त्याग, तपस्या या समर्पण – बालेश्वर गुप्ता

  अरे नरेंद्र कहाँ चला गया, जल्द आ।

    मैं कहीं नही गया बापू, मैं यहीं हूँ।

जल्दी से केतली में गर्म चाय भर ले, देख ट्रेन आने वाली है, प्लेटफॉर्म पर पहुंच जा।आज तो नाम मात्र की बिक्री हुई है, कोशिश करना बेटा, सब चाय बिक जाये।

ठीक है बापू।

यह संवाद उस बाप बेटे का था जो प्रतिदिन चाय बेच कर घर चलाते थे।आठ नौ वर्ष का नरेंद्र रोज स्कूल से आकर अपने पिता का हाथ स्टेशन पर चाय बेचने में बटाता था।

    किसी प्रकार जीवन निर्वाह हो रहा था।नरेंद्र के सहयोग से उसके पिता दामोदर का चाय के कार्य मे अच्छी प्रगति हो गयी थी।अन्य बड़े भाई भी कुछ कमाने लगे थे।

    इधर नरेंद्र कुछ अनमयसक सा रहने लगा था, उसे लगता कि वो इस दुनिया में मात्र चाय बेचने नहीं आया है, ईश्वर ने शायद उसे इस देश के लिये कुछ करने भेजा है।कभी कभी नरेंद्र को लगता कि उसे भगवान बुद्ध की तरह ही ज्ञान और राह की खोज करने निकल पड़ना चाहिये।

    नरेंद्र के पिता दामोदर ने नरेंद्र से कई बार उसके खोये खोये रहने का कारण पूछा, पर नरेंद्र क्या बताता।चुप रह जाता।और एक दिन नरेंद्र के पिता ने घर मे घोषणा कर दी कि नरेंद्र की शादी मैंने तय कर दी है और दो माह बाद की तिथि निश्चित हो गयी है।नरेंद्र अवाक सा पिता का मुख देखता रह गया, घर में खुशी की लहर दौड़ गयी।नरेंद्र ने फिर भी हिम्मत जुटा अपने पिता से कहा बापू शादी वो भी इतनी जल्दी?मैं तो शादी करना भी नही चाहता।दामोदर बोले देख नरेंद्र मैंने लड़की वालों को जुबान दे दी है, शादी तो करनी पड़ेगी।हाँ गोना एक दो वर्ष में कर लेंगे।

    पूरे परिवार के सामने बेबस सत्रह वर्षीय बालक नरेंद्र की शादी जशोदा से करा दी गयी।13 -14वर्ष की जशोदा भविष्य के सुनहरे सपने लिये अपने पति के घर आ गयी।

   दो बच्चे शादी के बंधन में बांध दिये गये थे,उन्हें क्या पता शादी क्या होती है, जशोदा को माँ ने समझा कर भेजा था कि बेटी अब तेरे माता पिता दामोदर और हीरा बेन हैं, उनकी सेवा करना तेरा कर्तव्य है और सुन बेटी नरेंद्र तेरा पति है उसकी हर खुशी तेरी खुशी और उसका दुःख तेरा दुःख रहेगा।नरेंद्र को कभी दुःखी मत करना, उसकी हर बात मानना।



    माँ ने जो समझाया उसे ही शादी समझ जशोदा ससुराल आयी थी।बच्चो की शादी को अभी दो तीन दिन ही हुए थे कि नरेंद्र ने जशोदा से कहा कि अभी तो तुम्हारे पढ़ने के दिन है, खूब पढो, जशोदा बोली आप कहते हैं तो मैं खूब पढूंगी, माँ ने कहा था मुझे आपकी हर बात माननी चाहिये।

अच्छा क्या तुम मेरी हर इच्छा पूरी कर सकती हो?क्यों नही जो कर सकती हूँ करूँगी।तुम वो मेरी सबसे प्यारी गुड़िया भी मांगोगे तो वो भी दे दूँगी बोलो दूँ?

  नहीं जशोदा, असल में मैं शादी करना नही चाहता था पर बापू ने करा दी।तो क्या हुआ मासूम जशोदा बोली, मैं वायदा करती हूं आपको परेशान नहीं करूंगी।

जशोदा मैं तो अपने देश के लिये कुछ करने के लिए उपाय खोजने घर छोड़कर हिमालय जाना चाहता था, पर अब तुम आ गयी हो तो कैसे जाऊं, यही उहापोह है।

क्यों ,क्या घर रहकर उपाय नही खोजा जा सकता।

नही जशोदा उसके लिये घर छोड़ना पड़ता है।अगर तुम हाँ कहो तो तुम अपने घर जाकर खूब पढ़ सकती हो और मै घर से तब जा सकता हूँ।

  ठीक है, मां कहती थी जो नरेंद्र कहे वो ही करना।मैं पढूंगी और आप देश की उन्नति के लिये काम करना।

   और नरेंद्र ने घर छोड़ दिया,जशोदा अपने घर चली गयी।दोनो ही प्रामाणिक रहे जशोदा खूब पढ़ लिख कर अध्यापिका बन गयी और प्रधानाचार्य पद से रिटायर्ड हुई, नरेंद्र भी ईमानदारी से देश सेवा का व्रत ले ,देश का प्रधानमन्त्री बन गया।इस बीच दोनों ने एक दूसरे को देखा तक नही।अपने अपने कर्तव्य मार्ग पर चलते रहे।

     महाबीर ने यशोदा का त्याग किया,बुद्ध ने यशोधरा का त्याग किया तो दोनों ही भगवान बन गये,जशोदा का त्याग करने के बाद नरेंद्र भी प्रधानमंत्री बन गये पर यशोदा,यशोधरा और जशोदा तो इतिहास से ही गुम हो गये। पता नही इनका भी अपने यौवन, अपने परिवार का त्याग था या नही?त्याग नही तो क्या तपस्या थी या फिर था मात्र समर्पण????

         बालेश्वर गुप्ता

                     पुणे(महाराष्ट्र)

मौलिक लेखन, अप्रकाशित

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