उम्मीदें तकलीफ देती हैं – सुल्ताना खातून

“दिन भर घर के कामों में जुटी रहती हूं, खाना बनाना, कपड़े धोना, सफाई करना, बच्चों को स्कूल भेजना, सास ससुर की खिदमत करना, और फिर आप के नखरे उठाना, लेकिन मजाल है जो कोई मेरी तारीफ कर दे, मुझसे प्यार से दो बोल, बोल दे, उल्टे जिज्जी लोग से मेरी शिकायतें लगाती रहती हैं… मोहल्ले में मुझे बदनाम कर रखा है, कि मेरी बहु फ़ूहड़ है…. आज फिर मानसी विनीत से लड़ाई कर रही थी।

“यार मानसी यह तुम रोज घरेलू बातें मुझे क्यों सुनाने बैठ जाती हो… मैं दिन भर ऑफिस से थका हारा आता हूं.. और तुम्हारी रोज की यही बकबक मैं परेशान हो गया हूं…!” विनीत चिड़ कर बोला।

हां हां आप तो परेशान हो गए हैं… और मैं यहां खुश हूं… दिनभर मासी की तरह खटती रहती हूँ…. ऊपर से और आए दिन मां जी आपकी बहनों को बुला लेती हैं… पर आपको क्या पता कितना काम बढ़ जाता है मेरा… आपकी बहनें दिन भर पलंग तोड़ती रहती हैं…. और मैं दिन भर घनचक्कर बनी रहती हूं… और इतने काम करने के बाद तारीफ के दो बोल  नहीं मिलते… मानसी के कहने पर विनीत भड़क गया…!

यार मानसी कितनी बार मैं कह चुका हूं, यह घरेलू बातें मुझसे मत कहा करो तुम्हें संभालना है सब कुछ… यह जानती हो फिर भी रोजाना का  वही बहस… विनीत चिल्लाया।

उसके इस तरह चिल्लाने पर मानसी रोने लगी  और विनीत परेशान हो गया… फिर उसे बैठकर समझाने लगा… देखो मानसी तुम सारी सिचुएशन जानती हो, भैया-भाभी, मम्मी-पापा की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं… अब इस उम्र में  मैं उन्हें छोड़ तो नहीं सकता और जब मम्मी पापा मेरे साथ है तुझे जीजी लोग भी मेरे घर आएंगे और अगर तुम काम के वजह से परेशान हो जाती हो तो मैं एक मासी रख देता हूं कोई पार्ट टाइम जॉब कर लूंगा मासी का खर्च निकल जाएगा बस तुम यह रोज-रोज मुझ से लड़ाई मत किया करो, विनीत उसे अपने साथ लगाकर उसके बालों को सहलाने लगा।



विनीत का थोड़ा सा प्यार पाकर मानसी पिघल गई और चुप हो गई।

हफ्ते दिन तक सब ठीक रहा मानसी ने खुशी-खुशी सारे काम किए, लेकिन फिर आज मानसी का मूड खराब था दोनों जीजिया आई हुई थी, उनके बच्चों ने सारा घर फैला रखा था, और उन दोनों को बातों से फुर्सत नहीं थी मानसी अकेले सफाई और किचन देखते हुए हलकान हो रही थी… गुस्से में उसने सारे काम निपटा कर अपने रूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया दोनों बच्चे स्कूल चले गए थे तभी उसके दोस्त तनीषा का फोन आ गया… तनीषा जॉब करती थी… कभी कभार ही उससे बात हो पाती थी… मानसी उससे बात करने लगी और फिर सारे दुखड़े रोने लगी।

