तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -6)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi

(अब तक आपने पढ़ा कि कैसे रिक्की तृप्ति को अपने जाल में फांसने के लिए अपनी रंगीन दुनिया में शामिल कर लेती है।ऊंचे सपनों के मकड़जाल में तृप्ति उलझ जाती है।अब पढिए आगे)

“कभी तो अपने पास भी लग्जरी कार होगी।” पीछे से आकर तृप्ति बोली।

“,हु…हाँ..लेकिन यार,गाड़ी न भी हो।हम दोनों तो हमेशा साथ होंगे न!” शेखर के चेहरे पर उदासी थी।

“ऑफकोर्स रहेंगे यार।कैसी बहकी बातें कर रहे हो आज!सब कुछ होगा हमारे पास बस तुम साथ देना।” शेखर की आँखों में आँखें डालकर तृप्ति बोली।शेखर उसे निहारता रहा और गोदी में उठाकर बेडरूम में चला गया।

“ऑफिस नहीं जाना है क्या?” तृप्ति ने कहा।

“आज तुम्हारे लिए छुट्टी ली है।आज बस तुम और मैं।” तृप्ति की टीशर्ट को उतारते हुए वह बोला।

“लेकिन जनाब यह मेरे लिए नहीं तुम्हारे लिए हो रहा है।छोड़िए मुझे क्या सुबह ही मूड बनाकर बैठ गए।”

“सब्र तो करो सब तुम्हारे लिए होगा।” इतना कहकर शेखर उसके माथे को चूमता हुआ सीने पर मचल उठा।जिस्म की लय पर तृप्ति शेखर के साथ थिरकने लगी।साँसों के उतार चढ़ाव और शरीर में उठते ज्वर से दोनों भींग रहे थे लेकिन जैसे एक दूसरे से जीतने की जिद थी।

फोर प्ले से उठता बवंडर दोनों को अपने अंदर लपेटने लगा।धड़कने तेज चलने लगी और तुफान सा थम गया। निढाल तृप्ति ने शेखर की ओर देखा और मुस्कुराती हुई बोली,

“तुम्हारे लिए अभी भी लड़कियों की लाइन लग जाए।ऐसा जादू है तुम्हारा।” इतना कह वह जोर से हँस दी।

“पगला गई हो क्या? तुम बहुत हो मेरे लिए।क्यों बिगाड़ रही हो मुझे।” उसके होंठों पर चुंबन देकर शेखर ने कहा।

दोनों एक दूसरे से लिपटे यूँही पड़े रहे।

तभी तृप्ति के फोन की रिंगटोन से दोनों का ध्यान भटका।

“यार कौन जालिम आ गया इस वक्त।” चिढ़चिढ़ाते हुए शेखर ने फोन उठाया तो नंबर देख उसकी चिढ़न और बढ़ गई।

“ये क्यों तुम्हारे पीछे पड़ी है।” तृप्ति की ओर फोन देते हुए वह बोला।

“जलनखोर…।” तृप्ति ने कहा और बेड से खड़े होकर रिक्की से बात करने लगी।

शेखर उससे जाकर चिपक गया।

“छोड़ो न शेखर मैं बात कर रही हूं न!”

शेखर अनसुना कर उसकी नग्न जिस्म पर चुंबन देने लगा।

रिक्की के कानों में तृप्ति की सिसकियां साफ सुनाई दे रही थी।

“मैं बाद में बात करती हूं।तुम शायद बिजी हो।” रिक्की बोली तो तृप्ति शेखर को बेड पर धकेल उसके ऊपर बैठ गई और आवाज़ को कंट्रोल करके बोली,

“नो प्लीज तुम बताओ मैं सुन रही हूं।शेखर मुझे कॉफी पीने की जिद कर रहा है।काफी गरम है न”तृप्ति के चेहरे पर शरारती मुस्कुराहट रिक्की को फोन पर ही समझ आ गई।

शेखर अब भी बेचैन था और उसे बार बार फोन रखने का इशारा कर रहा था।

“हाँ वो आ जायेगा।डोंट वरी यार इतना तो करेगा ही शेखर।हाँ हाँ पूछ लेती हूँ।तुम जाओगे न शेखर? उसने हाँ कर दी।ओके मैं रखती हूं ठीक चार बजे वह पहुंच जायेगा।” फोन पटक कर शेखर से लिपलॉक कर तृप्ति उसकी उत्तेजना को बढ़ाने लगी।एक बार फिर वह एक दूसरे में समा गए।

शांत होकर शेखर का ध्यान रिक्की और तृप्ति की बातों पर जाता है तो वह तृप्ति का मुँह अपनी ओर करके बोला,

“कहाँ जाना है मुझे?”

