तुम पर विश्वास करना मेरी सबसे बड़ी गलती थी – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : विक्रांत बाबू बाहर आयें हैँ… आंगन में रखे घड़े से एक लोटा पानी ले अपना गला तृप्त किया…. फिर वहीं पड़े तखत पर अपना अंगोछा कांधे पर डाल बैठ गए….

तभी 7 साल का पोता बाहर से खेलकर आया.. सीधा अपनी माँ के पास चला गया…

विक्रांत बाबू को अब बुरा भी नहीं लगता था…. शुरू में जब पोता पोती उन्हे अनदेखा करते हुए बिना प्रणाम किये चले ज़ाते थे तो उनका कलेजा छलनी हो जाता था…. कि मेरे बच्चे अपने बाबा की मौजूदगी महसूस ही नहीं करते….. वो भी क्या करें जैसा व्यवहार बेटा बहू कर रहे थे उनके साथ वैसा ही तो बच्चे करेंगे …

विक्रांत बाबू कोई ऐसे वैसे घर से नहीं हैँ…. हेड मास्टर के पद से रिटायर हुए हैँ….. कुछ साल पहले पत्नी का देहांत हो गया हैँ…. पत्नी थी तो समय से खाना पीना दवाई मिल ज़ाती थी विक्रांत जी को पर उनके जाने के बाद तो बस ज़िन्दगी खींच रही हैँ… वो तो शुकर हैँ कि सरकारी नौकरी में थे विक्रांत बाबू तो जो जानवरों की तरह दो रोटी उन्हे मिल ज़ाती थी…. पेंशन का लालच जो था बेटे बहू को…. पर विक्रांत बाबू इतने भी सीधे नहीं थे….. पेंशन का एक तिहाई हिस्सा ही देते थे बेटे सुधीर को… एक बार बहू बेटा लड़े भी थे इस बात को लेकर कि आपके कब्र  में पैर रखे हैँ…

हम ही आपके एकलौते बहू बेटा हैँ…. आप पूरी पेंशन क्यूँ नहीं देते हमें…. आपका ही खर्चा 10000 हैँ महीने का…. इतनी महंगाई में आपको खिला रहे हैँ ये क्या कम है …. इस बात पर विक्रांत बाबू दहाड़ती आवाज में बोले थे…. मेरे मरने  पर तू चन्दन की लकड़ी भी नहीं लायेगा… ना ही चार मन की दावत करेगा तू गांव में…. मैं बिमार पड़ गया य़ा कोई गंभीर बिमारी हो गयी तो ईलाज भी नहीं करवायेगा … छोड़ देगा मुझे सरकारी अस्पताल के बेड पर मरने के लिए…. इसलिये जोड़ रहा हूँ पैसा….

हां तो पापा 75 साल के हो गए आप…. अब कितना ज़ियेंगे….. हम इतना ही जी ले बहुत हैँ… इस उम्र में आप पर पैसा खर्च करने की ज़रूरत ही क्या हैँ….. सुधीर गुस्से में बोला….

हां तभी कह रहा हूँ कि तुम  पर विश्वास करना मेरी सबसे बड़ी गलती थी …. मैने कभी नहीं सोचा था तू अपने बाप को ऐसा जवाब देगा ….. घर , जमीन , जायदाद सब तेरे नाम कर दिये… ले दे के ये पेंशन बची हैँ वो भी तुझे दे दूँ ….. हर बात पर तेरे ना रहने पर बहू धमकी दे देती हैँ कि जो मिल रहा हैँ पिता जी चुपचाप खा लो…. मेरे पति का घर हैँ ये…. ज्यादा दिक्कत हैँ आपको तो आप जा सकते हैँ इस घर से …..

इसलिये बेटा पेंशन का तिहाई हिस्सा ही तुझे दूँगा ….लेना हो तो ले नहीं तो मैं बाहर किराये पर रह लूँगा… इतनी तो पेंशन मुझे सरकार दे रही हैँ….

सुधीर और बहू चुप पड़ गए… कि दो वक्त की रुखी सूखी दो रोटी 10000 रूपये के आगे बहुत कम  हैँ… पिता जी को घर में रखना फायदे का सौदा हैँ….

