उफ़ ये गर्मी – किश्वर अंजुम

रीना, आंगन धोने को नल मत खोल, बोरिंग को टेर के निकाल पानी, पता है न! ओवरहेड टैंक में पानी बिजली से चढ़ता है, तेरे लिए थोड़ी बिजली खर्च करेंगे। मैडम ने गुर्राते हुए कहा। इतनी गर्मी में बाहर आकर मेड को डांटने से उनके माथे पर पसीना आ गया। टिशू पेपर से नज़ाकत से पसीना पूछते हुए वो अंदर चली गईं, घर के अंदर, जहां गर्मी घुसने से भी डरती थी। पूरा घर सेंट्रलाइज्ड एसी के पाइप्स से ठंडी हवाओं में डूबा था।

बाहर, नख से शिख तक मेहनत के पसीने में डूबी रीना,  अपने दुबले पतले हाथों से पानी टेरने लगी। आंगन बहुत बड़ा था और ज़रा भी सूखा रहा तो उसकी नौकरी पर खतरा आ जाता। घर पर  बूढ़े श्वसुर और  बच्चों की ज़िम्मेदारी थी। पति को पर साल कोरोना निगल चुका था। मैडम के यहां तनख्वाह तो अच्छी थी परंतु वो सख़्त बहुत थीं। हद से ज़्यादा डांटती थीं, इतना कि रीना की आंखों में उस कठोर वाणी से उपजा दर्द छलक आता था।

रीना के ससुर का परलोक गमन हो गया तो वो तीन दिनों की छुट्टी लेकर गांव चली गई। मैडम ने साफ़ कह दिया कि छुट्टी सिर्फ़ एक दिन की दी जाएगी, बाकी दो दिनों की पगार काट ली जाएगी।

गर्मी के दिनों में बिजली की खपत बढ़ ही जाती है। किसी मेजर फॉल्ट की वजह से शहर में चौबीस घंटे के लिए बिजली गुल हो गई।

ओवरहेड टैंक में पानी खतम हो गया। बिजली वापस आने में अभी समय था। दोपहर को बहुत ज़रूरत होने पर मैडम को एक बाल्टी पानी टेरना ही पड़ा, क्योंकि उनके टॉम को बहुत गर्मी लग रही थी और वो बेचैन हो रहा था।


पानी टेरने से पस्त हुई मैडम, बिना लाइट के इन्वर्टर से चल रहे धीमी रफ्तार के पंखे के नीचे पसीना सुखा रही थीं और सोच रही थीं कि इस रीना के कारण मुझे पानी के लिए मेहनत करनी पड़ी, इसकी तीनों दिन की तनख्वाह काटूंगी।

उनके गुस्से की गर्मी को इस सोच से थोड़ी ठंडक मिली।

अभी शाम तक बिजली नहीं आनी थी पर पसीना तो आता ही न, अब पसीने को क्या पता कि यूं मैडमों को नहीं आया करते।

टिशू पेपर खतम हो गए थे। नया पैकेट खुला और पांच छह पेपर उनका पसीना पोंछने में शहीद हो गए।

 ये वाला पैकेट भी आधे से ज़्यादा खतम हो जाएगा। ज्यादातर टिशू पेपर पेड़ की लुगदी से बनता है। लुगदी बनाने पेड़ काटना पड़ता है। पेड़ काटने से बारिश कम होती है। बारिश कम होने से गर्मी बढ़ती है और गर्मी ज़्यादा होने से मैडम को बहुत तकलीफ होती है। दिन भर एसी चलाती हैं।  सब कुछ समानुपाती है। अब बिजली का ज़्यादा उपयोग, उत्पादन और उपयोग में असंतुलन ला दे तो मैडम को तो ही होगी न परेशानी, रीना को क्यों होगी भला? कभी एसी देखी भी है वो?

हुंह!


अब देखिए न! ससुर मरा तो शहर में, क्रिया कर्म भी यहीं हुआ, फिर बाकी के संस्कार करने गांव क्यों गई? खाने को तो पूरा नहीं पड़ता, रस्म निभाने चली है।

मैडम को याद आ गई अपने ससुर की, पिछले साल मर गए थे गांव में, गर्मी के दिन थे, भला वो गांव कैसे जाती? वो तो उन्होंने अपने पति को जाने दिया, क्या इतना काफी नहीं था।

उफ्फ! ये गर्मी! आज आने दो इनको, नया जेनरेटर, ज़्यादा पावर का लगवाऊंगी।

मैडम ने अपने शरीर से गिरता पसीना पोंछा। आठ दस टिशू पेपर और शहीद हो गए।

दो बातें एक साथ हुईं, रीना का वापस आना और मैडम के घर नए जेनरेटर का इंस्टॉल होना।

इस महीने रीना की तीन दिन की तनख्वाह काट ली गई।

उफ! ये गर्मी!

ठंड में तो मैडम रीना को माफ भी कर देती, आखिर दयालु थीं वो, पर, इस गर्मी में, धूप में पानी टेरने से मैडम को हुई तकलीफ़, माफ़ी के लायक तो हरगिज़ नहीं थी न!

स्वरचित, अप्रकाशित

किश्वर अंजुम

दुर्ग छत्तीसगढ़

491001

 

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