“आज शाम को रिक्की की एक बिजनेस मीटिंग है वह तुम्हें ले जाना चाहती है।”तृप्ति बोली।

“यार मुझे क्यों? मुझे तुम्हारी दोस्त समझ नहीं आई।प्लीज मैं नहीं जाऊंगा।” शेखर ने झुंझला कर कहा।

“प्लीज शेखर, सिर्फ उसके साथ ही तो जाना है।प्लीज यार।”

“मुझे रिक्की का बिहेवियर ….कैसे अजीब तरह से मुझे छू रही थी।अजीब सा…।” शेखर बोला।

“तुम्हारी इज्ज़त नहीं लूटेगी वो।उसे आदमियों में इंट्रेस्ट ही नहीं है सो डोंटवरी।” तृप्ति ने शेखर को छेड़ते हुए कहा।

“मैं कुछ समझा नहीं! मतलब उसे लड़कियों में…तो तुम तो बिल्कुल उससे नहीं मिलोगी।क्या पता तुम्हें लेकर भाग जाए।”

“कितना डरते हो तुम।और वैसे भी तुम्हें तो कभी नहीं छोड़नी वाली मैं।तुम तो मेरा खजाना हो जानेमन।” तृप्ति उसकी गोद में बैठकर बोली।

“तो इस खजाने में से थोड़ा और खर्च कर दूँ!” शेखर ने तृप्ति की गर्दन पर फूंक मारकर कहा।

“बस बस…आज के लिए इतना काफी है मुझे तो माफ करो,और अगर ज्यादा खर्च करने की इच्छा है तो दो चार को बुला दूँ!” हँसते हुए तृप्ति टीशर्ट पहनने लगी।

               …………………..

ठीक चार बजे शेखर रिक्की के रूम के बाहर था।उसने डोर को नॉक किया।हल्का पुश करते ही रिक्की के रूम का दरवाजा खुल गया।शेखर झिझकते हुए अंदर चला गया।

“हैलो…कोई है…।” शेखर ने आवाज़ लगाई।

“बस दो मिनट रूको।मैं नहा रही हूं।” रिक्की ने रिप्लाई दिया।

शेखर रूम में चहल कदमी करने लगा।फाइव स्टार होटल का लग्जरी रूम जिसमें वह एक लड़की के साथ था लेकिन डर खुद रहा था।अपने ख्यालों में खोए शेखर के कानों में रिक्की की चीख सुनाई पड़ती है और एक तेज आवाज़ ।वह तेजी से बाथरूम की ओर दौड़ता है और दरवाजा खोल देता है।रिक्की फर्श पर गिरी हुई थी।उसके सिर से खून बह रहा था।

शेखर ने उसे सहारा देकर उठाया तो वह फिर से लड़खड़ा गई।रिक्की की टॉवल भी उसके शरीर से गिर गई।शेखर ने झट से आँखें बंद कर ली।

रिक्की ने अपने शरीर को कवर कर।शेखर का कंधा पकड़ लिया लेकिन वह चल नहीं पाई।

“बहुत दर्द हो रहा है शेखर।लगता है पाँव में मोच आ गई है।”

“घबराओ नहीं।मैं तुम्हें रूम में ले चलता हुँ फिर डॉक्टर को बुलाते हैं।” इतना कहकर शेखर ने रिक्की को गोद में उठा लिया और जाकर बेड पर लिटा दिया।

“मैं रिसेप्शन पर फोन करता हूँ।”इतना कहकर शेखर ने जैसे ही फोन की तरफ हाथ बढाया तो रिक्की चिल्ला पड़ी।

“नो नो..रूको।”

“लेकिन डॉक्टर को तो बुलाना होगा न!” शेखर ने कहा।

“इस हाल में मैं कैसे किसी के सामने आ सकती हूँ!प्लीज मुझे ऐसे ही लेटे रहने दो।दर्द कम होगा तो मैं कपड़े पहन लूंगी।तब डॉक्टर को बुला लेंगे।”