तब से आज तक विक्रांत बाबू को बस दो वक्त की रोटी दे दी ज़ाती हैँ…. कभी दही य़ा चीनी य़ा दूध मांग ले तो महंगाई का हवाला दे देती हैँ बहू…. बेचारे किसी को क्या बताते कि बेटे की पढ़ाई के लिए लिया लोन वो अभी तक भर रहे हैँ…. बेटे को पता चला तो एक और खरी खोटी सुनने को मिल जायेगी कि पैदा क्यूँ किया था मुझे अगर पढ़ा नहीं सकते थे…. मैं अपनी मर्जी से तो आया नहीं……

आज तो हद हो गयी थी …. दोपहर के तीन बज गए… बहू अभी तक रोटी देने नहीं आयी… कभी विक्रांत बाबू की रसोई घर में जाने की हिम्मत नहीं हुई… ये हमारे बड़े बूढ़ो का कायदा होता हैँ कि बहू के आगे पूरे घर में घूमना सही नहीं… बस अपने कमरे और बाहर आंगन के गुसलखाने तक ही सीमित होते हैँ वो….

भूख जोरों की लगी थी बेचारे सुबह से खाते ही क्या थे… चार बिस्कुट और एक कप चाय….

जब भूख बर्दाश्त के बाहर हुई तो पोते से बोले….. आज खाना नहीं बना क्या लल्ला ….. अभी तक तेरी महताई खाना ना लेके आयी….

पोता भी एटीट्यूड में कमर पर हाथ रख बोला…. आज हमारी दावत थी बाबा… हम सब वहीं खाकर आयें हैँ… मम्मा ने रात की दो रोटी गर्म की थी आपको अचार से देने को बोला था… मैं भूल गया देना… अभी लाता हूँ….

विक्रांत बाबू की आँखों में आंसू तैर आयें थे… अपने अंगोछे से आंसू पोंछते हुए बोले….. रहने दे लल्ला …. मेरे दांत ही कहां हैँ जो रात की सख्त रोटी खा पाऊँ …. कभी तेरी अम्मा सबेरे के आटे की भी रोटी मुझे नहीं देती थी …… हाल आटा लगाके बना देती थी….. मैं सत्तू घोल के पी लूँगा …. तू खेल जाके ….

तभी बाहर किसी ने दरवाजा खटखटाया …. विक्रांत बाबू बाहर आयें तो देखा उनके छोटे भाई की पत्नी  हाथ में खाने की थाली लिए खड़ी थी….. लेओ भाई साहब  … खाये लियो… तुमाये लिए लायी हूँ…..

क्यूँ आज घर में कुछ हैँ क्या सुमित्रा …..?? विक्रांत बाबू ने पूछा. …

आज तुमाये पोते को जन्मदिन हैँ… वो तो साथ रहता नाये हैँ पर मन ना माना तो तुमाये भईया  ने कही खीर कचौरी साग  बना  ले… सबसे पहले भाई साहब को देकर आ…. वो ढ़ेरों आशीर्वाद देंगे छोरे को…. पिता जी के बाद वहीं तो हैँ ज़िनका आशीर्वाद हमें लेनो हैँ…. सौभाग्य हैँ भाई साहब की छत्र छाया हम सब पे बनी हुई हैँ….. तो लेओ खाये लेओ…. बिल्कुल मुलायम हैँ… खूब मोयेन डारों हैँ…. जैसे तुम खाये ले बिना दांत के….

खाना देखकर विक्रांत बाबू की  आँखों में चमक आ गयी…. उन्होने दोनों हाथ उठा बोला…. फौजी के छोरा की खूब लम्बी उमर होये… खूब बड़ा आदमी बने….. खुश रहे… मस्त रहे वो….

छोटे भाई की बहू ने उनके पैर छूये …. तभी विक्रांत बाबू की बहू जो काफी देर से वहां खड़ी थी….. विक्रांत बाबू के पास आयी… उनके पैर छूने लगी….

विक्रांत बाबू ने पैर पीछे करते हुए बोला… तुझे क्या हुआ  बहू….

पिता जी …… माफ कर दो मुझे…. आप घर की नींव हैँ…. आपका इतना निरादर किया मैने…. रात चार चोर घर में घुस रहे थे छत के रास्ते… पर आपको खांस्ते हुए गुसलखाने में ज़ाते देखा उन्होने तो वापस लौट गए…. हम तो  बेसुध सोते हैँ…. कोई कुछ भी चोरी कर ले जाता हमें होश ही नहीं रहता….. सच में माँ बाप घर के रखवाले होते हैँ…. उनके होते हुए कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता….

तुझे कैसे पता चला बहू कि चोर आयें….

वो बाऊ जी बाहर जो कैमरा लगा हैँ उसमें दिखा… सामने वाली दुकान के भाई साहब ने बतायी….

कोई बात ना हैँ बहू …. जा अपना काम कर … खुश रह….

अगले दिन से विक्रांत बाबू की थाली में चार व्यंजन ही नहीं बढ़े उनको एक ससुर ,पिता और बाबा वाला सम्मान भी मिलना शुरू हो गया….

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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