाहिश को तिरस्कृत नहीं किया पर पुरस्कृत किया है….. – भाविनी केतन उपाध्याय 

 वाह, भाभी,नई साड़ी और उस पर से सब मैचिंग क्या बात है ? कोई लॉटरी लगी या कोई नई दोस्ती हुई ? वैसे आप बहुत जंच रही है ” नीलम ने अपने मामा की बेटे की बहू दिपिका का सब के सामने मज़ाक उड़ाते हुए कहा ।

” नहीं दीदी, यह तो आप के भतीजे ने लाकर दिया है मुझे सबकुछ … दिपिका ने आंखों में आए आंसूओं को छिपाते हुए बड़ी मुश्किल से संयमित होते हुए कहा ।

” अच्छा है ना बेटा अपनी मां का ख्याल रख रहा है, आप की अधूरी ख्वाहिश को पूरा कर रहा है, वैसे आप को और मेरे भतीजे को नहीं लगता कि हम बुआओं का भी ख्याल रखना चाहिए ” नीलम ने तंज कसते हुए कहा ।

वहां खड़े सब रिश्तेदार नीलम, दिपिका के बीच होती बातें का आनंद ले रहे हैं। दरअसल बात यह है कि नीलम अपनी मौसी के यहां शादी में आई है वहां दिपिका भी अपने कर्तव्य निभाने आई है क्योंकि दो बहनों का एकलौता भाई थे दिपिका के ससुर जी…. नीलम ज्यादा तर अपने मामा के यहां रहकर ही बड़ी हुई है इसलिए उसे उनका लगाव होना स्वाभाविक है पर जब दिपिका के सास ससुरजी का देहांत हो गया और बिजनेस में बहुत बड़ा घाटा हो गया तब सब ने उनका तिरस्कार कर उनसे किनारा कर लिया था, वो लोग पाई पाई के मोहताज हो गए थे पर दिपिका और उसके पति की मेहनत तथा बेटे की पढ़ाई के साथ साथ दूसरे काम करने की आदत ने उन्हें आज सब के सामने लाकर खड़ा कर दिया है।

अब दिपिका से रहा नहीं गया, उसने आव न देखा ना ताव और नीलम को कहा,” आज जब भतीजा दो पैसे क्या कमाने लगा हक़ जताने सब आ गए , पर वहीं भतीजे ने अपनी कॉपी और किताबें खरीदने के लिए चंद रुपए क्या मांग लिया तब रिश्ता दूर का हो गया था ।



दूसरी बात मेरे बेटे ने मुझे और उसके पापा को अपनी पसंद और ख्वाहिशों को अधूरा छोड़ते हुए देखा है,हम ने कैसे सब सहा है यह हम ही जानते है, कोई नहीं आया था कुछ पूछने और अपना हक जमाने की तुम्हें कुछ ज़रुरत है क्या या किसी ने प्यार के दो शब्द भी नहीं कहे थे। सब ने हमारा तिरस्कार कर लिया था क्या हमें कुछ पता नहीं है,सब पता है हमें कि पैसा है तो आपको कोई पूछता भी है ।

अब जब बेटा कमाने लगा है भले ही वो आप लोगों के जितना कमा नहीं रहा पर उसे मेरी और उसके पापा की पसंद नापसंद और ख्वाहिशों के बारे में पता है और आज उसने हमारी ख्वाहिश और इच्छाओं को पूरा किया तो आप लोगों को क्यों आपत्ति होने लगी । क्यों गरीब लोग की अधूरी ख्वाहिशें पूरी नहीं होती ? क्या वो अपनी अधूरी ख्वाहिश लेकर ही पूरी जिंदगी बिताएगा ? आज मैं बहुत खुश हूॅं कि मेरे बेटे ने मेरी ख्वाहिश के बारे में सोचा और उसे पूरा भी किया, आज उसने हमारी ख्वाहिश को तिरस्कृत नहीं किया पर उसे पुरस्कृत किया है ” कहते हुए फफक फफक कर रो पड़ी दिपिका…..

 

” भाभी, मुझे माफ़ कर दो।‌सच में मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई आप की मज़ाक उड़ाकर। एक बात की खुशी है कि भतीजे को आप की ख्वाहिशें और खुशियों की कद्र हैं इसलिए वो आप लोगों को हमेशा खुश रखेगा और हमें हमारे व्यवहार और कहने पर माफी दे दो , ग़लती हमारी ही थी कि हमनें आपका तिरस्कार कर दिया पर अब नहीं …. आप जैसे भी हो वैसे ही मुझे चाहिए। आज से आप हमारे लिए एक भाभी से बढ़कर बहुत कुछ हो ” कहते हुए नीलम दिपिका के गले लग गई।

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद

#तिरस्कार 

भाविनी केतन उपाध्याय 

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