“ओ…ठीक, मैं तृप्ति को बता देता हूँ।” जेब से मोबाइल निकाल कर वह बोला।

“क्यों परेशान कर रहे हो उसे यार।दौड़ी आयेगी वो।और इस समय ट्रैफिक!अगर तुम्हें प्राब्लम है तो वापस जा सकते हो।मीटिंग तो वैसे भी नहीं हो सकती अब।”

“अरे नहीं मैं रूकता हूँ न!प्राब्लम कोई नहीं है।”

शेखर सोफे पर बैठकर मैगजीन उलटने पुलटने लगा।उसका ध्यान दर्द से करहाती रिक्की पर था जो चादर ओढ़ने की कोशिश कर रही थीं।

“प्लीज मेरी एक हेल्प कर दो।इस अलमारी में बॉम है वह निकाल कर दे दो।” रिक्की ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा।

शेखर ने बाम रिक्की के हाथ में दे दिया और वापस सोफे पर बैठ गया।उसका ध्यान अब भी बाम लगाने की कोशिश करती रिक्की पर था।वह अब बैठ नहीं सकता था।रिक्की के हाथ से बाम लेकर पैर पर लगाने लगा।

गोरी पंडलियों पर धीरे से नजर फिसल गई लेकिन उसने खुद को संभाल लिया।

“अब मैं कुछ बेहतर महसूस कर रही हूं।मुझे लगता है मैं थोडा चल सकती हूँ।मैं बस अभी चेंज करके आई।” इतना कहकर रिक्की चेंजिंग रूम की ओर लंगडाते हुए बढ़ गई।उसकी झिझक देख शेखर रिलैक्स हो गया।अब उसे रिक्की से डर नहीं लग रहा था।कुछ देर बीतने के बाद रिक्की व्हाइट गाउन में शेखर के सामने खड़ी थी।रेड लिपिस्टिक और महीन सा काजल उसे दिलकश बना रहा था।शेखर की आँखों ने उसे भरपूर देखा ही नहीं।यह देख रिक्की मन ही मन बेचैन हो उठी लेकिन अपने शब्दों में नरमी लाकर शेखर से बोली,

“तुम्हें बहुत परेशानी हो गई आज।सॉरी शेखर मेरे कारण तुम परेशान हुए।”

“ओ नो इट्स ओके।वैसे भी तुम तृप्ति की खास दोस्त हो तो मेरा फर्ज बनता था तुम्हारी हेल्प करने का।” शेखर ने मुस्कुराते हुए कहा।

“लकी है तृप्ति जो तुम उसकी लाइफ में हो।वरना हर औरत इतनी खुशनसीब नहीं होती।” अपनी आँखों से पानी साफ कर रिक्की ने कहा।

शेखर उसकी आँखों की नमी को महसूस कर गया लेकिन खामोश रहा।

“अगर तुम्हें और तृप्ति को प्राब्लम न हो तो क्या तुम मेरे साथ डिनर करोगे?” रिक्की रिक्वेस्ट करते हुए बोली।

“मैं तृप्ति को फोन कर देता हूँ कि आज डिनर तुम्हारे साथ।” शेखर ने कहा और मोबाइल निकाल कर तृप्ति को खबर कर दी।

रिक्की ने रूम में ही डिनर ऑर्डर कर दिया।

कुछ देर में ही कैंडल की रोशनी के बाद रिक्की और शेखर एक साथ थे।इधर उधर की बातें करते हुए शेखर को एक बार भी रिक्की का बिहेवियर गलत नहीं लगा।वह पूरी तरह रिलैक्स हो चुका था।शैम्पेन का गिलास शेखर की ओर बढ़ा कर रिक्की ने हल्की सी स्माइल दी जिसे शेखर इग्नोर कर गया।

रिक्की ने रोमांटिक म्यूजिक ऑन कर दिया।नशा शेखर के दिमाग पर चढ़ने लगा।रिक्की के व्हाइट गाउन में उसे तृप्ति नजर आने लगी जिसे बाँहों में उठाकर वह चूमने लगा।रिक्की तो जैसे शेखर को पी जाने को तैयार थी।

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दिव्या शर्मा

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