आज तनीषा छुट्टी पर थी उसने आज मानसी को समझाने का सोचा… और कहा… देखो मानसी अभी तुम्हारे शादी को सिर्फ 8 साल हुए हैं… तुम पढ़ी-लिखी हो, खूबसूरत हो, जवान हो, अभी तुम्हारे खुश रहने के दिन हैं.. लेकिन तुम जब देखो शिकायतें लेकर बैठी रहती हो…दुःखी रहती हो… देखो तुम्हारे दुःख की वजह, तुम्हारे घर वाले नहीं है, ना ही तुम्हारा ज्यादा काम करना है, और ना ही तुम्हारी जिम्मेदारियां हैं… बल्कि तुम्हारे तकलीफ़ की वज़ह तुम्हारी उम्मीदें हैं जो तुम उनसे लगाती हो… मैं जानती हूं तुम एक मेहनती लड़की हो… तुम कामों से परेशान नहीं होती हो… तुम उनसे उम्मीद लगाती हो कि जब तुम उनके सारे काम करो… उनकी खिदमत करो तो बदले में वह तुम्हारी तारीफ करें… प्यार के दो बोल बोले… तुम्हारे सर पर हाथ रखे… यह तुम्हारा हाथ बटाएं… और जब ऐसा नहीं होता…. तो तुम्हारी उम्मीदें टूटती हैं… और तुम दुखी होती हो…।



आज से तुम उनसे उम्मीदें लगाना बंद करो…. तुमसे जितना काम होता है करो… नहीं तो छोड़ दो… तुम्हारे जिज्जी लोग आए दिन आ जाती हैं… पलंग तोड़ती रहती हैं.. जब  काम पड़ा हुआ देखेंगी तो खुद हाथ बटाएंगी, और अगर उन्हें काम करना पड़ेगा तो वह यहां आना कम कर देंगी, क्यूंकि उन्हें यहां आराम जो नहीं मिलेगा… बिना वजह तुम्हारे लाइफ में दखलअंदाजी करती रहती है… अपने बड़े भाई के घर नहीं जाती… तुम अपने सारे कर्तव्य निभाओ, लेकिन जहां तक तुममे ताकत है… जितना तुम सक्षम हो… ज्यादा दिमाग पर लोड लेने की जरूरत नहीं है…. तुम खुश रहने की कोशिश करो… उम्मीदें खुद से लगाओ दूसरे से नहीं… देखना तुम अच्छा महसूस करोगी… और अब तो बच्चे भी स्कूल जाने लगे हैं… अगर तुम्हें अच्छा लगे तो कोई जॉब पकड़ लो यह घरेलू मसले खुद सुलझ जाएंगे… विनीत को घर के खर्चों में भी तुम्हारा हाथ बटाता देखकर खुशी होगी… जॉब में इंगेज रहोगी तो दिमाग लड़ाई झगड़ों में कम लगेगा… तनीषा ने हंसते हुए कहा।

उसकी बात सुनकर मानसी बोल उठी- तुम ठीक कह रही हो तनीषा, मेरी उम्मीद है मुझे तकलीफ दे रही है… मैं सोचती हूं कुछ… प्लीज तुम मेरे लिए कोई जॉब ढूंढने में मदद करो उसके कहने पर तनिषा ने कहा- ठीक है मैं कुछ करती हूं और अभी फोन रख रही हूं तुम बस खुश रहा करो… यह कहकर उसने फोन रख दिया।

महीना बीत गया था लेकिन एक बार भी मानसी ने विनीत से लड़ाई नहीं किया..। विनीत देख रहा था आजकल मानसी खुश रहने लगी है… उसे खुशी हुई और पूछ बैठा – क्या बात है मैडम आजकल लड़ाई नहीं कर रही हो मुझसे, उसकी बात सुनकर मानसी मुस्कुराते हुए बोली –  खुशी की वज़ह सीक्रेट है डियर, आप ही ने कहा था ना घर के मसले ख़ुद सुलझाने को… तो मैंने सुलझा लिया… और विनीत में जॉब करने का सोच रही हूँ… ।

उसके कहने पर विनीत बोला- मैनेज कर लोगी?

हां कर लूंगी मानसी ने कहां और मन ही मन सोचने लगी घर को मैनेज करने का एक मंत्र जो मिल गया है… ख़ुद को ख़ुश रखने का… ख़ुद को ख़ुश रखूंगी तभी तो सबको ख़ुश रख पाऊँगी..।

#उम्मीद

मौलिक एवं स्वरचित

 

सुल्ताना खातून

 

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