तुम पराई नहीं हो .!!- अंजना ठाकुर  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : राधिका की शादी पक्की हो गई थी घर मैं सब खुश थे दो भाई मैं राधिका सबसे बड़ी थी पर जबसे राधिका की शादी पक्की हुई तब से ही वो उदास रहने लगी थी।

मां  (मालती जी) ने पूछा क्या हुआ राधिका तुम खुश नही हो क्या? लड़का तो तुम्हे पसंद है और ससुराल भी अच्छा है फिर क्या बात है।

मां मेरी शादी के बाद ये घर आंगन मेरे लिए पराया हो जायेगा जिस आंगन मै .. मेरा बचपन बीता मेरी यादें जुड़ी है कल को क्या पता मैं यहां आ पाऊं या नहीं मुझे कोई बुलाएगा भी की नहीं राधिका की आंख मैं आंसू आ गए।

ऐसा क्यों बोल रही है ये तेरा घर है और हमेशा रहेगा तुम पराई नही हो और न कभी होगी मालती जी  प्यार से हाथ फेरते हुए बोली ।

पर मां कल को भाई की शादी हो गई और भाभी मुझे नही बुलाना चाहे तो जैसे बुआ मन मार कर रह जाती है दादी का दिल रखने के लिए बेचारी एक दिन के लिए आती है वो एक दिन भी आप उनसे अच्छे से बात नहीं करती और देते समय भी कितना सुनाती हो पापा को ।तो क्या ये बुआ का घर नही है  उन्हे कितना बुरा लगता होगा मां अपने मायके का आंगन कोई भूल पाता है क्या।

अब मालती के सामने अतीत घूम गया ये सब उसने सोचा ही नहीं था उसकी ननद रेणु के भी दो भाई है छोटा भाई विदेश मै बस गया तीन चार साल मै एक बार आता है पर वो सब पर काफी खर्चा करता है तो मालती को उनका आना अखरता नही है पर रेनू  का आना उसे जरा भी नही सुहाता ।

मालती के ससुर  मालती की शादी के बाद चल बसे थे फिर रेनू की शादी दोनों भाइयों ने मिलकर करी  अब लेने देने की जिम्मेदारी मालती पर ही थी शुरू शुरू मैं रेनू जल्दी जल्दी आती उसके आने से मां का मन भी हल्का हो जाता फिर मालती को लगा की ननद जल्दी जल्दी आती है तो खर्चा उस पर ही आता है उपर से मांजी की भी जिम्मेदारी है

मालती अब रेणु से चिढ़ने लगी ना कभी आने के लिए बोलती और मांजी के कहने पर रेनू आती तो उस से ढंग से बात नही करती मालती के पति सुभाष बोलते की तुम ऐसा व्यवहार क्यों करती हो बहन –बेटी तो अपने भाग्य का लाती है और फिर अपने मायके आने का सबका मन करता है पर मालती पर कुछ असर नही हुआ

धीरे धीरे रेणु ने आना कम कर दिया आती भी तो एक दो दिन के लिए उनकी मां भी ज्यादा कुछ नहीं बोल पाती वो खुद आश्रित थी बेचारी मन मसोस कर रह जाती  रेनू यही समझाती की मां मेरी वजह से कहीं आप को परेशान नही करे मैं अपने ससुराल मैं खुश हूं बेचारी मन दुखी करके ही जाती बच्चे भी जिद्द करते और रुकना है मामा के घर पर मालती के डर से सुभाष भी कुछ नही बोलता ।

ऐसे ही समय गुजर रहा था बच्चे बड़े हो गए अब रेणु के बच्चे तो पता नही कब से आए ही नही मालती अपनी गृहस्थी मै रम गई

मां बोलो ना मैं सही कह रही हूं ना! नही बिटिया ये आंगन बेटी के लिए कभी पराया नही होगा जब तक मैं और पापा रहेंगे तब तक तेरा पूरा हक है और कोशिश करेंगे की भाभी के आने के बाद भी पराया नही हो आज तूने अहसास करा दिया मेरी भूल का मैं उसका पश्चाताप करूंगी

कहां जा रही हो मां राधिका बोली।

तेरी बुआ को फोन करने सारे नेग तो बुआ करेंगी और घर की शादी है तो जल्दी  आना ही पड़ेगा

आंगन मै बैठी दादी के अंदर नई उमंग जाग गई अब बेटियां पराई नहीं होंगी ।

राधिका भी खुश हो कर दादी के गले लग गई अब उसकी उदासी दूर हो गई थी।

स्वरचित ©️®️

अंजना ठाकुर 

#घर-आँगन 

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